कृषि विज्ञान केन्द्र, बाँदा एवं पशु पालन विभाग, बाँदा के संयुक्त तत्वाधान में आज दिनांक 28.08.2024 को केन्द्र की निकरा परियोजना अर्न्तगत अंगीकृत ग्राम-चौधरी डेरा (खप्टिहा कलॅा) विकास खण्ड - तिंदवारी में पशु स्वास्थ्य शिविर का आयोजन सफलतापूर्वक किया गया। इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप् में श्रीमती मैना देवी उपस्थित रहीं तथा पशु पालन विभाग से डा0 आशीष गुप्ता, पशु चिकित्सक एवं श्री शशिकान्त सिंह, पैरावेट भी उपस्थित रहे। केन्द्र की निकरा परियोजना के नोडल अधिकारी डा0 चंचल सिंह ने सभी ग्रामवासियों का पशु स्वास्थ शिविर में स्वागत किया। इस अवसर पर उन्होंने पशुओं में होने वाली विभिन्न बीमारियों के बारे में बताया साथ ही उन्होने इन बीमारियों से पशुओं के बचाव व उपचार पर विस्तार पूर्वक चर्चा की। पशुपालकों को सम्बोधित करते हुये डा0 आशीष गुप्ता ने पशुपालन को लाभकारी बनाने हेतु, रोगों से बचाव के लिये टीकाकरण व कृमिनाशक दवाइयों के महत्व को समझाते हुये पशुपालकों से अपील करते हुये अनुरोध किया कि वे अपने पशुओं को कृमिनाशक दवाई वर्ष में दो बार अवश्य खिलायें साथ ही पशुओं में बाझपन की समस्याओं के कारण व निवारण पर भी प्रकाश डाला। शिविर में आये 45 कृषकों के 320 पशुओं का विभिन्न रोगों जैसे बांझपन, खुरपका, मुंहपका, गलाघोंटू, थनैला आदि के लिये परीक्षण किया गया तथा रोग ग्रसित पशुओं का सफलतापूर्वक उपचार किया गया। साथ ही पशु पालन विभाग द्वारा 1500 पशुओं का टीकाकरण किया गया। शिविर में पशुपालकों में पशु पोषण के प्रति जागरूकता पैदा करने के उद्देश्य से केन्द्र द्वारा पशुपालकों को कृमिनाशक दवाईयों, मिनरल मिक्चर व तरल पशु आहार का वितरण किया गया। इस अवसर पर ग्राम खप्टिहा कलॅा (चौधरी डेरा) के 55 पशुपालकों ने प्रतिभाग किया।
बाँदा कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, बांदा के अन्तर्गत संचालित कृषि विज्ञान केन्द्र, बांदा द्वारा ग्राम पलरा, विकास खण्ड तिन्दवारी जिला बांदा में कृषक भाइयों के क्षमता विकास हेतु एक प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम में स्थानीय सहकारी समिति के अध्यक्ष श्री सुरेश कुमार तिवारी जी ने मुख्य अतिथि के रूप में प्रतिभाग किया। कार्यक्रम में केन्द्र के वैज्ञानिक पौध सुरक्षा डा0 चंचल सिंह ने फसलों के समेकित स्वास्थ्य प्रबन्धन पर विस्तृत चर्चा परिचर्चा की। जिसके क्रम में उन्होनें किसान भाईयों से आग्रह किया कि खेत की मृदा को स्वस्थ रखने हेतु खेत में गोबर की खाद, Farm Yard Manure (FVM) , जीवामृत सहित अन्य कार्बनिक खादों का उपयोग करें। इनमें नत्रजन, स्फुर तथा पोटेशियम तो बहुत कम मात्रा में पाये जाते हैं जबकि सूक्ष्म पोषक तत्व यथा कैल्शियम, मैग्नीशियम, आयरन इत्यादि प्रचुर मात्रा में पाये जाते हैं। जो मृदा के साथ-साथ फसलों को भी स्वस्थ रखने मे बहुत ही उपयोगी होते हैं। मृदा के स्वस्थ रहने पर फसल भी स्वस्थ रहेगी और कीट-व्याधियों का प्रकोप अपेक्षाकृत कम होगा। जिले के समाजसेवी श्री राकेश बाजपेयी जी ने किसान भाईयों को सामुदायिक खेती की तरफ आकर्षित करने का प्रयास किये। जिसके क्रम में उन्होेने बताया कि सहकारिता से न केवल हमारे खेती की लागत कम होगी अपितु हमारी बाजार में मोल-भाव करने की क्षमता बढेगी। परिणामस्वरूप हमारी आय में भी वृद्धि होेगी जो इस क्षेत्र के किसान भाईयों के लिये बहुत ही आवश्यक है। क्षेत्र के पशु चिकित्सक श्री आशीष गुप्ता जी ने पशुओं को स्वस्थ रखने के लिये इनके आहार व आवास प्रबन्धन पर विस्तार से विचार विमर्श किये। तत्पश्चात् कार्यक्रम के मुख्य अतिथि श्री सुरेश कुमार तिवारी जी, अध्यक्ष सहकारी समिति पलरा ने किसान भाईयों को आधुनिक खेती की तकनीकों को अपनाकर अपने आय सृजन हेतु प्रोत्साहित किये। कार्यक्रम में अन्त श्री डी0एन0 अवस्थी जी ने सभी अतिथियों एवं किसान भाईयों का धन्यवाद ज्ञापित किया। कार्यक्रम को सफल बनाने के लिये श्री गंगासागर, श्री बृजभूषण तिवारी, श्री रामनारायण व श्री सत्यनारायण समेत लगभग 40-45 कृषकों ने प्रतिभाग किया।
बाँदा कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, बांदा के अन्तर्गत संचालित के0वी0के0, बांदा द्वारा आज दिनांक 17.08.2024 को ग्राम कैरी, विकासखण्ड - बिसण्डा में ‘‘प्राकृतिक खेती में पोषक तत्व प्रबन्धन" विषय पर प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन किया गया। जिसमें ग्राम के 30 कृषकों नेे प्रतिभाग किया। केन्द्र के विषय वस्तु विशेषज्ञ डा0 चंचल सिंह ने उक्त विषय पर प्रतिभागी कृषकों से चर्चा-परिचर्चा कर जीवामृत तैयार करने एवं इसके उपयोग विधि का व्यवहारिक जानकारी प्रदान की। गाँव के ही दयाल बुनयादी किसान क्लब के सदस्य श्री चन्द्र प्रकाश पटेल को इफको के सौजन्य से ड्रोन प्राप्त हुआ है। प्रशिक्षण कार्यक्रम के क्रम में केंद्र के तकनीकी सहयोग से ड्रोन द्वारा पोषक तत्व (नत्रजन) का अनुप्रयोग धान के एक एकड़ प्रक्षेत्र में सफलतापूर्वक किया गया। किसान क्लब के सयोंजक श्री सुमन जी ने बताया कि ड्रोन द्वारा बांदा जनपद के कोई भी किसान अपने खेत में रू0 300 प्रति एकड की दर से छिडकाव करवा सकते हैं।
बाँदा कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, बाँदा के अन्तर्गत संचालित के0वी0के0, बांदा द्वारा ‘‘काकोरी ट्रेन एक्शन शताब्दी महोत्सव एवं हर घर तिरंगा अभियान’’ विषय पर आज दिनांक 14.08.2024 को कृषक गोष्ठी का आयोजन किया गया। जिसमें 30 ग्रामीण महिलाये/रावे छात्र-छात्राओं ने प्रतिभाग किया। केन्द्र की प्रभारी डा0 प्रज्ञा ओझा, विषय वस्तु विशेषज्ञ (गृहविज्ञान) ने सभी प्रतिभागियों का स्वागत किया तथा उन्हें हर घर तिरंगा के महत्व के बारे में अवगत कराया, और उन्होनें कहा कि ‘‘हर घर तिरंगा’’ आजादी का अमृत महोत्सव के तहत शुरू की गयी एक पहल है। इसे 2021 में भारत स्वतंत्रता की 75 वीं वर्षगांठ मनाने और लोगों को तिरंगा घर लाने के लिये प्रोत्साहित करने के लिये शुरू किया गया था। इस पहल का लक्ष्य लोगों में भारतीय राष्ट्रीय ध्वज के प्रति जागरूकता बढाना और उनमें देशभक्ति की भावना जगाना है। आजादी का अमृत महोत्सव स्वतंत्रता के 75 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में तथा अपने लोगों के गौरवशाली इतिहास, संस्कृति और उपलब्धियों का जश्न मनाने के लिये भारत सरकार की एक पहल है। डा0 ओझा ने बताया कि यह महोत्सव भारतीय लोगों के सम्मान में है, जिन्हें न केवल भारत को उसके विकासवादी पथ पर आगे बढने में मदद की है, बल्कि माननीय यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी को आत्मनिर्भर भारत की भावना में भारत 2 को लांच करने के उनके दृष्टिकोण को साकार करने में मदद करने की शक्ति और क्षमता भी रखते है। केन्द्र के विषय वस्तु विशेषज्ञ (पौध सुरक्षा) डा0 चंचल सिंह ने काकोरी ट्रेन एक्शन में विषय में विस्तार पूर्वक चर्चा की। डा0 सिंह ने बताया कि काकोरी ट्रेन एक्शन 9 अगस्त, 1925 को मध्य उत्तर प्रदेश में एक ट्रेन में हुयी थी। स्वतंत्रता संग्रमा का महत्वपूर्ण हिस्सा रही यह डकैती लखनऊ से करीब 16 कि0मी0 दूर काकोरी शहर में हुयी थी। लखनऊ, सहारनपुर लखनऊ ट्रेन को पण्डित राम प्रसाद बिस्मिल, चंद्रशेखर आजाद, अशफाक उल्ला खां, राजेन्द्र लाहिड़ी और रोशन सिंह ने 09 अगस्त 1925 की रात्रि में लूटकर अंग्रेजी हुकूमत पर बडी चोट की थी। हुकुमत खजाने को लूटने की यह घटना काकोरी और आलमनगर के बीज ट्रेन में होने की वजह से इसका नाम काकोरी कांड दिय गया था। इस काण्ड का मास्टरमाइण्ड राम प्रसाद बिस्मिल को ही बताया जाता है। कार्यक्रम के अन्त में डा0 अर्जुन प्रसाद वर्मा, सहायक प्राध्यापक, कृषि प्रसार ने 15 अगस्त को महत्व के बारे में सभी प्रतिभागियों सेे विस्तारपूर्वक चर्चा की।
बाँदा कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, बांदा के अन्तर्गत संचालित के0वी0के0, बांदा द्वारा ‘‘मौसमी फलों व सब्जियों का परिरक्षण एवं संवर्धन’’ विषय पर दिनांक 12.08.2024 से 01.09.2024 तक 21 दिवसीय रोजगार परक प्रशिक्षण का आयोजन किया जा रहा है। जिसमें 30 ग्रामीण महिलाये/रावे छात्रायें प्रतिभाग कर रही हैं। प्रशिक्षण समन्वयक डा0 प्रज्ञा ओझा ने सभी प्रतिभागियों का स्वागत किया तथा उन्हें मौसमी फल व सब्जियों के परिरक्षण के महत्व के बारे में अवगत कराया, और उन्होनें कहा कि प्रायः हमारे देश में फल व सब्जियों का उचित संग्रहण व्यवस्था न होने के कारण लगभग 25-30 प्रतिशत फल व सब्जी नष्ट हो जाते हैं तथा मौसमी होने के कारण इनकी उपलब्धता वर्ष भर नहीं रहती, इन्हीं कमियों को पूरा करने के लिये फल व सब्जियों का परिरक्षण किया जाता है। इससे वर्ष भर फल व सब्जी की उपलब्धता बढाई जा सकती है तथा एक स्थान से दूसरे स्थान में ले जाने में आसानी रहती है। तदोपरांत डा0 बालाजी विक्रम, सहायक प्राध्यापक उद्यान महाविद्यालय द्वारा सभी प्रतिभागियों को उद्यान महाविद्यालय स्थित फसलोपरान्त तकनीकी विभाग की प्रयोगशाला का भ्रमण कराकर वहां उपस्थित उपकरणों की विस्तृत जानकारी दी। डा0 बालाजी ने कहा कि एक मौसम में अधिक मात्रा में फल व सब्जी उत्पादन होने से बाजार भाव सस्ता रहता है। ऐसी स्थिति में फल व सब्जी को परिरक्षित कर उसे अन्य मौसम मेें विक्रय करने से अधिक लाभ कमाया जा सकता है। इसी प्रशिक्षण में आज करौंदे का अचार व आम का स्काॅष प्रतिभागियों से तैयार करवाया गया। कार्यक्रम के अंत में डा0 दीक्षा पटेल ने सभी प्रतिभागियों का धन्यवाद ज्ञापन किया। इस कार्यक्रम में डा0 बी0के0 गुप्ता, सहायक प्राध्यापक, डा0 धीरज मिश्रा, सहायक प्राध्यापक, डा0 अर्जुन प्रसाद वर्मा, सहायक प्राध्यापक, डा0 अभिषेक कालिया सहायक प्राध्यापक तथा डा0 चंचल सिंह, वि0व0वि0 (पौध सुरक्षा) उपस्थित रहे।
आज दिनांक 08.08.2024 को कृषि विज्ञान केन्द्र, बांदा द्वारा क्लोवर आर्गेनिक प्राईवेट कम्पनी लिमिटेड देहरादून के सौजन्य से बांदा जनपद के दो कृषक उत्पादन संगठन क्रमशः मढीदाई आर्गेनिक फार्मर प्रोडयूसर कम्पनी लिमिटेड बबेरू एवं कमासिन कृषक फार्मर प्रोडयूरस कम्पनी लिमिटेड कमासिन के 20 निदेशकों/सीईओ हेतु ‘‘खरीफ फसलों की उन्नतशील तकनीकी’’ विषय पर एक दिवसीय प्रशिक्षण एवं भ्रमण का कार्यक्रम का आयोजन कराया गया। कार्यक्रम का शुभारम्भ करते हुये केन्द्र के अध्यक्ष डा0 श्याम सिंह ने सभी प्रशिक्षणार्थियों का स्वागत किया साथ ही कृषक उत्पादक संगठन को लाभकारी बनाने हेतु सुझाव दिये, तदोपरांत तकनीकी सत्र में खरीफ फसलों में सस्य क्रियायें विषय पर डा0 श्याम सिंह ने खरीफ फसलों में एकीकृत कीट एवं रोग प्रबन्धन विषय पर डा0 चंचल सिह, वि0व0वि0 (पौध सुरक्षा), कटाई उपरान्त फसल प्रबन्धन विषय पर डा0 प्रज्ञा ओझा, वि0व0वि0 (गृह विज्ञान) तथा एफ0पी0ओ0 हेतु बाजार आधारित रणनीतियां विषय पर डा0 दीक्षा पटेल, वि0व0वि0 (कृषि प्रसार) ने प्रतिभागियों को प्रशिक्षित किया। तदोपरांत प्रशिक्षणार्थियों को केन्द्र की प्रयोगशालायें, क्राप कैफेटेरिया तथा एकीकृत फसल प्रणाली में भ्रमण भी कराया गया।
दिनांक 20-21.07.2024 को बांदा कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय, बांदा द्वारा श्रीअन्न महोत्सव का आयोजन किया गया, जिसमें कृषि विज्ञान केन्द्र, बांदा द्वारा सक्रिय रूप से आयोजन में भाग लिया गया। दिनांक 20.07.2024 को महोत्सव में श्री अन्न व्यंजन प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। जिसमें केन्द्र के प्रोत्साहन/प्रयास से 06 महिला कृषकों ने प्रतिभाग किया तथा दिनांक 21.07.2024 को महोत्सव में श्रीअन्न प्रदर्शनी का आयोजन किया गया, जिसमें केन्द्र द्वारा स्टाॅल लगाया गया तथा प्रदर्शनी का भ्रमण उ0प्र0 सरकार के कृषि एवं कृषि षिक्षा व अनुसंधान मंत्री मा0 श्री सूर्यप्रताप शाही जी, बांदा चित्रकूट के पूर्व सांसद श्री आर0के0 पटेल एवं पूर्व संासद श्री रमेश चन्द्र द्विवेदी के अलावा मिलेट्स मैन आफ इण्डिया पदमश्री डा0 खादर वली एवं बांदा कृषि विष्वविद्यालय के प्रबन्ध समिति के सदस्य मा0 श्री श्यामबिहारी गुप्ता जी द्वारा अवलोकन किया गया। इस अवसर पर एक गोष्ठी का आयोजन किया गया। जिसमें केन्द्र से प्रोत्साहित 100 से अधिक श्री अन्न उत्पादन करने वाले जनपद बांदा के 05 प्रगतिशील कृषकों सहित पूरे बुन्देलखण्ड से कुल 20 कृषकों को सम्मानित भी किया गया।
