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अनुपूरक आहार का महत्व विषय पर एक दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम |
कृषि विज्ञान केन्द्र, बांदा द्वारा अनुपूरक आहार का महत्व विषय पर एक दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन डा0 प्रज्ञा ओझा द्वारा किया गया। डा0 प्रज्ञा ओझा ने महिलाओं को सम्बोधित करते हुये कहा कि शिशु आहार सभी प्रकार से पोषण तत्वों से भरपूर होना चाहिये। विशेषज्ञों के अनुसार बालक को अपने सम्पूर्ण जीवन में शैशवास्था को छोडकर फिर को छोडकर फिर कभी भी उसके शरीर के भार, आकार की आवश्यकता नहीं होती जिससे कि खनिज लवण व विटामिन की आवश्यकता प्रमुख है। शिशु अपने जीवन के प्रारम्भिक 4-6 महिनों तक केवल मां के दूध पर ही निर्भर रहता है तथा जो बच्चे मां का दूध नहीं ले सकते हैं उन्हें केवल बोतल का दूध या फार्मला मिल्क दिया जाता है। स्तनपान शिशु के लिये सर्वोत्तम है जन्म के 6 माह बाद शिशु को पूरक आहार व फलों का रस देना शुरू करना चाहिये। जब शिशु 06 माह का हो जाता है तब उसकी पोषण आवश्यकता भी बढ जाती है। उसकी पूर्ति करने के लिये शिशु को दूध के साथ साथ तरल एवं ठोस आहार की आवष्यकता होती है। ऐसा आहार ही अनुपूरक आहार या पूरक भोज्य कहलाता है। कार्यक्रम मे आगे डा0 प्रज्ञा ओझा ने यह भी बताया कि अनुपूरक आहार प्रारम्भ करना एक प्रक्रिया है जिसके द्वारा एक शिशु पूर्णतः दुग्ध आहार की जगह विविधतापूर्ण पारिवारिक भोजन लेने लगता है। अनुपूरक आहार में पर्याप्त मात्रा में पोषण तत्व उपस्थित होने चाहिये। अनुपूरक आहार द्वारा शिशु की भी पोषण तत्वों की आवष्यकता जैसे प्रोटीन, वसा, कार्बोहाईडेट, खनिज लवण विटामिन इत्यादि काफी हद तक पूर्ण की जा सकती है। कार्यक्रम के अन्त में डा0 दीक्षा पटेल ने महिला कृषकों को धन्यवाद् दिया व कार्यक्रम को सफल बनाने में केन्द्र के वैज्ञानिक डा0 मानवेन्द्र सिंह, डा0 मंजुल पाण्डेय, ई0 अजीत कुमार निगम, श्री कमल नारायण बाजपेयी व श्री धमेन्द्र कुमार सिंह का विशेष योगदान रहा। |
2023-03-23 |
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