बाँदा कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, बाँदा के अन्तर्गत संचालित के0वी0के0, बांदा द्वारा ग्राम पचनेही में “धान की नर्सरी प्रबन्धन” विषय पर एक दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम के दौरान केन्द्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं अध्यक्ष डा0 श्याम सिंह ने धान की नर्सरी प्रबन्धन हेतु विधिवत् जानकारी कृषकों को दी जोकि निम्नलिखित है- बीज, बीज शोधन एवं नर्सरी की तैयारी:- रोपाई हेतु स्वस्थ्य पौध तैयार करने के लिये नर्सरी डालते समय विशेष सावधानी बरतनी चाहियें। एक हे0 की रोपाई हेतु 800 से 1000 वर्ग मी0 क्षेत्रफल में नर्सरी डालनी चाहिये इस क्षेत्र को 01 मी0 चैडी एवं सुविधानुसार लम्बाई की छोटी-छोटी उठी हुयी क्यारियों में बांट लें। दो क्यारियों के बीच 45 से0मी0 चैडी व 01 फीट गहरी नाली छोडे जो जल निकास व गर्मी में सीपेज द्वारा पौधों को नमी पंहुचाने के काम आयेेगी। बीज की मात्रा:- महीन प्रजाति 30 कि0ग्रा0 है, मध्यम प्रजाति - 35 कि0ग्रा0/हे0, मोटी प्रजाति-40 कि0ग्रा0 हे0 एवं उसरीली भूमियों में 25 प्रतिशत बीज की मात्रा बढा देनी चाहिये। बीजोपचार एवं बीज जगाना:- जीवाणु झुलसा के लिये धान के 25 कि0ग्रा0 बीज को उपचारित करने के लिये 04 ग्राम स्ट्रैप्टोसाईक्लिन सल्फेट या 40 ग्रा0 प्लान्टामायसीन दवाई को 45 ली0 पानी में घोल लें। रातभर के लिये डुबो दें, फिर 24-36 घण्टे तक अंधेरे कमरे में बीज अंकुरण कर लेव लगे तैयार खेत में इसकी समान रूप से छिडक दें। बीजोपचार के लिये 25 कि0ग्रा0 बीजोपचार हेतु 75 ग्राम थायराम या 50 ग्रा0 कर्बेन्डाजिम को 8-10 ली0 पानी में घोलें, इस घोल में बीज जो 10-15 मिनट के लिये डुबो दें फिर बाहर निकालकर अंकुरण हेतु 24-36 घंटे अंधेरे में रखें, फिर लेव लगे खेत में समान रूप से छिडक दें। ट्राईकोडर्मा नाम फंफूद ( 125 ग्राम प्रति 25 कि0ग्रा0 बीज की दर से) भी बीजोपचार किया जा सकता है। प्रति 100 वर्ग मीटर क्षेत्र में 50 से 70 ग्राम (सूखा) बीज की बुवाई क्यारियों में करनी चाहिये। नर्सरी की तैयारी:- नर्सरी से पौधों को आसानी से उखाडने के लिये नर्सरी वाले खेत में 5-8 टन गोबर की खाद प्रति हे0 की दर से प्रयोग करें। इसके अलावा प्रति 100 वर्ग मी0 क्षेत्रफल की क्यारियों में 01 कि0ग्रा0 नत्रजन 0.4 कि0ग्रा0 फास्फोरस और 0.5 कि0ग्रा0 पोटाष उपलब्ध करने के लिये 870 ग्रा0 डी0ए0पी0 और 300 ग्राम न्यूरेट आॅफ पोटाष का प्रयोगर करें। रोपाई के एक सप्ताह पूर्व आधे से एक कि0ग्रा0 यूरिया प्रति 100 वर्ग मी0 प्रयोग करें। सिंचाई:- शुरू के कुछ दिन क्यारी को नम रखे पानी न भरें, जब 02 से0मी0 बडी पौध हो जाये तब हल्की पानी की परत बना सकते हैं। यदि धूप तेज हो तो पानी न भरें। नर्सरी की फसल सुरक्षा:- खैरा रोग - 5 कि0ग्रा0 सल्फेट़़ ़ 20 कि0ग्रा0 यूरिया का 1000 ली0 पानी/हे0 क्षेत्रफल की दर से छिडकाव बुआई के 10-14 दिन बाद। सफेदा रोग:- 04 कि0ग्रा0 जिंक सल्फेट ़ 20 कि0ग्रा0 यूरिया़ 1000 ली0 पानी/हे0 भूरा धब्बा रोग - 02 कि0ग्रा0 जिंक मैगजीन कर्बामेट़ 600 ली0 पानी/हे0 कीटों से बचाव - 1.25 ली0 क्लोरापापटीफॅास 20 ई0सी0 ़ 600 ली0 पानी/हे0 सावधानी - 1. गर्मी में नर्सरी में पानी भरा न रहे। इसे निकालकर पुनः पानी देना सुनिष्चित करें। 2. यदि ज्यादा क्षेत्रफल में धान रोपाई की योजना है तब पानी, भूमि व अन्य संसाधनों की उपलब्धता के अनुसार नर्सरी की बुवाई एक साथ न करके 2-5 दिन के अन्तराल पर थोडी-थोडी करें, जिससे हमें 21 से 25 दिन की पौध पूरे क्षेत्र को रोपाई हेतु उपलब्ध हो सके। रोपाई के 15-20 दिन बाद घास उग आने पर - विस्पायरी बैंक सोडियम 10 प्रतिशत एस0सी0 0.20 ली0 मात्रा को 500-600 ली0 पानी में मिलाकर छिडकाव करने से संकरी व चैडी पत्ती वाले सभी खरपतवार नियंत्रित हो जाते हैं। नर्सरी - नर्सरी बुआई के 2-3 दिन के अन्दर प्रेटिलाक्लोर 50 ई0सी0 / 1.25 ली0/हे0 की दर से 12-15 कि0ग्रा0 बालू में मिलाकर प्रयोग करते समय खेत में नमी होनी चाहिये। कार्यक्रम में ग्राम के 25 कृषकों ने प्रतिभाग किया।
बांदा कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, बांदा के अन्तर्गत संचालित के0वी0के0, बांदा में दिनांक 24-05-2024 को केन्द्र द्वारा मृदा स्वास्थ्य अभियान के अन्तर्गत ग्राम कनवारा में एक दिवसीय कृषक प्रशिक्षण का आयोजन किया गया। जिसमें केन्द्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक डा0 श्याम सिंह द्वारा किसानों में मृदा स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता पैदा करने के उद्देश्य से बताया कि पौधों को आवश्यक 16 तत्वों में से कार्बन, हाईड्रोजन व आक्सीजन को छोडकर शेष 13 तत्वों का माध्यम मृदा ही है। मृदा में इन पोषक तत्वों की कमी या असंतुलन के कारण पौधों का पोषण प्रभावित होता है। फसलों की बेहतर पैदावार के लिये उनका पोषण प्रबन्धन महत्वपूर्ण हो जाता है। पोषण प्रबन्धन करने के लिये यह जानना आवश्यक है कि फसल की पोषक तत्वों की मांग क्या हैं एवं मृदा में उसकी मात्रा व उपलब्धता कितनी है। फसलों की मांग उनकी प्रजातियों के अनुसार वैज्ञानिकों द्वारा अनुमोदित होती है। मृदा में पोषक तत्वों की मात्रा एवं उनकी उपलब्धता ज्ञात करने के लिये मृदा की जांच कराना आवश्यक है। मृदा जंाच प्रयोगशाला में की जाती है। इसके लिये खेत से मिट्टी का नमूना लिया जाता है। मृदा जांच कब करायें:- फसल काटने के पश्चात् सर्वप्रथम खाली खेत से नमूना लेना चाहिये। नमूना कैसे लें:- एक एकड समतल क्षेत्र से एक नमूना लेना चाहिये। एक नमूना बनाने हेतु खेत मेें चारों ओर मेड से 2 मी0 स्थान छोडकर 5-6 स्थानों से मिट्टी ली जाती है मिट्टी कितनी गहराई तक लें:- मिट्टी लेने के लिये खाद्यान्न फसलें सब्जी व अन्य मौसमी फसलों के लिये 0 से 15 से0मी0 गन्ना, कपास, आलू जैसे गहरी जडों वाली फसलों के लिये 0 से 30 से0मी0 गहराई के अलग-अलग नमूने लिये जाते हैं। नमूना तैयार करना:- खेत से चार-पांच जगह से लिये गये मिट्टी के नमूनों को एक साथ एक साफ पोलिथीन या पक्के फर्ष पर एकत्र कर मिला लेते हैं इस मिले ढेर के चार बराबर भाग करते हैं, फिर आमने सामने वाले 2 भाग को फेंक दें शेष दो को फिर मिलाकर ढेर बनायें, इस ढेर को फिर चार भागों में बांटकर, यह प्रक्रिया दोहरायें जब तक शेष मिट्टी 100-150 ग्राम न बच जाये, यही आपका नमूना है।नमूने को छायादार स्थान पर सुखाकर महीन पीस लेते हैं और इसको चलनी से छान लेते है। नमूना साफ कपडा या पोलीथीन की थैली में भरकर मुह बांध देते हैं। नमूने की पहचान के लिये दो लेवल मोटे कागज पर कृषक का नाम, पिता का नाम,खेत की पहचान, आगे बोयी जाने वाली फसल का नाम आदिसूचनायें लिखकर तैयार किये जाते हैं जिसमें से एक को थैली के अन्दर तथा एक को धागे से थैली के मुंह पर बांध देते है। सावधानियाँ :- 1. नमूने को रसायनों, खाद व धूप से बचाकर रखें। 2. नमूना लेने वाले यंत्र खुरपी आदि पर जंग न लगी हों। 3. खाद की बोरी का प्रयोग कभी न करें। 4. नमूने को साफ कपडे की थैली या नई पोलीथीन में रखें। 5. खडी फसल में नमूना लेने से बचें।
बांदा कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, बांदा के अन्तर्गत संचालित के0वी0के0, बांदा के प्रांगण में दिनांक 22.02.2024 को ‘‘महिला सशक्तिकरण: स्वावलम्बी समाज का आधार’’ विषय पर एक दिवसीय महिला किसान मेला एवं गोष्ठी का भव्य आयोजन किया गया। इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में श्रीमती मालती गुप्ता बासू, अध्यक्ष नगर पालिका परिषद, बांदा व अध्यक्ष के रूप में विश्वविद्यालय के माननीय कुलपति महोदय डा0 (प्रो0) एन0पी0 सिंह, उपस्थित रहें। माननीय कुलपति महोदय ने उपस्थित महिला कृषकों से विश्वविद्यालय के सामुदायिक विज्ञान महाविद्यालय अन्तर्गत संचालित ग्रामीण महिला कौषल एवं उद्यमिता विकास केन्द्र की गतिविधियों से जुडने के लिये आवाहन् किया। उन्होने कहाकि भारत की आधी आबादी घर के कामों में व्यस्त रहती हैं। अगर यही आबादी देश के विकास के क्षेत्रों में कार्य करे तो भारत की विकास दर दूनी हो जायेगी। सरकार द्वारा महिला सशक्तिकरण की बहुत सी योजनायें चलायी जाती हैं जिनका लाभ सभी महिलाओं तक पहुंचाना हम सभी का नैतिक कर्तव्य है। उन्होंने माननीया राज्यपाल महोदया द्वारा महिला सशक्तिकरण के लिये किये जा रहे कार्यों की सराहना की और कहा कि उ0प्र0 सरकार भी प्रदेष में महिला सशक्तिकरण के लिये प्रतिबद्ध हैं। इस अवसर पर विश्वविद्यालय के निदेशक प्रसार डा0 एन0के0 बाजपेयी, सह निदेशक प्रसार डा0 नरेन्द्र सिंह, डा0 आनन्द सिंह, के0वी0के0 झांसी की अध्यक्ष डा0 निशी राय, सह अधिष्ठाता डा0 वन्दना कुमारी, विश्वविद्यालय के महिला प्राध्यापकगण डा0 प्रिया अवस्थी, डा0 वैशाली गंगवार, आदि उपस्थित रहें। कार्यक्रम का शुभारम्भ माननीय अतिथियों द्वारा दीप प्रज्जवन कर किया गया तथा सभी अतिथियों द्वारा मेले में आयोजित कृषि प्रदर्शनी का भी अवलोकन किया गया। सर्वप्रथम केन्द्र के अध्यक्ष डा0 श्याम सिंह द्वारा सभी अतिथियों का पुष्प गुच्छ प्रदान कर स्वागत किया गया। तदोपरांत मेला समन्यवक डा0 प्रज्ञा ओझा ने महिला किसान मेला की अवधारणा व उद्देश्य से सभी को अवगत कराया। उन्होनें कहा कि इस मेले का मुख्य उद्देश्य बुन्देलखण्ड की महिलाओं में कृषि सम्बन्धी नवीन तकनीकी के प्रति जागरूकता पैदा करना, कृषि में महिलाओं की भागदारी बढाना तथा उनकी अभियुक्ति व प्रतिभा को निखारना है। यह मेला विषेष तौर पर महिलाओं के लिये आयोजित किया किया गया है। तदोपरांत निदेशक प्रसार महोदय ने कहा कि यह मेला ग्रामीण महिलाओं की प्रतिभाओं को निखारने व उन्हें सम्मानित करने के लिये आयोजित किया जा रहा है। इस प्रकार के मेले विश्वविद्यालय के अन्तर्गत संचालित सभी कृषि विज्ञान केन्द्रों पर आयोजित कराये जायेंगें। .कार्यक्रम की मुख्य अतिथि श्रीमती मालती बासू ने अपने उद्बोधन में कहा कि किसी भी राष्ट्र के विकसित होने में महिलाओं अहम योगदान होता है। एक सषक्त महिला ही पूरे राष्ट्र को सषक्त बना सकती है। महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त करनेे के लिये भारत व उ0प्र0 सरकार द्वारा चलायी जा रही योजनाओं के प्रति जागरूक होना होगा। मेले में महिलाओं/ग्रामीण युवतियों हेतु विभिन्न प्रतियोगिताओं का भी आयोजन किया गया था। जैसे रंगोली, मेंहंदी, नृत्य व श्रीअन्न आधारित व्यंजन प्रतियोगिता, इन सभी प्रतियोगिताओं में प्रथम, द्वितीय व तृतीय स्थान प्राप्त करने वाली महिलाओं/युवतियों को प्रमाण पत्र देकर सम्मानित किया गया। विश्वविद्यालय के कृषि विज्ञान केन्द्रों से जुडी हुयी 08 प्रगतिशील महिला कृषकों को उनके द्वारा कृषि/उद्यम में किये गये उत्कृष्ट कार्य हेतु सम्मानित किया गया। जिसमें से जनपद बांदा की श्रीमती मैना देवी ग्राम खप्टिहा कलाॅ, श्रीमती सूरजकली निषाद ग्राम कनवारा, श्रीमती आरती सिंह ग्राम कैरीे, श्रीमती राजरानी ग्राम पपरेंदा, श्रीमती रामबाई ग्राम सेमरीे, श्रीमती तान्या आहूजा बांदा, जनपद झांसी की श्रीमती द्रोपदी श्रीवास ग्राम भोजला, जनपद महोबा की श्रीमती अनीता तिवारी ग्राम सूपा आदि शामिल है। इस अवसर पर केन्द्र के महिला विषय वस्तु विशेषज्ञ डा0 प्रज्ञा ओझा एवं डा0 दीक्षा पटेल को उनके द्वारा किये गये महिला शक्तिकरण एवं उद्यमिता विकास कार्यों हेतु सम्मानित किया गया। मेले में तकनीकी सत्र का भी आयोजन किया गया। जिसमें रसोई वाटिका द्वारा खाद्य एवं पोषण सुरक्षा विषय पर डा0 प्रज्ञा ओझा, स्वयं सहायता समूह का गठन एवं उपयोगिता विषय पर डा0 दीक्षा पटेल, मोटे अनाज की उपयोगिता विषय पर डा0 सरिता देवी, बाल्य सुरक्षा एवं स्वास्थ्य जागरूकता विषय पर डा0 राजकुमारी एवं खाद्य प्रसंस्करण से उद्यमिता विकास विषय पर डा0 अमृता ने महिला कृषकों को प्रषिक्षित किया। कार्यक्रम में जनपद के विभिन्न ग्रामों से लगभग 350 महिला कृषकों/ ग्रामीण युवतियों/छात्राओं ने प्रतिभाग किया।
आज दिनांक 08.02.2024 को ग्राम मटौंध ग्रामीण में ‘‘किसान सारथी पोर्टल: आवश्यक एवं जागरूकता’’ विषय पर एक दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम का अयोजन किया गया। सर्वप्रथम केन्द्र की विशेषज्ञ डा0 दीक्षा पटेल ने सभी उपस्थित कृषकों का स्वागत किया तथा कहा कि कृषि एवं किसान के चहुमुंखी विकास के लिये खेती में सूचना संचार तकनीकी का प्रयोग आवश्यक है। भारत सरकार द्वारा इस क्षेत्र में अनेकों पहल की गयी है। उनमें से हाल ही में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के 93 वें स्थापना दिवस के अवसर पर 16 जुलाई, 2021 को किसान सारथी प्लेटफार्म का शुभारम्भ किया गया। इस पोर्टल की मदद से किसान भाई घर बैठे कृषि विज्ञान केन्द्र के वैज्ञानिकों से अपनी कृषि सम्बन्धी समस्या का समाधान प्राप्त कर सकते हैं साथ ही समसामयिक जानकारी भी मोबाईल संदेश के माध्यम से प्राप्त कर सकते हैं। उन्होेनें बताया कि किसान सारथी पर पंजीकरण हेतु किसान भाई सर्वप्रथम ूूूणपेंदेंतंजीपण्पद पर जाकर वैद्य मोबाइल नम्बर डालकर तथा अपनी समान्य जानकारी जैसे नाम, उम्र, खेतिहर भूमि, जनपद, विकासखण्ड, ग्राम, जानकारी प्राप्त करने हेतु भाषा आदि भरकर अपना पंजीकरण कर सकते हैं। तदोपरांत के0वी0के0 के वैज्ञानिकों से बात करने हेतु 1800 123 2175 पर अपने पंजीकृत नम्बर से फोन करें। इस प्रकार किसान भाई घर बैठे जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। प्रषिक्षण में केन्द्र के विषेषज्ञ डा0 चंचल सिंह ने भी पौध सुरक्षा सम्बन्धी समसामयिक जानकारी प्रदान की। केन्द्र द्वारा ग्राम में आयोजित अलसी प्रजाति बी0य0ूए0टी0 अलसी-04 के प्रदर्षनों का कृषक प्रक्षेत्र पर भ्रमण कर निरीक्षण भी किया गया साथ ही कृषकों में प्रदर्शित प्रजाति के प्रति जागरूकता पैदा करने के उद्देश्य से प्रक्षेत्र दिवस का आयोजन भी किया गया।
बांदा कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, बांदा के अन्तर्गत संचालित के0वी0के0, बांदा में आज दिनांक 06.02.2024 को केन्द्र पर संचालित प्राकृतिक खेती परियोजनान्तर्गत दो दिवसीय कृषक प्रशिक्षण का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम का शुभारम्भ कार्यक्रम के मुख्य अतिथि डा0 नरेन्द्र सिंह, सह निदेशक प्रसार, बी0यू0ए0टी0, बांदा द्वारा दीप प्रज्जवलन कर किया गया। कार्यक्रम में जनपद के प्राकृतिक खेती कर रहे या करने के इच्छुक 30 कृषकों का चयन किया गया, जिन्हें 02 दिवसों में प्राकृतिक खेती की विभिन्न विधाओं में परांगत किया जायेगा। कार्यक्रम का शुभारम्भ करते हुये केन्द्र के अध्यक्ष डा0 श्याम सिंह ने मुख्य अतिथिएवं सभी कृषकों का स्वागत किया। तदोपरान्त केन्द्र के विशेषज्ञ व प्राकृतिक खेती परियोजना के नोडल अधिकारी डा0 चंचल सिंह ने दो दिवसीय कार्यक्रम की रूपरेखा व उद्देश्य से सभी को अवगत कराया। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि डा0 नरेन्द्र सिंह ने प्राकृतिक खेती का वर्तमान परिदृष्य में महत्व विषय पर चर्चा की। उन्होनें कहा कि प्राकृतिक खेती का मुख्य उद्देश्य मानव को संन्तुलित एवं रसायनमुक्त भोजन उपलब्ध कराना है। उन्होनें कहाकि आधुनिक रासायनिक खेती से उत्पादन तो बढा है पर इसके दुष्प्रभावों के परिणाम स्वरूप मनुष्यों में बीमारियां भी बढी हैं साथ ही मृदा के स्वास्थय पर प्रतिकूल प्रभाव पडा है। इन सभी की रोकथाम हेतु कृषकों को प्राकृतिक खेती अपनानी होगी। तदोपरान्त तकनीकी सत्र में प्राकृतिक खेती के सिद्धान्त, आचरण एवं एकीकृत दृष्टिकोण विषय पर डा0 श्याम सिंह व प्राकृतिक खेती से मृदा स्वास्थ्य विषय पर विश्वविद्यालय के सहायक प्राध्यापक डा0 अमित मिश्रा ने कृषकों को प्रशिक्षित किया। कार्यक्रम में कृषकों को केन्द्र की प्राकृतिक खेती परियोजना अन्तर्गत स्थापित प्रक्षेत्रों पर भ्रमण भी कराया गया।
एकीकृत बागवानी मिशन योजनान्तर्गत जिला उद्यान अधिकारी बांदा द्वारा आयोजित दो दिवसीय कृषक मेला एवं संगोष्ठी में केन्द्र के 03 विशेषज्ञों द्वारा भाग लिया गया। मुख्य विकास अधिकारी, बांदा की अध्यक्षता में सम्पन्न इस मेलेे में पद्मश्री से सम्मानित जलपुरूष श्री उमाशंकर पाण्डेय, बडोखर ब्लॅाक प्रमुख श्री स्वर्ण सिंह ‘सोनू’ के अलावा अन्य विभागों के अधिकारियों एवं 250 से अधिक कृषकों ने प्रतिभाग किया। केन्द्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक डा0 श्याम सिंह द्वारा ‘‘प्राकृतिक खेती से ही टिकाऊ खेती सम्भव है,’’ विषय पर प्रकाश डाला तथा बताया कि प्राकृतिक रूप से निर्मित खादों एवं जीवनाशियों के प्रयोग से भूमि की उर्वरा शक्ति बढती है और लाभकारी जीवाणुओं की संख्या में वृद्धि होती है। डा0 चंचल सिंह ने बागवानी को बांदा की आवश्यकता बताया और कहा कि कृषकों को बागवानी को बढाना देना चाहिये इससे जहां प्रकृति संसाधनों का संरक्षण होता है, वहीं वर्ष भर आय भी प्राप्त होती है। उन्होने बागवानी के वैज्ञानिक तरीकों पर भी प्रकाश डाला। डा0 मानवेन्द्र सिंह ने पशुओं को ठंड से बचाव के उपायों पर विस्तार से चर्चा की एवं टीकाकरण के महत्व पर प्रकाश डाला।
आज दिनांक 11.01.2024 को केन्द्र के डा0 चचंल सिंह एवं डा0 दीक्षा पटेल ने कृषकों के प्रदर्शन प्रक्षेत्रों में भ्रमण किया साथ ही प्रक्षेत्र दिवस एवं प्रशिक्षण कार्यक्रम का भी आयोजन केन्द्र द्वारा कराया गया। कृषि विज्ञान केन्द्र, बांदा में कलस्टर अग्रिम पंक्ति प्रदर्शन- तिलहन अन्तर्गत अलसी प्रजाति (बी0यू0ए0टी0-अलसी-04) के ग्राम गुरेह, विकास खण्ड बडोखर खुर्द में कुल 5.6 हे0 क्षेत्रफल पर 14 अग्रिम पंक्ति प्रर्दशनों का आयोजन कराया जा रहा है। सर्वप्रथम डा0 दीक्षा पटेल ने सभी कृषकों का कार्यक्रम में स्वागत किया और ग्राम में आने का उद्देश्य बताया साथ ही चयनित कृषकों से बी0यू0ए0टी0-अलसी-04 के प्रदर्शन के बारे में चर्चा की। उन्होेनें बताया कि यह प्रजाति बांदा कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय, बांदा द्वारा वर्ष 2020 में तैयार की गयी है। यह प्रजाति बुन्देलखण्ड क्षेत्र के लिये उत्तम है। इसका औसत उत्पादन 12-15 कु0/हे0 होता है तथा इसमें तेल 35-40 प्रतिशत विद्यमान होता है। कृषकों ने भी इस प्रजाति के प्रक्षेत्र प्रदर्शन पर सत्ंाोष जताया। तदोपरांत डा0 चचंच सिंह ने अलसी में लगने वाली कलिका मक्खी के प्रबन्धन विषय पर कृषकों को प्रशिक्षित किया। अलसी में कलिका मक्खी के प्रभावी प्रबन्धन हेतु इमीडाक्लोप्रिड 17.8 ैस्/ 0.5 मि0ली0/ली0 पानी की दर से उपयोग करने हेतु कृषकों को सलाह दी साथ ही 10 कृषकों को अग्रिम पंक्ति प्रदर्शन हेतु इमीडाक्लोप्रिड के प्रदर्शन भी आयोजित कराये गये। कार्यक्रम में अलसी में कलिका मक्खी के प्रबन्धन के लिये कीटनाशी के छिडकाव का विधि प्रदर्शन भी आयोजित किया गया । कार्यक्रम में 20 कृषकों ने प्रतिभाग किया। कार्यक्रम को सफल बनाने में ग्राम के प्रगतिशील कृषक श्री अशोक सिंह, श्री बृजभूषण सिंह एवं श्री छत्रसाल सिंह आदि का विशेष योगदान रहा।
दिनांक 09.01.2024 को के0वी0के0, बांदा में कलस्टर अग्रिम पंक्ति प्रदर्शन- तिलहन अन्तर्गत ‘‘सरसों में नैनो डी0ए0पी0 के प्रयोग’’ विषय पर प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किया गया। इसका मुख्य उद्देश्य जनपद में तिलहन की उत्पादकता बढाना साथ ही सरसों फसल में ईफको द्वारा निर्मित नैनो डी0ए0पी0 का प्रयोग के प्रति किसानों को जागरूक करना था। कार्यक्रम का शुभारम्भ करते हुये केन्द्र के अध्यक्ष डा0 श्याम सिंह ने सभी कृषकों का केन्द्र पर स्वागत किया । तदोपरान्त उन्होनें नैनो डी0ए0पी0 के महत्व व उपयोगिता पर प्रकाश डाला। उन्होनें कहा कि नैनो डी0ए0पी0 (तरल) एक उत्तम नैनो उर्वरक है जिसे ईफको द्वारा निर्मित किया गया है। इसमें नाईट्रोजन 08 प्रतिशत एवं फास्फोरस 16 प्रतिशत निहित है। इसमें विद्यमान पोषक तत्वों की उपयोग दक्षता 90 प्रतिशत हैं जबकि नाईट्रोजनयुक्त उर्वरकों की 50-60 प्रतिशत और फास्फोरस युक्त उर्वरकों का 15-20 प्रतिशत भाग ही पौंधों द्वारा उपयोग में आता है, शेष मिट्टी, हवा व पानी को प्रदूषित करता है। नैनो डी0ए0पी0 का फसल पर सही और समुचित प्रयोग करने से पर्यावरण को नुकसान पहुंचाये बिना पौंधों को पोषण प्रदान करता है। इसका फसल पर सही और समुचित प्रयोग करने से पर्यावरण को नुकसान पंहुचाये बिना पौधों को पोषण प्रदान करता है। फसल पर इसे 2-4 मिली0/ली0 पानी के हिसाब से सायंकालीन खेतों पर छिडकाव करें। 250-500 मि0ली0 की मात्रा एक एकड के लिये पर्याप्त होती है। तदोपरान्त केन्द्र के विषय वस्तु विषेषज्ञ (पौध सुरक्षा) डा0 चंचल सिंह ने सरसों में लगने वाले माॅहू कीट से बचाव हेतु नीम तेल के छिडकाव विषय पर चर्चा की, उन्होनें बताया कि जनवरी माह में माॅहू की समस्या आ जाती है। ऐसे में फसलों में 02 मि0ली0/ली0 पानी के हिसाब से नीम आयल का छिडकाव करें। इस कार्यक्रम में प्रतिभागी कृषकों को नैनो डी0ए0पी0 (आधा ली0 प्रति कृषक) एवं नीम तेल (आधा ली0/कृषक) निवेश भी उपलब्ध करायें गयें। इस कार्यक्रम में कनवारा ग्राम के चयनित 25 कृषकों ने प्रतिभाग किया।
किसानों के मसीहा भारत के पूर्व प्रधानमंत्री स्व0 श्री चौधरी चरण सिंह जी के जन्मदिवस को किसान सम्मान दिवस के रूप में कृषि विज्ञान केन्द्र, बांदा में दिनांक 23.12.2023 को मनाया गया। इस अवसर पर कृषक गोष्ठी एवं प्रदर्शनी की आयोजन केन्द्र के परिसर में किया गया। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में श्री आशीष कुमार यादव, ग्राम प्रधान कनवारा उपस्थित रहे। इस कार्यक्रम में जनपद के विभिन्न ग्रामों के 65 कृषक/महिला कृषकों ने प्रतिभाग किया। इस अवसर पर सभी अतिथियों एवं कृषकों द्वारा चौधरी साहब के छाया चित्र पर माल्यार्पण कर उन्हें नमन करते हुये याद किया गया एवं वक्ताओं ने चौधरी साहब के आदर्षों की पालना करने का आवाहान किया। केन्द्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक डा0 श्याम सिंह ने चौधरी चरन सिंह जी की जीवनी पर प्रकाष डालते हुये उनके कृषक हित में किये गये कार्यों का उल्लेख किया, उन्होनें कृषकों से आवाहान किया कि वे विश्वविद्यालय एवं कृषि विज्ञान केन्द्र से जुडकर खेती में वैज्ञानिक तरीकों को अपनायें, साथ ही उन्होनें कृषकों को बताया कि वर्तमान वर्ष 2023 को अन्तराष्ट्रीय मोटे अनाज वर्ष के रूप में मनाया जा रहा है। कृषकों से चर्चा करते हुये उन्होनें श्रीअन्न (मोटे अनाज) की महत्वतता के बारे में अवगत कराया एवं सभी आये हुये कृषक बन्धुओं से आवाहान किया कि वे सभी अपने खेतों पर श्रीअन्न के उत्पादन को बढावा दें साथ ही डा0 श्याम सिंह ने कृषकों को प्राकृिितक खेती के महत्च एवं इससे जुडी महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान की। कार्यक्रम में आये हुये कृषकों को केन्द्र के पशुविज्ञान के वैज्ञानिक डा0 मानवेन्द्र सिंह ने प्राकृतिक खेती में पशुपालन का महत्व विषय पर चर्चा करते हुये बताया कि पषुपालन की उपयोगिता सिर्फ दुग्ध उत्पादन तक ही सीमित ही नहीं है अपितु गाय के गोबर व गौमूत्र को वैज्ञानिक तरीकों से बीजामृत, घनजीवामृत आदि में परिवर्तित कर रासायनिक खादों की जगह खेती में प्रयोग में ले सकते है। इससे न सिर्फ खेती की लागत में कमी आयेगी साथ ही रासायनिक खादों के उपयोग से होने वाले दुष्प्रभावों से बचा जा सकेगा। कार्यक्रम के अन्त में केन्द्र की वैज्ञानिक डा0 दीक्षा पटेल ने कार्यक्रम में पधारें सभी अतिथियों विभिन्न ग्रामों से आये कृषकों एवं सभी सहकर्मियों को धन्यवाद् ज्ञापित किया।
दिनांक 05.12.2023 को केन्द्र पर ‘‘विश्व मृदा स्वास्थ्य दिवस’’ के अवसर पर कृषक गोष्टी का आयोजन किया गया। संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन द्वारा वर्ष 2014 से प्रत्येक वर्ष 05 दिसम्बर को विश्व मृदा स्वास्थ्य दिवस मनाने के लिए कहा गया। जिसका मुख्य उद्देश्य मानव जीवन में मिट्टी के महत्व को याद रखना तथा मृदा स्वास्थ्य एवं संरक्षण के प्रति लोगों को जागरूक करना है। वर्ष 2023 में ”मृदा एवं जलः जीवन के स्त्रोत“ थीम पर विश्व मृदा दिवस मनाया जा रहा है। कार्यक्रम का शुभारम्भ करते हुये केन्द्र की प्रभारी डा0 प्रज्ञा ओझा ने सभी प्रतिभागियों को विश्व मृदा स्वास्थ्य दिवस की महत्ता एवं उद्देश्य के बारे में अवगत कराया और कहा कि इस कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य मृदा स्वास्थ्य के प्रति कृषकों में जागरूकता को बढ़ाना है, साथ ही उन्होंने कृषकों का आवाहन् किया कि कृषि विज्ञान केन्द्र, बाँदा में आकर मृृदा की जाँच अवश्य कराये तथा उर्वरकों की संस्तुत मात्रा ही अपनी फसलों में प्रयोग करें। इस अवसर पर तकनीकी सत्र का भी आयोजन किया गया जिसमें केन्द्र के विषय वस्तु विशेषज्ञ डा0 चंचल सिंह ने रबी फसलों में मृदा जनित कीट एवं ब्याधियों का प्रबन्धन, डा0 प्रज्ञा ओझा ने गृहवाटिका से मृदा स्वास्थ्य प्रबन्धन, डा0 मानवेन्द्र सिंह ने मृदा स्वास्थ्य में पशु अवशेषों का यथोचित प्रबन्धन एवं डा0 दीक्षा पटेल ने मृदा स्वास्थ्य कार्डः महत्व व उपयोगिता विषय पर कृषकों को प्रशिक्षित किया। इस उपलक्ष पर कृषकों को मृदा के नमूनों की जाँच कर 100 मृदा स्वास्थ्य कार्ड वितरित किये गये। इस कार्यक्रम में ग्राम कनवारा एवं चौधरी डेरा (खप्टिहा कलॅा) के 70 कृषकों/महिला कृषकों ने प्रतिभाग किया। कार्यक्रम के अन्त में केन्द्र के डा0 मानवेन्द्र सिंह ने सभी उपस्थित कृषकों/महिला कृषकों का कार्यक्रम को सफल बनाने के लिये धन्यवाद ज्ञापित किया। कार्यक्रम को सफल बनाने में केन्द्र के श्री कमलनारायण, श्रीमती अंकिता निगम व एस0आर0एफ श्री धर्मेन्द्र सिंह का महत्वपूर्ण योगदान रहा।
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कृषि विज्ञान केन्द्र, बांदा द्वारा तिलहन के उत्पादन को जनपद में बढावा देने के उद्देश्य से कलस्टर प्रथम पंक्ति प्रर्दशनों का आयोजन किया जा रहा है। जनपद में सरसों का क्षेत्रफल तो संतोषजनक है, परन्तु मुख्य फसल होने के बावजूद इसकी उत्पादकता बहुत कम है। इसका मुख्य कारण कृषकों द्वारा अच्छी किस्म के बीज एवं पर्याप्त उर्वरकों का उपयोग न किया जाना है। इसके अलावा खरपतवार एवं मॉंहू की समस्या भी प्रमुख रूप से कम पैदावार के लिये जिम्मेदार है। इन सभी समस्याओं के समाधान हेतु कृषकों में सरसों उत्पादन की वैज्ञानिक सोच विकसित करने के उद्देश्य से कृषि विज्ञान केन्द्र, बांदा द्वारा एक दो दिवसीय कृषक प्रशिक्षण का आयोजन दिनांक 20-21.10.2023 को केन्द्र पर किया गया। प्रशिक्षण में केन्द्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक डा0 श्याम सिंह द्वारा कृषकों के सरसों की खेती के सभी वैज्ञानिक पहलुओं पर विस्तार से चर्चा की और बताया कि सरसों की पैदावार बढाने के लिये किसान भाई पलेवा कर अक्टॅूबर के अन्त तक बुवाई अवश्य कर दें। बुवाई करते समय 4-5 कि0ग्रा0 बीज 30-40 से0मी0 की दूरी पर लाईनों में करें और बुवाई के 10-15 दिन की अवस्था पर लाईनों में 10-15 से0मी0 पौधे से पौधे की दूरी रखने के लिये विरलीकरण अवश्य करें। जहां तक खाद की मात्रा का सवाल है सिंचित क्षेत्रों में नत्रजन 120, फास्फोरस 40 व पोटाश 40 कि0ग्रा0 प्रति हेक्टेयर के साथ 25 कि0ग्राम सल्फर का प्रयोग करने से पूरी पैदावार मिलती है। किसान भाई दो सिंचाई फूल आते समय व दाना भरते समय अवश्य करें। खरपतवार नियंत्रण हेतु बुवाई से पूर्व फ्लोक्लोरिन 45 ई0सी0 की 2.2 ली0 मात्रा तथा 800 ली0 पानी अथवा बुवाई के तुरन्त बाद पैण्डोमैथालीन 30 ई0 सी0 की 3.3 ली0 एवं 800 ली0 पानी का छिडकाव करने से खरपतवार नहीं आते। किसान भाई सरसों की फसल में मॉहूं कीट, झुलसा रोग या अन्य कीट बीमारी की रोकथाम समय से करने के लिये कृषि वैज्ञानिक की सलाह से रसायनों/जैविक उपायों का प्रयोग करें। प्रशिक्षण में ग्राम पंचायत कनवारा के 25 कृषकों ने प्रतिभाग किया।
बाँदा कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय, बाँदा के अन्तर्गत संचालित कृषि विज्ञान केन्द्र, बाँदा में “स्वच्छता ही सेवा” कार्यक्रम के अन्तर्गत “अन्तर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस” आज दिनांक 02 अक्टूबर, 2023 को मनाया गया। संयुक्त राष्ट्र द्वारा वर्ष 2007 से प्रत्येक वर्ष 02 अक्टूबर को मनाया जाने वाला “अन्तर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस” वैश्विक कैलेण्डर में एक विशेष स्थान रखता है। यह दिन भारत के राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी के जन्मदिन का प्रतीक है जिन्होंने भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन में सत्य एवं अहिंसा के दम पर आजादी दिलाई थी। इस दिन के प्राथमिक उद्देश्यों में से एक दुनिया भर में अहिंसा के संदेश का प्रसार करना है। यह शांतिपूर्ण समाधान के महत्व को रेखांकित करता है। कार्यक्रम का शुभारम्भ केन्द्र के अध्यक्ष डा0 श्याम सिंह द्वारा राष्ट्रपिता श्री महात्मा गाँधी एवं भारत के द्वितीय प्रधानमंत्री श्री लालबहादुर शास्त्री जी की फोटो पर माल्यार्पण कर किया। उन्होंने महात्मा गाँधी एवं लालबहादुर शास्त्री जी की जीवनी पर प्रकाश डाला व सभी कर्मचारियों एवं छात्रों से उनके जीवन से प्रेरणा लेने हेतु प्रेरित किया। उन्होंने मानव जीवन में स्वच्छता के महत्व पर भी प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि स्वच्छ वातावरण में स्वस्थ्य शरीर एवं मस्तिष्क वास करता है इसलिए हम सभी को अपने वातावरण को स्वच्छ रखना चाहिए। तदोपरान्त केन्द्र के विषय वस्तु विशेषज्ञ, पौध सुरक्षा डा0 चंचल सिंह ने राष्ट्रपिता श्री महात्मा गाँधी के व्यक्तित्व से सत्य एवं अहिंसा तथा श्री लाल बहादुर शास्त्री के व्यक्तित्व से धैर्य व त्याग जैसे मूल्यों को आत्मसार करने हेतु सभी को प्रेरित किया। कृषि संकाय के छात्र श्री आलोक कुमार ने गाँधी जी व शास्त्री जी के जीवन मूल्यों एवं राष्ट्रविकास में उनके अहम योगदान को याद किया। कार्यक्रम में रावे के 20 छात्र/छात्राओं सहित केन्द्र के विषय वस्तु विशेषज्ञ एवं कर्मचारियों ने के0वी0के0 प्रांगण की साफ-सफाई कर श्रमदान किया। अन्त में केन्द्र की विषय वस्तु विशेषज्ञ कृषि प्रसार, डा0 दीक्षा पटेल ने सभी का धन्यवाद ज्ञापन किया। इस कार्यक्रम में कृषि एवं उद्यान संकाय के 20 छात्र/छात्राओं समेत 08 कर्मचारियों ने प्रतिभाग किया। कार्यक्रम को सफल बनाने में केन्द्र के डा0 प्रज्ञा ओझा, इं0 अजीत कुमार निगम, श्रीमती अंकिता निगम, श्री चन्द्रशेषर, का विशेष योगदान रहा।
बाँदा कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय, बांदा के अधीनस्थ कृषि विज्ञान केन्द्र, बाँदा पर संचालित निकरा परियोजना के अनुश्रवण हेतु भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली द्वारा गठित क्षेत्रीय प्रबन्धन समिति द्वारा निकरा ग्राम-चौधरी डेरा (खप्टिहा कलॉ) का दिनांक 25.09.2023 को भ्रमण किया गया, इस अवसर पर केन्द्र द्वारा एक कृषक संगोष्ठी का आयोजन किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता बी.यू.ए.टी. बाँदा के मा0 कुलपति महोदय डा0 एन.पी. सिंह द्वारा की गयी। इस अवसर पर क्षेत्रीय अनुश्रवण समिति के अध्यक्ष डा0 बी0 गंगवार, पूर्वनिदेशक, भाकृअनुप-आई. आई.एफ.एस.आर., मेरठ, क्षेत्रीय अनुश्रवण समिति के सदस्य डा0 मसूद अली, पूर्वनिदेशक भाकृअनुप-आई. आई.पी.आर., कानपुर, अटारी कानपुर के प्रधान वैज्ञानिक डा0 राघवेन्द्र सिंह, बी.यू.ए.टी. बाँदा के निदेशक प्रसार डा0 एन.के. बाजपेयी, केन्द्र के अध्यक्ष डा0 श्याम सिंह एवं केन्द्र के वैज्ञानिकों सहित ग्राम चौधरी डेरा के 60 कृषकों/महिला कृषकों ने प्रतिभाग किया। कार्यक्रम का शुभारम्भ दीप प्रज्वलन कर किया गया। विश्वविद्यालय के मा0 कुलपति प्रो0 (डा0) एन.पी. सिंह ने बुन्देलखण्ड के कृषकों को खेती में इनकी परम्परा, संस्कृति से जुड़कर स्थानीय फसलों की खेती करने हेतु प्रेरित किया। उन्होंने कहा कि बुन्देलखण्ड में खरीफ में परती गम्भीर चिन्ता का विषय है। जिसके लिये फसल सघनता बढ़ाना होगा। साथ ही कृषकों को कड़ी मेहनत, वैज्ञानिक सोच एवं वैज्ञानिकों के साथ मिलकर खेती करनी होगी। उन्होंने भूमिहीन कृषकों के लिए मुर्गी पालन, बकरी पालन जैसे आयामों को भी सुझाया। निदेशक प्रसार डा0 एन.के. बाजपेयी ने सभी कृषकों एवं अतिथियों का पुष्पगुच्छ एवं स्मृतिचिन्ह प्रदान कर स्वागत किया साथ ही निकरा परियोजना के उद्देश्य, क्रिया कलापों एवं निकरा ग्राम चौधरीडेरा की आधारभूत जानकारियों से अवगत कराया। उन्होंने कहा कि जलवायु परिवर्तन से खेती व पशुपालन पर पड़ने वाले दुष्प्रभवों को कम करने वाली तकनीकियों का प्रचार प्रसार करना मुख्य उद्देश्य है। तदोपरान्त डा0 श्याम सिंह ने केन्द्र की विगत वर्ष की प्रगति आख्या एवं आगामी वर्ष की कार्ययोजना पर चर्चा की। तदोपरान्त ग्राम की प्रधान श्रीमती मैना देवी, श्री शिव नारायण एवं श्री गुरूप्रसाद नेे निकरा परियोजना से हुए लाभ व अनुभवों से सभी को अवगत कराया। इसके उपरान्त अटारी कानपुर के प्रधान वैज्ञानिक डा0 राघवेन्द्र सिंह ने कृषि में सतत् विकास के लिए पर्यावरण संरक्षण, वर्षा जल संरक्षण एवं परम्परागत जलश्रोतों के जीर्णोंद्धार के लिए प्रेरित किया। क्षेत्रीय अनुश्रवण समिति के अध्यक्ष डा0 बी0 गंगवार ने जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने हेतु कम लागत वाली तकनीकी जैसे मेंड़बन्दी, रेज्डबेड, हरीखाद, वर्माकम्पोस्ट, सहफसली एवं मिश्रित खेती आदि को अपनाने हेतु प्रेरित किया। क्षेत्रीय अनुश्रवण समिति के सदस्य डा0 मसूद अली ने ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने एवं मृदा में जीवांश कार्बन की मात्रा बढ़ानें के उपायों के बारे में बताया साथ ही बुन्देलखण्ड क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने हेतु दलहनी फसलों का समावेश, फसल अवशेष प्रबन्धन, न्यूनतम जुताई आदि के बारे में चर्चा की। कार्यक्रम में ग्राम चौधरीडेरा में निकरा परियोजनार्न्तगत स्थापित कस्टम हायरिंग सेन्टर का शुभारम्भ सभी सम्मानित अतिथियों द्वारा किया गया। इस सेन्टर की मदद से विभिन्न कृषि उपकरण किराये पर कृषकों को दिये जायेगें जिनके रख-रखाव हेतु ग्रामीण स्तर पर समिति गठित की गयी है। कार्यक्रम के अन्त में डा0 चंचल सिंह ने धन्यवाद ज्ञापन किया। कार्यक्रम का संचालन डा0 दीक्षा पटेल द्वारा किया गया। कार्यक्रम को सफल बनाने में केन्द्र के डा0 मानवेन्द्र सिंह, इं0 अजीत कुमार निगम, श्री कमल नारायण, श्री धर्मेन्द कुमार, श्रीमती अंकिता निगम, श्री चन्द्रशेषर, श्री विकास गुप्ता, श्री दिनेश व श्री राजू का विशेष योगदान रहा।
राजस्थान के सीकर में पी0एम0 किसान सम्मेलन का अयोजन किया गया। जिसमें देश के माननीय यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने कृषकों को सम्बोधित किया। इस कार्यक्रम का सीधा प्रसारण कृषि विज्ञान केन्द्र, बांदा के प्रशिक्षण कक्ष में जनपद के 40 महिला कृषकों सहित कुल 105 कृषकों को दिखाया गया है। केन्द्र की वि0व0वि0 डा0 प्रज्ञा ओझा ने कार्यक्रम का समन्यवन किया। इस अवसर पर माननीय यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी द्वारा 125 लाख पी0एम0 किसान समृद्धि केन्द्र राष्ट्र को समर्पण, सल्फर कोटेट यूरिया का शुभारम्भ, पी0एम0 किसान की चौदहवीं किस्त का हस्तानान्तरण, एफ0पी0ओ0 का ओ0एन0डी0सी0 पर पंजीकरण के साथ-साथ सीकर राजस्थान में आयोजित कार्यक्रम में माननीय प्रधानमंत्री मोदी जी द्वारा 05 मेेडिकल कालेज का शिलान्यास, 06 एकलव्य आवासीय विद्यालय और जोधपुर में एक केन्द्रीय विद्यालय का उदघाटन भी किया। कार्यक्रम के दौरान मा0 प्रधानमंत्री जी ने देेश भर के किसानों को सम्बोधित करते हुये कहाकि सरकार द्वारा किसानों की आर्थिक मदद के रूप में पी0एम0 किसान योजना के तहत प्रतिवर्ष रू0 6000/- प्रदान किये जा रहे हैं। सल्फर कोटेट यूरिया से किसानों को कम यूरिया की आवश्यकता होगी एवं फसलों को लाभ मिलेगा। किसान समृद्धि केन्द्र के माध्यम से किसानों को एक ही स्थान पर कृषि के खाद, बीज, दवायें एवं यंत्र सस्ती दरों पर उपलब्ध होंगें। ओ0एन0डी0सी0 के माध्यम से देश भर के एफ0पी0ओ0 से जुडे किसान अपने माल को आसानी से उचित कीमत पर कहीं भी बेंच सकते हैं। मेडिकल कालेज खुलने से स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार होगा। इस अवसर पर केन्द्रीय कृषि मंत्री श्री नरेन्द्र सिंह तोमर ने भी किसानों को सम्बोधित किया व कहा कि सरकार किसानों के हित के लिये कई योजनायें चला रही हैं। जिसमें प्रमुख रूप से प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना लाभकारी सिद्ध हो रही है। इस योजना के तहत 1.4 लाख करोड रूपये की भरपाई किसानों को की गयी। उन्होनें कहा कि पी0एम0 किसान निधि योजना दुनिया की सबसे बडी डी0बी0टी0 योजना है। कार्यक्रम के अन्त में केन्द्र के अध्यक्ष डा0 श्याम सिंह द्वारा कृषकों को सरकार की विभिन्न येाजनाओं की जानकारी दी और आहवान किया कि इसका सभी लोग लाभ उठायें। इस अवसर पर केन्द्र के वि0व0वि0 डा0 प्रज्ञा ओझा ने महिला कृषकों को खाद्य प्रसंस्करण की जानकारी दी एवं डा0 मानवेन्द्र सिंह ने पशुओं में कृमिनाशी का प्रयोग विधि समझायी व दवा भी उपलब्ध करवायी तथा डा0 चंचल सिंह ने प्राकृतिक खेती के विषय पर कृषकों को विस्तार पूर्वक बताया।
अन्तर्राष्ट्रीय मिलेट्स वर्ष-2023 के अन्तर्गत मोटे अनाजों के प्रति जागरूक करने एवं उनके महत्व को कृषकों को समझाने के उद्देश्य से केन्द्र द्वारा दिनांक 25.07.2023 को ग्राम कनवारा (मजरा छावनी दरदा) विकास खण्ड बडोखर खुर्द में श्री अन्न आधारित व्यंजन प्रतियोगिता सम्पन्न करवायी गयी। कार्यक्रम का आयोजन प्राथमिक विद्यालय छावनी दरदा में किया गया। कार्यक्रम में कुल 40 महिलाओं ने प्रतिभाग किया व मोटे अनाज द्वारा निर्मित विभिन्न प्रकार के व्यंजन बनाये गये। व्यंजनों को विभिन्न मानकों के आधार पर मूल्यांकित कर सर्वोत्तम 05 प्रतिभागियों को प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित भी किया गया। डा0 प्रज्ञा ओझा वि0व0वि0, के0वी0के0, बांदा ने कार्यक्रम का आयोजन किया। कार्यक्रम का शुभारम्भ ग्राम प्रधान श्री आशीष कुमार यादव, केन्द्र के अध्यक्ष डा0 श्याम सिंह के द्वारा संयुक्त रूप से किया गया । व्यंजन प्रतियोगिता में श्रीमती लक्ष्मी देवी द्वारा तैयार किया बाजरा महुआ लाटा को प्रथम स्थान, श्रीमती कमला देवी का कोदो का हलुवा द्वितीय स्थान, श्रीमती सूरजकली का बाजरा का लड्डू तृतीय स्थान, श्रीमती रामरती जी का बाजरा की मठरी चतुर्थ स्थान व श्रीमती छितिया को बाजरा का गुलगुला को पंचम स्थान दिया गया। केन्द्र के वैज्ञानिक डा0 चंचल सिंह ने मोटे अनाजों के महत्व के विषय में महिलाओं को जागरूक भी किया। केन्द्र के अध्यक्ष डा0 श्याम सिंह ने महिला कृषकों से अनुरोध किया कि जैविक खादों का प्रयोग करने से स्वस्थ अन्न मिलता है व मृदा भी स्वस्थ रहती है, अधिक से अधिक मात्रा में गोबर की खाद व केंचुए की खाद का प्रयोग करें।
बाँदा कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय, बाँदा के अर्न्तगत संचालित कृषि विज्ञान केन्द्र, बाँदा द्वारा दिनांक 20.07.2023 को ग्राम खप्टिहा कलॅा (चौधरी डेरा) विकास खण्ड तिन्दवारी में मिलेट्स (मोटे अनाजों) के प्रति जागरूकता पैदा करने के लिय एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। वर्ष 2023 में पूरे विश्व में इन्टरनेशनल मिलेट्स वर्ष के रूप में मनाया जा रहा है। इसका प्रमुख उद्देश्य मिलेट्स (मोटे अनाजों) के बारे में दुनिया भर में जागरूकता लाना है। मोटे अनाजों को पैदा करने के लिये बहुत कम पानी की आवश्यकता होती है, इसलिये इन्हें बरानी खेती में भी कम लागत से उगाया जा सकता है। इनके पौष्टिक गुणों को देखा जाये तो गेंहू की तुलना में कैल्सियम फास्फोरस जिंक व मैग्नीशियम लगभग सभी मोटे अनाजों में ज्यादा पाये जाते है। मिलेट्स को बढावा देने के उद्देश्य से केन्द्र द्वारा ग्राम खप्टिहा कला में ज्वार व बाजरा फसलों के प्रर्दशन आयोजित कराये जा रहे हैं। इसी क्रम में केन्द्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक डा0 श्याम सिंह द्वारा ग्राम खप्टिहा कलॅा के चौधरी डेरा में एक कृषक प्रशिक्षण ‘‘ज्वार की वैज्ञानिक खेती’’ विषय पर आयोजित किया गया। ज्वार में प्रोटीन की मात्रा अधिक होती है, इसलिये यह सुपाच्य प्रोटीन का सर्वोत्तर स्रोत माना गया है। जनपद में ज्वार की बुवाई का समय चल रहा है। किसान भाई बलुई दोमट और जल निकासी वाली भूमि में मिट्टी पलट हल से एक जुताई कर दो-तीन जुताई कल्टीवेटर द्वारा करके तैयार खेेत में 12-15 कि0ग्रा0 बीज प्रति हे0 की दर से 30-45 सेमी की दूरी पर पंक्ति में बुवाई करनी चाहिये। किसान भाई 40 कि0ग्रा0 नत्रजन, 20 कि0ग्रा0 फास्फोरस व 20 कि0ग्रा0 पोटाश प्रति हे0 प्रयोग करें। बुवाई के समय सारी फास्फोरस, सारी पोटाश व आधी नत्रजन प्रयोग करें, शेष आधी नत्रजन बुवाई के 30-35 दिन बाद प्रयोग करें। आवश्यकता पडने पर दाना भरते समय एक सिंचाई करना लाभकारी रहता है। खेत को खरपतवार से मुक्त रखने के लिये बुवाई के 20-25 दिन बाद निराई-गुडाई करनी चाहिये। फसल को कीट व बीमारी के प्रकोप से बचाना चाहिये। इसकी समस्या होने पर किसान भाई मो0न0- 9454940084 पर सम्पर्क कर निदान पा सकते हैं। डा0 सिंह ने किसान भाईयों से अनुरोध किया कि जैविक खादों का प्रयोग करने से स्वस्थ अन्न मिलता है व मृदा भी स्वस्थ रहती है, अधिक से अधिक मात्रा में गोबर की खाद व केचुए की खाद का प्रयोग करें।
दिनांक 16.07.2023 को बांदा कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय, बांदा के अन्तर्गत संचालित कृषि विज्ञान केन्द्र, बांदा द्वारा भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद का 95 वां स्थापना दिवस केन्द्र पर मनाया गया। जिसमें केन्द्र के वैज्ञानिकों/कर्मचारियों एवं कृषकों सहित 50 लोगों ने कार्यक्रम में प्रतिभाग किया। गौरतलब हो कि भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली की स्थापना 16 जुलाई, 1929 को इंपीरियल काउंसिल ऑफ एग्रीकल्चर रिसर्च के नाम से हुयी थी। यह परिषद देश में कृषि, बागवानी, पशुविज्ञान आदि के क्षेत्र में समन्यवन, मार्गदर्शन और अनुसंधान प्रबंधन तथा शिक्षा के लिये एक सर्वोच्च निकाय है। आई0सी0ए0आर0 द्वारा देश में हरित क्रान्ति लाने के साथ.साथ अपने अनुसंधान एवं प्रौद्योगिक विकास में देश के कृषि क्षेत्र के विकास में अग्रणी भूमिका निभाई है। वर्तमान में आई0सी0ए0आर0 के अन्तर्गत 98 शोध संस्थान, 70 कृषि विश्वविद्यालय एवं 752 कृषि विज्ञान केन्द्र संचालित है। जो मुख्यतः कृषि सम्बन्धी शोध, शिक्षा एवं प्रसार गतिविधियों हेतु कार्यरत है। इस अवसर पर केन्द्र द्वारा तकनीकी प्रदर्शनी, प्रशिक्षण एवं कृषक गोष्ठी का आयोजन किया गया। समारोह में सर्वप्रथम डा0 मानवेन्द्र सिंह ने उपस्थित सभी कृषकों एवं कर्मचारियों का स्वागत किया। तदोपरांत केन्द्र के अध्यक्ष डा0 श्याम सिंह ने सभी कृषकों को आई0सी0ए0आर0 के महत्व से अवगत कराया तथा आई0सी0ए0आर0 द्वारा कृषक हित में चलाई जा रही योजनाओं के बारे में भी बताया। इस अवसर पर अरहर की वैज्ञानिक खेती विषय पर कृषक प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन किया गया। प्रशिक्षण के अन्तिम दिन कृषकों को अरहर में खरपतवार प्रबन्धन के विषय में डा0 श्याम सिंह द्वारा एवं कीट व रोग प्रबन्धन के विषय में डा0 चंचल सिंह द्वारा विस्तार से चर्चा की गयी। उन्होने कहा कि के0वी0के0 कृषकों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण पैदा कर रहा है। जिससे कृषक अब वैज्ञानिक तरीके से खेती कर रहे हैं। उन्होने सभी कृषकों से के0वी0के से जुडने का आहवान किया।
दिनांक 14.07.2023 को कृषि विज्ञान केन्द्र, बांदा द्वारा वन महोत्सव 2023 के अर्न्तगत वृक्षारोपड़ का आयोजन ग्राम चहितारा में किया गया। जिसमें लगभग 80 कृषकों ने प्रतिभाग किया। केन्द्र की विषय वस्तु विशेषज्ञ डा0 दीक्षा पटेल ने सभी कृषकों का कार्यक्रम में स्वागत किया तथा वृक्षारोपड़ करने हेतु प्रेरित किया। उन्होंने कहा कि प्रकृति में सन्तुलन बनाये रखने के लिए तथा अपने आस-पास के वतावरण को स्वच्छ रखने के लिये वृक्षारोपड करना अति आवश्यक है। यदि हम शहरीकरण एवं औद्योगिकीकरण के कारण लगातार पेड़ काटते रहेंगें और पुनः वृक्षारोपड नहीं करेंगें तो एक दिन हमारा जीवन प्राकृतिक आपदाओं से खत्म हो जायेगा। इसलिए हमें प्रति वर्ष वृक्षारोपड करना चाहिए और रोपित पौधे की देखभाल भी करनी चाहिए। केन्द्र द्वारा अमरूद, नीबू, करौंदा एवं बेल के 1000 पौधों का वितरण ग्राम में किया गया।
दिनांक 11.07.2023 को कृषि विज्ञान केन्द्र, बांदा द्वारा वन महोत्सव 2023 के अर्न्तगत वृक्षारोपड़ का आयोजन किया गया। जिसमें लगभग 100 कृषकों ने प्रतिभाग किया। केन्द्र के विषय वस्तु विशेषज्ञ डा0 मानवेन्द्र सिंह ने सभी कृषकों का स्वागत किया तथा वृक्षारोपड़ करने हेतु प्रेरित किया। केन्द्र के विषय वस्तु विशेषज्ञ पादप सुरक्षा डा0 चंचल सिंह ने वृक्षारोपड का महत्व समझाते हुए फलदार एवं कृषि वानिकी के पौधों को रोपित करने हेतु समझाया तथा यह भी बताया कि वृक्षरोपड़ से मृदा अपरदन, जलवायु परिवर्तन आदि की रोकथाम होती है। कार्यक्रम के अन्त में डा0 दीक्षा पटेल द्वारा सभी कृषकों का धन्यवाद् किया गया। केन्द्र द्वारा सागौन के 800 पौधों तथा सहजन के 100 पौधों का वितरण किया गया।
दिनांक 06.07.2023 को बांदा कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय, बांदा के अर्न्तगत संचालित कृषि विज्ञान केन्द्र, बांदा द्वारा जनपद में तिल की उत्पादकता बढाने के उद्देश्य से राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन तिलहन अन्तर्गत तिल में नैनो यूरिया का प्रयोग विषय पर दो दिवसीय कृषक प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन किया गयां। जिसमें ग्राम कनवारा एवं चहितारा के 25 कृषकों ने प्रतिभाग किया। प्रशिक्षण में डा0 श्याम सिंह, अध्यक्ष, के0वी0के0, बांदा ने सभी कृषकों का स्वागत किया और बताया कि तिल बांदा जनपद की खरीफ मौसम की मुख्य फसल हैं। उन्होंने तिल की वैज्ञानिक विधि से खेती करने पर जोर दिया। श्री सिंह ने कहा कि जी0टी0-06 तिल की उन्नतशील प्रजाति है। कृषकों को तिल की जी0टी0-06 प्रजाति के बीज को प्रदर्शन हेतु उपलब्ध कराये गये। इस प्रजाति की उत्पादक क्षमता 9-10 कु0/हे0 है। साथ ही तेल की मात्रा 50 प्रतिशत होती है और यह 85 दिनों में पककर तैयार हो जाती है। यह प्रजाति बुन्देलखण्ड क्षेत्र हेतु उपयुक्त है। डा0 सिंह ने कृषकों को तिल की बुवाई पंक्ति में करने एवं 20-25 दिन बाद निराई करने की सलाह दी और कहा कि तिल फसल में जल भराव न होने पाये, इसके लिये उचित जल निकास की व्यवस्था पहले ही करें एवं ऊंचे खेतों में ही इसकी खेती करें। केन्द्र के वि0व0वि0 पौध सुरक्षा डा0 चंचल सिंह ने तिल फसल में लगने वाले रोग एवं कीट हेतु एकीकृत कीट एवं रोग प्रबंधन विषय पर कृषकों को प्रशिक्षित किया। इफको के क्षेत्रीय प्रबंधक श्री प्रतीक चौबे ने कृषकों को सम्बोधित करते हुये कहा कि इफको नैनो यूरिया 500 मि0ली0 की एक बोतल एक बोरी यूरिया के बराबर है। नैनो यूरिया प्रभावी रूप से फसल की नाईट्रोजन आवश्यकता को पूरा करता है। जिससे फसल उत्पादकता में वृद्धि एवं लागत में कमी होती है। उच्च दक्षता के कारण यह सामान्य यूरिया से 50 प्रतिशत कम लगता है।
दिनांक 21.06.2023 को के0वी0के0, बांदा द्वारा अन्तराष्ट्रीय योग दिवस मनाया गया। जिसमें कृषकों, केन्द्र के कर्मचारियों व परिवारजनों समेत लगभग 50 प्रतिभागियों ने प्रतिभाग किया। कार्यक्रम का शुभारम्भ करते हुये केन्द्र के अध्यक्ष डा0 श्याम सिंह ने अन्तराष्ट्रीय योग दिवस मनाये जाने का महत्व व उद्देष्य बताया। उन्होनें कहा कि इसका लक्ष्य योग के लाभों के बारे में जन-जागरूकता बढाना और शारिरिक-मानसिक स्वास्थ्य के लिये दुनिया भर में योग चिकित्सा अपनाने को प्रेरित करना है। अन्तराष्ट्रीय योग दिवस की शुरूवात वर्ष 2015 से मा0 प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के प्रयासों से हुयी। इस वर्ष योगदिवस की थीम ‘‘हर घर - आंगन योग’’ है। योग आसन करने का मुख्य उद्देष्य शरीर के अवांछित तत्वों का नाष करना है, शरीर से दूषित विकारों के नष्ट हो जाने से मन की स्थिरता व शान्ति आती है। तदोपरोन्त सभी प्रतिभागियों द्वारा योग के विभिन्न आसन जैसे पद्यासन, वज्रासन, मत्स्यासन, वक्रासन, गोमुखासन, हलासन, मकरासन, ताडासन, वृक्षासन, चक्रासन, शीर्षासन, अनुलोम विलोम, कपालभांति एवं सूर्य नमस्कार आदि को किया गया।
विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर बांदा कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय, बांदा के अधीन संचालित कृषि विज्ञान केन्द्र, बांदा द्वारा द्वारा ‘‘अविवेकपूर्ण एवं विनाशकारी उपयोग के बजाय सुविचारित एवं ईष्टम उपयोग जागरूकता महाभियान’’ के अर्न्तगत जल संरक्षण व जल का प्रभावी उपभोग (कैच द रेन) विषय पर कृषक गोष्ठी का आयोजन निकरा अंगीकृत ग्राम चौधरी डेरा (खप्टिहा कलॅा) में किया गया। मुख्य अतिथि ग्राम प्रधान श्रीमती मैना देवी ने कार्यक्रम का शुभारम्भ करते हुये केन्द्र की वैज्ञानिक व निकरा परियोजना प्रभारी डा0 प्रज्ञा ओझा ने सभी अतिथियों का स्वागत किया तथा कार्यक्रम की रूप रेखा व उद्देश्य के बारे में सभी को अवगत कराया । तदोपरान्त केन्द्र के अध्यक्ष डा0 श्याम सिंह ने सभी ग्रामवासियों को सम्बोधित करते हुये कहा कि कृषि एक जलवायु आधारित उद्योग है। पिछले कुछ दशकों में जलवायु में परिवर्तन के कारण फसलों तथा पशुपालन क्षेत्र पर इसका दुष्प्रभाव पड रहा है। उन्होनें भूमिगत एवं वर्षा जल संरक्षण से पर्यावरण संरक्षण करने हेतु कृषकों का आह्वान किया। उन्होंने कृषकों से मेडबंदी, तालाब निर्माण, वृक्षारोपण करके मृदा व जल संरक्षण हेतु प्रेरित किया। इसके पश्चात् कृषक गोष्ठी के अन्तर्गत आयोजित तकनीकी सत्र में पर्यावरण सुरक्षा की आवश्यकता के बारे में डा0 मानवेन्द्र सिंह ने एवं जलवायु परिवर्तन का वृद्धि में प्रभाव के विषय पर डा0 दीक्षा पटेल ने कृषकों को बताया। डा0 श्याम सिंह, अध्यक्ष के0वी0के0,बांदा ने जलवायु परिवर्तन के फसलों पर कुप्रभावों को कम करने एवं रोकथाम के लिये, सभी कृषकों को विस्तारपूर्वक अवगत करावाया। अध्यक्षीय उद्बोधन में श्रीमती मैना देवी (ग्राम प्रधान खप्टिहा-कलॅा) ने सभी का कार्यक्रम आयोजन हेतु आभार व्यक्त किया तथा ग्रामवासियों की तरफ से पर्यावरण सुरक्षा व जल संरक्षण में योगदान देने का वादा भी किया। तदोपरान्त केन्द्र के अध्यक्ष डा0 श्याम सिंह ने पर्यावरण ने अनुकूल जीवन शैली अपनाने की प्रतिज्ञा के साथ सभी को शपथ दिलायी। इस कार्यक्रम में करीब 70 कृषक/महिला कृषकों ने प्रतिभाग किया। कार्यक्रम के अन्त में डा0 दीक्षा पटेल ने धन्यवाद् ज्ञापित किया। कार्यक्रम में वृक्षारोपण कार्यक्रम का भी आयोजन किया गया जिसमें नीबू, अमरूद, कटहल, बेल, करौंदा (कृषकों के प्रक्षेत्र में लगाने के लिये) आदि के 100 पौधों का वितरण भी के0वी0के0, बांदा के द्वारा किया गया।
कृषि विज्ञान केन्द्र, बांदा द्वारा आज दिनांक 01.06.2023 को विश्व दुग्ध दिवस के अवसर पर पशुपालक गोष्ठी एवं जागरूकता कार्यक्रम का आयोजन मा0 कुलपति प्रो0 (डा0) एन0पी0 सिंह की अध्यक्षता मंे किया गया। विशिष्ट अतिथि के रूप में अधिष्ठाता कृषि डा0 जी0एस0 पवार, सह निदेशक प्रसार डा0 नरेन्द्र सिंह एवं डा0 आनन्द सिंह समेत जनपद के विभिन्न ग्रामों के 60 पशुपालकों ने प्रतिभाग किया। बी0यू0ए0टी0, बांदा के मा0 कुलपति डा0 एन0पी0 सिंह ने केन्द्र द्वारा आयोजित विश्व दुग्ध दिवस के अवसर पर पशुपालकों को सम्बोधित करते हुये कहा कि दूध एक सम्पूर्ण आहार है। भारत में अधिकांश शाकाहारी जनसंख्या होने के कारण दूध का महत्व और भी बढ जाता है। बुन्देलखण्ड क्षेत्र की मुख्य समस्याओं में से एक अन्ना प्रथा एवं नवयुवकों का पलायन तथा खेती/पशुपालन के प्रति लगाव न होना है। आत्मनिर्भर एवं स्वावलम्बी बनने हेेतु पशुपालन एक अच्छा विकल्प है। थारपारकर नस्ल से कृत्रिम गर्भाधान द्वारा नस्ल सुधार एवं एकीकृत फसल प्रणाली अपनाकर आय बढाने हेतु कृषकों को प्रेरित किया। साथ ही उन्होनें कहा कि वैज्ञानिक सोच एवं परीश्रम द्वारा डेयरी उद्योग को लाभकारी बनाया जा सकता है। केन्द्र के अध्यक्ष डा0 श्याम सिंह ने सभी अतिथियों का स्वागत किया एवं कार्यक्रम की रूप रेखा व उद्देश्य से सभी को अवगत कराते हुये बताया कि विश्व दुग्ध दिवस वर्ष 2001 से प्रतिवर्ष 01 जून को मनाया जाता है। इसका उद्देश्य दूध को वैश्विक भोजन के रूप में मान्यता दिलाना है साथ ही डेयरी उद्योग एवं पशुपालकों की अर्थव्यवस्था में योगदान हेतु सराहना करना भी है। केन्द्र के पशुविज्ञान विशेषज्ञ डा0 मानवेन्द्र सिंह ए1 व ए2 दुग्ध विषय पर चर्चा करते हुये बताया कि भारतीय नस्लों के दुग्ध में ए2 प्रोटीन पायी जाती है जोकि मनुष्य के स्वास्थ्य के लिये लाभदायक है, वहीं विदेशी नस्लों के दुग्ध में ए1 प्रोटीन पायी जाती है। जिससे मनुष्य के स्वास्थ्य पर हानिकारक प्रभाव होने की सम्भावना होती है। सह निदेशक प्रसार डा0 नरेन्द्र सिंह ने पशुपालको को सम्बोधित करते हुये कहा कि बुन्देलखण्ड में प्रति पशु दुग्ध उत्पादन देश के अन्य क्षेत्रों के अपेक्षा बहुत कम है जो अन्ना प्रथा होने का एक कारक भी है। दुग्ध उत्पादन बढाने हेतु कृत्रिम गर्भाधान द्वारा नस्ल सुधार एवं उन्नत नस्लों के चयन को अपनाने हेतु प्रेरित किया। डा0 जी0एस0 पवार ने पशुपालन को खेती का एक महत्वपूर्ण अंग बताया और कहा कि दूध हमारी सेहत के लिये फायदेमंद है। इसमें मौजूद पोषक तत्व हमारे सम्पूर्ण शारीरिक विकास के जरूरी है। सह निदेशक प्रसार डा0 आनन्द सिंह ने अपने उद्बोधन में कहा कि जलवायु परिवर्तन एक वैश्विक चुनौती है। जिसका दुष्प्रभाव खेती एवं पशुपालन पर पड रहा है। उन्होनें जलवायु अनुकूल प्रजाति एवं नस्लों का चयन करने हेतु कृषकों को प्रेरित किया। कार्यक्रम में तकनीकी सत्र का भी आयोजन किया, जिससे केन्द्र के वि0व0वि0 मानवेन्द्र सिंह ने उन्नत पशुपालन के मूलभूत सिद्धान्त, डा0 प्रज्ञा ओझा ने दूध व दूध से बनने वाले व्यंजन तथा डा0 दीक्षा पटेल ने पशुपालन क्षेत्र में सूचना संचार तकनीकी के महत्व पर कृषकों से चर्चा की।
दिनांक 30.04.2023 को माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी की मन की बात 100 वां संस्करण का सीधा प्रसारण जनपद के कृषकों को दिखाया गया। इस कार्यक्रम में लगभग 60 कृषक/महिला कृषकों ने प्रतिभाग किया। गौरतलब हो कि मन की बात कार्यक्रम भारत के यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के द्वारा आयोजित किया जाता है। जिसमें वो देश के लोगों को दिन प्रतिदिन, शासन के मुद्दों, अपने अनुभव आदि से लोगों को संबोधित करते हैं यह कार्यक्रम आकाशवाणी, डीडी न्यूज एवं डीडी नेषनल के माध्यम से प्रसारित किया जाता है। मन की बात का पहला संस्करण 3 अक्टूबर, 2014 को प्रसारित किया गया था। आज मन की बात का 100 वां सस्ंकरण प्रसारित किया जा रहा है। जिसमें देश के मा0 प्रधानमंत्री ने कहा कि मन की बात मेरे लिये एक अध्यात्मिक यात्रा रही है। जिससे मुझे स्थानीय लोगों से जुडने का मौका मिलता है। उन्होनें स्वच्छता मिशन, पर्यावरण सुरक्षा, नारी सशक्तिकरण, जल संरक्षण, शिक्षा एवं संस्कृति संरक्षण जैसे महत्वपूर्ण विषयों पर चर्चा की। कार्यक्रम में पानीपत के श्री सुनील जगरान, जम्मू के श्री मंजूर अहमद, मणिपुर की विजय शान्ति जी, हरियाणा के श्री प्रदीप संगवान आदि ने पूर्व में मन की बात कार्यक्रम से जुडने के बाद अपने अपने अनुभवों को माननीय प्रधानमंत्री जी एवं देष के लोगों के साथ साझा किये। कार्यक्रम के उपरान्त केन्द्र की वि0व0वि0 डा0 प्रज्ञा ओझा ने उपस्थिति कृषकों से मा0 प्रधानमंत्री जी की बातों को अमल में लाने के लिये आग्रह किया साथ ही कार्यक्रम में प्रतिभाग करने एवं सफल बनाने हेतु धन्यवाद् ज्ञापित किया। कार्यक्रम को सफल बनाने में केन्द्र के डा0 मंजुल पाण्डेय, डा0 मानवेन्द्र सिंह, डा0 दीक्षा पटेल, ई0 अजीत कुमार निगम, श्री कमल नारायण बाजपेयी एवं श्री धर्मेन्द्र सिंह का विषेष योगदान रहा।
बाँदा कृषि एव प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय, बाँदा के अर्न्तगत संचालित कृषि विज्ञान केन्द्र, बाँदा द्वारा ग्राम हलुवा डेरा, कनवारा में “कृषि उद्यमिता विकास हेतु सरकार की विभिन्न योजनाओं के प्रति जागरूकता” विषय पर एक दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन किया गया। जिसमें ग्राम के 19 कृषकों ने प्रतिभाग किया। कार्यक्रम में केन्द्र की विशेषज्ञ डा0 दीक्षा पटेल ने सभी कृषकों का स्वागत किया साथ ही उक्त विषय पर चर्चा की। उन्होंने कहा कि कृषि एवं कृषक विकास हेतु कृषि में रोजगार सृजन होना अति आवश्यक है जिससे कृषि सम्बन्धी विभिन्न उद्यम विकसित किये जा सकें। उन्होंने कहा कि भारत अब विश्व में सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश बन गया है तो बढ़ती जनसंख्या के लिए कृृषि उत्पादों के उत्पादन हेतु कृषकों को कृषि करने का तरीका बदलना होगा, अब कृषि का पूरा लेखा-जोखा, बचत लाभ, व्यय, लाभःलागत अनुपात आदि का ब्यौरा रखना चाहिए। उन्होंने सफल उद्यमी बनने के गुण भी बताये जैसे कृषि क्षेत्र में कुछ अलग करने की सोंच, मन में विश्वास, सतर्क, जोखिम लेने की क्षमता, नेतृत्व, बाजार की सही जानकारी, सम्बन्धित क्षेत्र में सम्पूर्ण एवं सटीक जानकारी, भविष्य की योजना आदि। उन्होंने कृषि क्षेत्र में बीज उत्पादन, मसाला उत्पादन, मछली, मुर्गी पालन, सब्जी उत्पादन, नर्सरी, वर्मीकम्पोस्ट, मशरूम उम्पादन, मोटे अनाज (श्रीअन्न) उत्पादन, औषधीय एवं सुगन्धित पौधों की खेती आदि बुन्देलखण्ड हेतु कृषि उद्यमिता के आयाम के रूप में बताये। उन्होंने सरकार द्वारा कृषि उद्यामिता विकास हेतु चलायी जा रही योजनाएं जैसे एग्री क्लीनिक एवं एग्री बिजेनेस योजना, डेयरी उद्यमिता विकास योजना, नवाचार एवं कृषि उद्यमिता विकास योजना आदि के बारे में विस्तृत जानकारी दी। कार्यक्रम के अन्त में डा0 प्रज्ञा ओझा ने सभी कृषकों का धन्यवाद ज्ञापन किया। कार्यक्रम को सफल बनाने में केन्द्र के स्टेनोग्राफर श्री कमल नारायण जी का महत्वपूर्ण योगदान रहा।
बाँदा कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय, बांदा के अंतर्गत संचालित कृषि विज्ञान केन्द्र, बांदा द्वारा कम लागत में तैयार किये जाने वाले व्यंजन विषय पर एक दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कार्यक्रम की आयोजक डा0 प्रज्ञा ओझा ने बुन्देलखण्ड में होने वाले कुल्फा के साग, महुआ का लटा, भकोसा, बुन्देली बुकनू, ज्वार की रोटी, चना का साग, बाजरा के लड्डू इत्यादि व्यंजनों को बनाने की विधि के साथ-साथ इसके पोषक तत्वों के महत्व को भी विस्तार से समझाया। उन्होनें कहा कि बुन्देलखण्ड में ऐसे कई भोज्य पदार्थ हैं जिसके उपयोग से कुपोषण, रक्ताल्पता, विटामिन व खनिज लवणों की कमी इत्यादि समस्याओं को जड से मिटाया जा सकता है। डा0 प्रज्ञा ओझा ने कार्यक्रम में महिलाओं को आधुनिकता के साथ अपनी परम्परागत धरोहरों के सृजन हेतु भी पे्ररित किया। उन्होने बताया कि महिला सशक्तिकरण तभी सम्भव है जब प्रत्येक महिला स्वयं व समाज के प्रति सकारात्मक सोच रखते हुये पुरूषों के साथ विभिन्न गतिविधियों में कंधे से कंधा मिलाकर कार्य करेगी। अपने घर, परिवार व समाज को सुदृढ करने हेतु कुपोषण जैसी समस्या का निदान करेगी व स्वस्थ्य भारत निर्माण में अपना योगदान देेगी। कार्यक्रम में आयु व लिंग के अनुरूप विभिन्न खाद्य पदार्थों को भोजन में सम्मिलित करने हेतु भी विस्तार में चर्चा की गयी। कार्यक्रम में आगे केन्द्र के अध्यक्ष डा0 श्याम सिंह ने बताया कि खाद्य व पोषण सुरक्षा की दृष्टि से मोटे अनाज (श्री अन्न) की विशेष भूमिका है। ग्रामीण महिलायें आवश्यक रूप से अपने भोजन में मोटे अनाजों को सम्मिलित करें व विभिन्न बीमारियों के बचाव करें। कार्यक्रम के अन्त में डा0 दीक्षा पटेल ने धन्यवाद ज्ञापित किया।
कृषि विज्ञान केन्द्र बाँदा द्वारा जनपद में गेहूँ की नवीनतम प्रजाति के-1317 के प्रदर्शन को परखने के उद्देश्य से चार ग्रामों के चार कृषकों के प्रक्षेत्र पर ऑन फार्म ट्रायल रबी 2022-23 में आयोजित कराये गये थे। दिनांक 12.04.2023 को ग्राम अजीतपुर में श्री प्रमोद कुमार के प्रक्षेत्र पर आयोजित ऑन फार्म ट्रायल का केन्द्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक डा0 श्याम सिंह द्वारा भ्रमण किया गया तथा ट्रायल क्षेत्र की उपज का आकलन क्रॉप कटिंग के माध्यम से किया गया। इस अवसर पर गाँव के कृषकों से प्रजाति के प्रदर्शन पर फीडबैक लिया गया तथा कृषकों ने बताया कि इस प्रजाति से अच्छी बढ़वार एवं बड़ी व मोटी बालियाँ आयी हैं तथा फसल में कल्ले भी अधिक फूटे थे। डा0 श्याम सिंह ने श्री प्रमोद कुमार से अनुरोध किया कि वह इस प्रजाति के उत्पादित बीज को गाँव के अन्य कृषकों में भी वितरित करें और बीज के सुरक्षित भण्डारण हेतु सलाह दी कि साफ थ्रैशर में मड़ाई कर इसको अच्छी प्रकार सुखकर 11-12 प्रतिशत नमी होने पर ठंडा करने के उपरान्त हवा रहित कमरा या बखारी में भण्डारित करें तथा कीटों से सुरक्षा के लिए नीम की सूखी पत्ती, लहसुन की पत्ती आदि का प्रयोग करें। यदि सल्फास की पुड़िया रखनी हो तो हो तो पाँच कुन्टल के लिए एक पुड़िया की दर से प्रयोग करें और भण्डार को वर्षा में खोलने से बचे। इस अवसर पर केन्द्र के कम्प्यूटर प्रोग्रामर इं0 अजीत कुमार निगम ने श्री प्रमोद कुमार का साक्षात्कार लिया जिसमें उनसे गेहूँ की नवीनतम प्रजाति के-1317 की पैदावार के विषय में तथा उनके द्वारा पैदा की जा रही गेहूँ की अन्य प्रजाति से यह किस प्रकार बेहतर है, फीडबैक लिया।
कृषि विज्ञान केन्द्र, बांदा द्वारा अनुपूरक आहार का महत्व विषय पर एक दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन डा0 प्रज्ञा ओझा द्वारा किया गया। डा0 प्रज्ञा ओझा ने महिलाओं को सम्बोधित करते हुये कहा कि शिशु आहार सभी प्रकार से पोषण तत्वों से भरपूर होना चाहिये। विशेषज्ञों के अनुसार बालक को अपने सम्पूर्ण जीवन में शैशवास्था को छोडकर फिर को छोडकर फिर कभी भी उसके शरीर के भार, आकार की आवश्यकता नहीं होती जिससे कि खनिज लवण व विटामिन की आवश्यकता प्रमुख है। शिशु अपने जीवन के प्रारम्भिक 4-6 महिनों तक केवल मां के दूध पर ही निर्भर रहता है तथा जो बच्चे मां का दूध नहीं ले सकते हैं उन्हें केवल बोतल का दूध या फार्मला मिल्क दिया जाता है। स्तनपान शिशु के लिये सर्वोत्तम है जन्म के 6 माह बाद शिशु को पूरक आहार व फलों का रस देना शुरू करना चाहिये। जब शिशु 06 माह का हो जाता है तब उसकी पोषण आवश्यकता भी बढ जाती है। उसकी पूर्ति करने के लिये शिशु को दूध के साथ साथ तरल एवं ठोस आहार की आवष्यकता होती है। ऐसा आहार ही अनुपूरक आहार या पूरक भोज्य कहलाता है। कार्यक्रम मे आगे डा0 प्रज्ञा ओझा ने यह भी बताया कि अनुपूरक आहार प्रारम्भ करना एक प्रक्रिया है जिसके द्वारा एक शिशु पूर्णतः दुग्ध आहार की जगह विविधतापूर्ण पारिवारिक भोजन लेने लगता है। अनुपूरक आहार में पर्याप्त मात्रा में पोषण तत्व उपस्थित होने चाहिये। अनुपूरक आहार द्वारा शिशु की भी पोषण तत्वों की आवष्यकता जैसे प्रोटीन, वसा, कार्बोहाईडेट, खनिज लवण विटामिन इत्यादि काफी हद तक पूर्ण की जा सकती है। कार्यक्रम के अन्त में डा0 दीक्षा पटेल ने महिला कृषकों को धन्यवाद् दिया व कार्यक्रम को सफल बनाने में केन्द्र के वैज्ञानिक डा0 मानवेन्द्र सिंह, डा0 मंजुल पाण्डेय, ई0 अजीत कुमार निगम, श्री कमल नारायण बाजपेयी व श्री धमेन्द्र कुमार सिंह का विशेष योगदान रहा।
कृषि विज्ञान केन्द्र, बांदा द्वारा युवतियों हेतु चार दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन डा0 प्रज्ञा ओझा द्वारा किया गया। डा0 प्रज्ञा ओझा ने महिला कृषकों को सम्बोधित करते हुये कहा कि दूध हमारे लिये सबसे महत्वपूर्ण आहार है। शैशवावस्था से वृद्धावस्था तक हमारे शरीर को दूध की प्रमुख आवश्यकता रहती है। दूध को किसी भी दूसरे भोज्य पदार्थ से स्थानान्तरित नहीं किया जा सकता है। प्रौढावस्था में प्रतिदिन 02 कप दूध अथवा इसकी मात्रा के समान अन्य दूध के बने भोज्य पदार्थ लेने आवश्यक होते हैं। कार्यक्रम में आगे डा0 प्रज्ञा ओझा ने बताया कि दूध एक जटिल भोज्य पदार्थ है। जिसमें द्रव की मात्रा ठोस पदार्थों की मात्रा से कहीं अधिक होती है। ताजे गाय के दूध में लगभग 87 प्रतिशत जल व 13 प्रतिशत ठोस पदार्थ होते हैं। दूध का संगठन जानवर, जानवर की प्रजाति व जानवर के आहार पर निर्भर करता है। एक कप गाय के दूध से लगभग 9 ग्राम प्रोटीन, 9 ग्राम वसा, 12 ग्राम कार्बोहाईड्रेट तथा 160 कैलोरी ऊर्जा मिलती है। कार्यक्रम के अन्तर्गत डा0 प्रज्ञा ओझा द्वारा प्रशिक्षणार्थियों द्वारा यह भी समझाया गया कि दूध में मुख्य रूप से तीन प्रकार की प्रोटीन उपस्थित रहती है -केसीन, लैक्टऐल्बुमिन व लैक्टग्लोबूलिन। ये तीनों प्रकार की प्रोटीन पूर्ण प्रोटीन है। इसके साथ साथ दूध की वसा में संतृप्त वसीय अम्ल (फैटी एसिड) भी उपस्थित रहते हैं। जोकि मानव शरीर विकास में अत्यन्त लाभप्रद है। कार्यक्रम में डा0 प्रज्ञा ओझा ने युवतियों के समक्ष दूध से बने विभिन्न पदार्थ जैसे रसमलाई, बर्फी, खीर, छेना, रबडी इत्यादि बनाकर भी प्रदर्शन कराया व दूध प्रसंस्करण के महत्व को विधिवत समझाया। कार्यक्रम के अन्त में डा0 दीक्षा पटेल ने महिला कृषकों को धन्यवाद् दिया व कार्यक्रम को सफल बनाने में केन्द्र के वैज्ञानिक डा0 मानवेन्द्र सिंह, डा0 मंजुल पाण्डेय, ई0 अजीत कुमार निगम, श्री कमल नारायण बाजपेयी व श्री धमेन्द्र कुमार सिंह का विशेष योगदान रहा।
दिनांक 21.03.2023 को कृषि विज्ञान केन्द्र, बांदा द्वारा ‘‘वर्मीकम्पोस्ट उत्पादन द्वारा आय अर्जन’’ विषय पर एक दिवसीय आन कैम्पस प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में कुल 35 ग्रामीण महिलाओं ने प्रतिभाग किया। कार्यक्रम का शुभारम्भ विषिष्ट अतिथियों द्वारा दीप प्रज्जवलित कर किया गया। प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजक डा0 प्रज्ञा ओझा ने महिला कृषकों को सम्बोधित करते हुये कहा कि हमारे पर्यावरण की सुरक्षा हेतु कृषकों को विषेष रूप से जैविक खेती पर ध्यान देना होगा। इसके अन्तर्गत वर्मीकम्पोस्ट या केचुआ खाद सवोत्तम उपाय है। वर्मीकम्पोस्ट पोषण पदार्थों से भरपूर एक उत्तम जैव उर्वरक है। यह केचुये द्वारा वनस्पतियों गोबर एवं भोजन के कचरे आदि को विघटित करके बनायी जाती है। वर्मी कम्पोस्ट में लगभग 03 प्रतिशत नाईट्रोजन, 02 प्रतिशत पोटाष व 02 प्रतिशत सल्फर पाया जाता है। इस खाद को तैयार करने में कृषकों को कुल डेढ से दो महीने लगते हैं। केचुआ खाद के उपयोग से भूमि गुणवत्ता में सुधार के साथ साथ जलधारण क्षमता में भी वृद्धि होती है। वर्मी कम्पोस्ट के उपयोग से भूमि में खरपतवार भी कम उगते हैं और पौधों में भी रोग व्याधि कम लगते हैं साथ ही साथ पौधों तथा भूमि के बीच आयनों के आदान प्रदान में में भी वृद्धि होती है। केचुआ खाद बनाते हुये इस बात का ध्यान अवश्य रखें कि किसी भी प्रकार की रासायनिक कीटनाशक दवा का उपयोग न करें व केचुआ खाद को नमी वाले स्थान पर बनायें। कार्यक्रम में आगे डा0 श्याम सिंह, वरिष्ठ वैज्ञानिक के0वी0के, बांदा ने कृषकों को श्रीअन्न (मिलेट्स) के उत्पादन को बढावा देने हेतु प्रेरित किया। डा0 प्रज्ञा ओझा ने सभी प्रतिभागियों को राष्ट्रीय बागवानी अनुसंधान एवं विकास फाउंडेषन दिल्ली द्वारा निर्मित पोषण वाटिका किट भी वितरित किये।
दिनांक 19.03.2023 को कृषि विज्ञान केन्द्र, बांदा द्वारा ग्रामीण परिवेश में पोषण खाद्य सुरक्षा हेतु रसोई वाटिका की भूमिका विषय पर प्रसार कर्मियों हेतु प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कार्यक्रम का मुख्य उद्देष्य बांदा जिले की महिलाओं व बच्चों को कुपोषण व रक्ताल्पता जैसी गम्भीर समस्याओं से बचाना है। डा0 प्रज्ञा ओझा ने कृषक महिलाओं को प्रेरित करते हुये कहा कि पोषण वाटिका घर का वह क्षेत्र या बगीचा है जहां पर घरेलू उपयोग के लिये सब्जियां व फल इत्यादि उगाये जाते है। उन सब्जियों व फलों का उपयोग हमारी ग्रामीण बहने वर्ष भर नियमित रूप से कर सकती हैं। पोषण वाटिका के माध्यम से हमारे देश में खाद्य व पोषण सुरक्षा को भी बढावा मिलेगा। पोषण वाटिका से उत्पादित फलों व सब्जियों को बेंचकर हमारी ग्रामीण महिलायें स्वावलम्बी होगी व आय अर्जन द्वारा समाज में स्वयं की एक नई छवि भी स्थापित करेगी। कार्यक्रम में डा0 ओझा ने आगे बताया कि परिवार के प्रत्येक वयस्क को प्रतिदिन 300 ग्राम सब्जी अपने दैनिक आहार में सम्मिलित करनी चाहिये, जिससे उनके शरीर में सूक्ष्म पोषक तत्वों, खनिज लवण व विटामिन की कमी को रोका जा सके। हरी सब्जियों फलों के सेवन से बच्चों में होने वाले रोग जैसे रंतौधीं, स्कर्वी, एनीमिया व कुपोषण जैसी समस्याओं से भी निजात मिलता है। कार्यक्रम में डा0 प्रज्ञा ने श्रीअन्न (मिलेट्स) के महत्व, प्रसंस्करण व रखरखाव के विषय में भी महिलाओं को जानकारी दी। ग्रामीण परिवेष में पोषण वाटिका को स्थापित करने हेतु कृषक महिलाओं को रष्ट्रीय बागवानी अनुसंधान एवं विकास फाउंडेशन दिल्ली द्वारा निर्मित पोषण वाटिका किट भी वितरित किये गये।
बाँदा कृषि एव प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय बाँदा के अन्तर्गत संचालित कृषि विज्ञान केन्द्र बाँदा द्वारा कृषक प्रशिक्षण कार्यक्रम में गोबर की खाद बनाने की विधि एवं लाभ विषय पर एक कृषक प्रशिक्षण का आयोजन बड़ोखर विकास खण्ड के ग्राम त्रिवेणी किया गया। प्रशिक्षण में केन्द्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक डा0 श्याम सिंह ने कृषकों को बताया कि भूमि में लाभकारी जीवों का मुख्य भोजन कार्बनिक पदार्थ होता है जो गोबर की खाद में उच्च अनुपात में पाया जाता है। गोबर की खाद से अल्प मात्रा में नत्रजन सीधे पौधों को प्राप्त होता है और बडी मात्रा में खाद सडने के साथ साथ लम्बी अवधि तक उपलब्ध होता रहता है। फास्फोरस एवं पोटाश अकार्बनिक स्रोतों की भांति उपलब्ध होते गोबर की खाद में औसतन प्रति टन 5-6 कि0ग्रा0 नत्रजन, 1.2 से 02 कि0ग्रा0 फास्फोरस और 5-6 कि0ग्रा0 पोटाष पाया जाता है। हालंाकि गोबर की खाद भारत में एक आम जैविक खाद है परन्तु किसान भाई इसके बनाने की वैज्ञनिक विधि एवं कुशलता पूर्वक इसके उपयोग पर पर्याप्त ध्यान नहीं देते हैं। गोबर की खाद के फसलों में निम्नलिखित लाभ है- • मिट्टी की भौतिक, जैविक व रासायनिक गुणों में सुधार कर उर्वरता बढाता है। • नत्रजन व पौषक तत्वों का प्राकृतिक स्रोत है। • मिट्टी में ह्यूमस और धीमी गति से रिलीज होने वाले पोषक तत्वों में वृद्धि करता है। • भूमि की जलधारण क्षमता बढाकर पोषक तत्वों को बनाये रखता है। • लाभकारी जीवाणुओं की संख्या बढाता है। गोबर की खाद तैयार करने की वैज्ञानिक विधि:- अधिकतर पशुपालकों द्वारा गोबर का एक बडा भाग उपले बनाने में प्रयोग किया जाता है। जो सर्वथा गलत है और पशुओं के लिये बिछी मिट्टी में मूत्र नष्ट हो जाता है। वर्षा के मौसम में उपले न बनने के कारण ही गोबर को सडक किनारे या घरों के पास ढेर लगाकर खाद बनाने का कार्य किसान भाई करते हैं जिससे धूप व वर्षा के कारण पोषक तत्वों का ह्यूमस हो जाता है साथ ही पर्यावरण भी दूषित होता है। गोबर की खाद तैयार करने के लिये ऐसे उंचे स्थल का चयन करें जहां वर्षा का पानी एकत्र होता है। तेज धूप व वर्षा से बचाने हेतु छायादार स्थान व छत की भी आवश्यकता होती है। इस विधि में 02 मी0 चैडा एवं 01 मी0 गहरा व सुविधानुसार लम्बाई का गढ्ढा खोदा जाता है। गढ्ढे की गहराई एक तरफ 3 फिट और दूसरी तरफ 3.5 फिट होनी चाहिये। वर्षा जल के भराव को रोकने के लिये गढ्ढे के चारों तरफ मेंड बनायी जाती है। प्रत्येक कृषक के पास 2-3 गढ्ढे होने चाहिये जिससे कि क्रम चलता रहे। पशुओं के गोबर को एकत्र करते समय सावधानी बरतनी चाहिये कि पशुओं का मूत्र नष्ट न होने पाये इसके लिये पशुओं के नीचे खराब भूसा बेकार चारा या फसलों के अवषेषों को फैला दिया जाता है। जो पषु मूत्र को सोख लेते हैं इसके लिये धान की पुआल एवं गन्ने की पत्तियां, बाजरे का बबूला आदि उपयुक्त रहते हैं। फसल अवषेषों द्वारा मूत्र सोख लेने से कार्बन और नत्रजन का अनुपात कम हो जाता है और अवषेष जल्दी सड जाता है। पक्के फर्ष की स्थिति में ढाल बनाकर गढढे में मूत्र को एकत्र किया जा सकता है। गढ्ढे में भरने के लिये पषुओं के गोबर को उनके मूत्र से भीगे बिछावन में मिलाकर परत दर परत भरते हैं। कम गहरी तरफ से गढ्ढा भरना शुरू करना चहिये। गडढे को मूत्र में भीगा बिछावन एवं गोबर की परतों से क्रमवार भरना चाहिये। इसी क्रम में गडढा भरते भरते भूमि के स्तर से लगभग 1.5 फिट उंचाई तक ढेर लगा सकते हैं। अन्त में उसके उपर 02 इंच मोटी मिट्टी की परत से ढक देना चाहिये। ऐसा करने से पोषक तत्वों का हा्स नहीं होगा और खरपतवारों के बीज अच्छी तरह सड जायेंगें। गड्ढा भरते समय फसल अवषेष में नमी पर्याप्त होनी चाहिये। गोबर की खाद की उपयोग विधि:- गोबर की खाद प्रयोग करते समय खेत में नमी होना बहुत आवष्यक है और ढेरी लगाकर कभी न छोंडे। फसल बुआई के 15-20 दिन पूर्व खाद को समान रूप से बिखेर कर नमी की दषा में मिटटी में मिलाना चाहिये बिना सडी खाद का प्रयोग कदापि नहीं करना चाहिये इससे दीमक का प्रकोप बढता है। सामान्य फसलों में 2 से 5 टन/हे0 की दर से एवं सब्जी व गन्ने में 5-10 टन/हे0 की दर से प्रयोग करना चाहिये। गोबर की खाद के साथ सिंगल सुपर फास्फेट का प्रयोग करना उत्तम रहता है। प्रशिक्षण में पशुपालन के विशेषज्ञ डा0 मानवेन्द्र सिंह ने केन्द्र की योजनाओं के बारे में विस्तार पूर्वक चर्चा की। प्रशिक्षण कार्यक्रम में गाँव के 28 कृषकों ने प्रतिभाग किया।
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आई0सी0ए0आर0) नई दिल्ली में अन्तराष्ट्रीय श्रीअन्न सम्मेलन का आयोजन किया गया जिसका उदघाटन देश के लोकप्रिय माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी द्वारा किया गया। अपने उदबोधन में माननीय प्रधानमंत्री जी ने कहा कि मोटे अनाजों का प्रचलन इनकी महत्ता के कारण बढ रहा है एवं पूरी दुनिया में भारत मिलेट हब के रूप में विकसित हो रहा है। मोटे अनाजों को छोटे किसानों के द्वारा उगाया जाता है। वैश्विक स्तर पर इनकी मांग बढने से देश के 2.5 करोड छोटे किसानों की आय बढेगी। इस अवसर पर बांदा कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय, बांदा के अन्र्तगत संचालित कृषि विज्ञान केन्द्र, बांदा द्वारा प्राकृतिक खेती के अवसर के लिये श्रीअन्न (मिलेटस्) विषय पर एक दिवसीय कृषक प्रशिक्षण आयोजित किया गया। जिसमें जनपद के 02 विकास खण्डों के 40 प्रतिनिधियों ने प्रतिभाग किया। प्रशिक्षण कार्यक्रम में केन्द्र के अध्यक्ष डा0 श्याम सिंह ने श्रीअन्न का मानव स्वास्थ्य पर प्रभाव के विषय में चर्चा की। उन्होनें बताया कि बुन्देलखण्ड में पारम्परिक तौर पर मोटे अनाज की खेती की जाती थी जोकि हरित क्रान्ति के परिणामस्वरूप कम हो गयी। मोटे अनाज की खेती बुन्देलखण्ड की जलवायु के अनुरूप हैं। जिसमें सूखा सहन करने की क्षमता एवं रोग प्रतिरोधक क्षमता अधिक होती है साथ ही यह कम लागत में उत्पादन किया जा सकता है। कार्यक्रम में डा0 प्रज्ञा ओझा ने प्रतिभागियों को मोटे अनाजों के प्रंस्सकरण एवं संरक्षण के विषय में विस्तृत जानकारी देते हुये कहा कि हम मोटे अनाजों को अपने दैनिक आहार का हिस्सा बनायें व मोटे अनाजों को आटा, लड्डू, इडली, डोसा, चीला, खीर इत्यादि भोज्य पदार्थ बनाकर सेवन करें। जिससे बुन्देलखण्ड में व्याप्त कुपोषण एवं एनीमिया जैसी गम्भीर समस्याओं से निजात पाया जा सकें। इसके साथ उन्होनें महिलाओं को रसोईवाटिका किट भी वितरित की व अपने घरों में ताजी सब्जियां उगाने के लिये प्रेरित किया। केन्द्र के फसल सुरक्षा विशेषज्ञ, डा0 मन्जुल पाण्डेय ने प्राकृतिक खेती के महत्व के विषय पर प्रकाश डालते हुये बताया कि जीवामृत सूक्ष्म जीवाणुओं का महासागर है। इसको बनाने के लिए 10 ली0 देशी गाय का गौ मूत्र, 10 किग्रा0 ताजा देशी गाय का गोबर, 2 किग्रा0 बेसन, 2 किग्रा0 गुड़ व 200 ग्राम बरगद के पेड़ के नीचे की जीवाणुयुक्त मिट्टी को 200 ली0 पानी में मिलाकर, इनकों जूट की बोरी से ढ़ककर छाया में रखना चाहिए। फिर सुबह-शाम डंडे से घड़ी की सुई की दिशा में घोलना चाहिए। अन्त में 48 घण्टे बाद छानकर सात दिन के अन्दर ही प्रयोग किया जाना चाहिए। केन्द्र के पशुपालन के विशेषज्ञ डा0 मानवेन्द्र सिंह द्वारा प्राकृतिक खेती में गाय की महत्वपूर्ण भूमिका के बारे में विस्तारपूर्वक चर्चा की गयी। केन्द्र की कृषि प्रसार विशेषज्ञ डा0 दीक्षा पटेल ने कृषक उत्पादक संगठन बनाकर श्रीअन्न (मिलेट्स) की खेती करने के लिये कृषकों को प्रेरित किया।
प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि की 13वीं किस्त जारी करने पर माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के कृषक संवाद व उदबोधन का सजीव प्रसारण सभी कृषकों को दिखाया गया। इस अवसर पर ‘‘पर ड्राप मोर क्राप माईक्रोइरीगेशन] योजनान्र्तगत उद्यान विभाग द्वारा प्रायोजित एक दिवसीय कृषक प्रशिक्षण आयोजित किया गया। जिसमें जनपद के 06 विकास खण्डों के 60 कृषकों/कृषक महिलाओं ने प्रतिभाग किया। कार्यक्रम में केन्द्र के अध्यक्ष डा0 श्याम सिंह ने जल संरक्षण हेतु विभिन्न सस्य क्रियाओं पर जोर डालते हुये वर्षा के जल केा संरक्षित करने के लिये कृषकों को प्रेरित किया साथ ही टपक सिंचाई एवं स्प्रिंकलर सिंचाई पद्धति से फसलों की गुणवत्ता में होने वाली बढोत्तरी से सभी को अवगत कराया। जिला उद्यान अधिकारी श्री राजेन्द्र कुमार ने कृषक हित में उद्यान विभाग द्वारा चलायी जा रही योजनाओं के बारे में सभी को अवगत कराया। जनपद के प्रगतिषील कृषक श्री राम सिंह कछवाह निवासी बांदा, श्री अखिलेष्वर निवासी मुरवल एवं श्री जयकरन यादव निवासी बजरंगपुरवा ने उद्यान विभाग की योजनाओं से लाभान्वित होकर अपने अनुभवों को सभी कृषकों से साझा किया। कार्यक्रम में डा0 मंजुल पाण्डेय ने फलों एवं सब्जीयों में लगने वाले कीट एवं रोगों के लिये एकीकृत प्रबन्धन हेतु सभी को प्रेरित किया साथ ही प्राकृतिक खेती अपनाकर फसलों की उत्पादकता, गुणवत्ता एवं शुद्ध आय बढाने के लिये सभी को पे्ररित किया। केन्द्र के पशुपालन के विशेषज्ञ डा0 मानवेन्द्र सिंह ने केन्द्र की योजनाओं के बारे में विस्तारपूर्वक चर्चा की। केन्द्र की कृषि प्रसार विशेषज्ञ डा0 दीक्षा पटेल ने कृषि में सूचना संचार तकनीकी का प्रयोग के बारे में बताया।
बाँदा कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय, बाँदा के अन्तर्गत संचालित कृषि विज्ञान केन्द्र, बाँदा द्वारा ‘‘दलहनी फसलों में बौछारी सिंचाई के लाभ’’ विषय पर एक कृषक प्रशिक्षण का आयोजन बड़ोखर विकास खण्ड के ग्राम त्रिवेणी किया गया। प्रशिक्षण में केन्द्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक डा0 श्याम सिंह ने कृषकों को बताया कि खेती में पानी का बहुत महत्व है। पानी की कमी को देखते हुए कम पानी से अधिक उत्पादन लेने हेतु किसान भाईयों को नयी तकनीक का प्रयोग करना होगा इससे बौछारी सिंचाई विधि बहुत ही उपयोगी है। डा0 सिंह ने बताया कि दलहनी फसलों से अधिक उपज लेने के लिए पौधों की जड़ों के पास वायु का संचार हमेशा बना रहना चाहिए जिससे इनकी जड़ों में पाये जाने वाले राइजोबियम बैक्टीरिया की बढ़वार अच्छी होती है और इससे फसल को नत्रजन मिलने के कारण पैदावार बढ़ती है। बौछारी सिंचाई के लिए इसके सिस्टम में एक पम्प, मुख्य पाईप, बगल की पाईप, पानी उठाने वाले राईजर और पानी बौछार करने वाले फुहारे (नोजल) सम्मिलित होते हैं। बौछारी सिंचाई में पानी को पम्प द्वारा दबाव के साथ पाईप में भेजा जाता है जहाँ से यह राईजर में होता हुआ नोजल से वर्षा की बूँदों की तरह फसल पर गिरता है और इसे आवश्यकतानुसार बंद कर सकते हैं। बौछारी सिंचाई के दलहनी फसलों में निम्नलिखित लाभ है- 1. कम पानी का खर्च होता है। 2. समतल खेतों में समान सिंचाई हो सकती है। 3. हल्की सिंचाई करना सम्भव है। 4. कीटनाशक का प्रयोग इसी के साथ कर सकते हैं। 5. पाला पड़ने पर फसलों के नुकसान को कम कर सकते हैं। 6. सतही सिंचाई की तुलना में 2-3 गुना क्षेत्र में सिंचाई सम्भव है। बौछारी सिंचाई में निम्नलिखित सावधानियाँ आवश्यक हैं जिससे सेट ठीक प्रकार कार्य करे- 1. स्वच्छ जल का प्रयोग करें। 2. दवाई का प्रयोग करने के बाद साफ पानी से पूरे सेट सफाई करनी चाहिए। 3. सभी उपकरणों को प्रयोग के बाद साफ कर छायादार स्थान पर चूहों से बचाकर सुरक्षित स्थान पर रखें। 4. बौछारी सिंचाई करते समय हवा की गति 15 कि.मी./घण्टा से अधिक न हो अच्छा रहता है। प्रशिक्षण कार्यक्रम में गाँव के 25 कृषकों ने प्रतिभाग किया।
KVK Banda organized one day farmers training on topic “Effect of Dewormer on health and Production of Animals. KVK Animal Science SMS, Dr. Manvendra Singh address 30 farmers of adopted Village Choudhary Dera under NICRA project and told them about the importance of deworming. He told the farmers that accurate dose and timely deworming of animals leads to improve the production of animals and maintain their health as well. Deworming should be done in morning before allowing the animals to feed. Deworming of newly born calves should be done at 15 days of age and for adult animals three times in the year.
बाँदा कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय, बाँदा के अन्तर्गत संचालित कृषि विज्ञान केन्द्र, बाँदा द्वारा गेहूँ में सिचाई प्रबन्धन विषय पर कृषक प्रशिक्षण का आयोजन दिनांक 07-02-2023 को केंद्र पर किया गया । बंदा जनपद में पानी के महत्व को समझते हुये केंद्र के अध्यक्ष डॉ . श्याम सिंह ने किसानो को जल प्रबन्धन के गुण बताए । उन्होने कहा कि गेहूँ कि फसल में प्रबन्धन के द्वारा कम पानी में भी अच्छी पैदावार ली जा सकती है । गेहूँ कि सिचाई फसल की अवस्था विशेष पर करने पर अलग-अलग प्रभाव पड़ता है। उन्होने गेहूँ की सिचाई के लिए क्रांतिक अवस्थाओं पर चर्चा करते हुए बताया कि सामान्य भूमियों में एवं पानी कि पर्याप्त उपलब्धता की स्थिति में निम्नानुसार 6 सिचाई करनी चाहिए- पहली सिंचाई क्राउन रूट स्टेज बुवाई के 20-25 दिन बाद दूसरी सिंचाई कल्ले निकलने की अवस्था बुवाई के 40-45 दिन बाद तीसरी सिंचाई गांठ बनने की अवस्था बुवाई के 60-65 दिन बाद चौथी सिंचाई फूल आने के समय बुवाई के 80-85 दिन बाद पांचवीं सिंचाई दुग्ध बनने की अवस्था बुवाई के 100-105 दिन बाद छठी सिंचाई दाना भरने की अवस्था बुवाई के 115-120 दिन बाद बांदा जनपद में अधिकतर भारी दोमट मिट्टियाँ पायी जाती हैं जिनसे मात्र 4 सिंचाई करने से अच्छी उपज मिल सकती है। इनको निम्न अवस्थाओं पर करना चाहिए- पहली सिंचाई : बुवाई के 20-25 दिन बाद क्राउन रूट स्टेज अवस्था पर दूसरी सिंचाई: पहली सिंचाई के 30 दिन बाद कल्ले निकलने की अवस्था पर तीसरी सिंचाई: दूसरी सिंचाई के 30 दिन बाद फूल आने के अवस्था पर चौथी सिंचाई : तीसरी सिंचाई के 20-25 दिन बाद दुग्ध बनने की अवस्था पर यदि हमारे पास सीमित मात्रा में जल उपलब्ध है तब इससे भरपूर लाभ लेने के लिए इसको निम्नानुसार प्रयोग करें: 1. केवल तीन सिंचाइयों हेतु जल उपलब्ध होने पर इसे क्राउन रूट स्टेज, बालें निकलते समय और दुग्ध अवस्था पर लगाया जाना चाहिए। 2. केवल दो सिंचाइयों हेतु जल उपलब्ध होने पर इसे क्राउन रूट स्टेज और फूल आने की अवस्था में लगाएं। 3. केवल एक सिंचाई हेतु जल उपलब्ध होने पर फसल की क्राउन रूट अवस्था में लगाएं। गेहूँ की फसल की सिंचाई करते समय निम्नलिखित तीन बातों पर विशेष ध्यान दें: 1. सिंचाई के पानी के उचित वितरण के लिए खेत को ठीक से समतल करना चाहिए और एक दिशा में थोड़ा ढलान देना चाहिए। 2. बुवाई के बाद, खेत को समान आकार की छोटी क्यारियों में विभाजित कर देना चाहिए जिससे सिंचाई के पानी का उचित वितरण सुनिश्चित हो सके। 3. हल्की और भारी मिट्टी के मामले में सिंचाई की गहराई क्रमशः 6 सेमी और 8 सेमी होनी चाहिए। 4. बौछारी विधि से सिचाई करना सर्वथा लाभकारी रहता है ।
बाँदा कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय, बाँदा के अन्तर्गत संचालित कृषि विज्ञान केन्द्र, बाँदा द्वारा अखिल भारतीय समन्वित परियोजना अलसी अन्तर्गत जनपद के 12 ग्रामों 35 प्रथम पंक्ति प्रर्दषनों का आयोजन रबी 2022-23 में किया गया है। जिसकी मानीटरिंग हेतु इंद्रा गाँधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर के प्राध्यापक सस्य विज्ञान एवं परियोजना समन्यवक, एक्रिप अलसी डा0 संजय द्विवेदी को भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद नई दिल्ली द्वारा अनुश्रवण अधिकारी के रूप में नियुक्त किया गया है। आज दिनांक 06.02.2023 को डा0 संजय द्विवेदी एवं केन्द्र के अध्यक्ष डा0 श्याम सिंह व वि0व0वि0 डा0 दीक्षा पटेल द्वारा ग्राम मंटौध में प्रक्षेत्र भ्रमण कर अलसी प्रजाति उमा का निरीक्षण किया गया। निरीक्षण दौरान यह पाया गया कि अलसी की प्रजाति उमा बुन्देलखण्ड क्षेत्र हेतु उपयुक्त है, जो कि कम पानी एवं कम खाद में अच्छा उत्पादन दे सकती है। डा0 द्विवेदी ने कहा कि अलसी बुन्देलखण्ड की मुख्य फसल हुआ करती थी। आज से करीब 15-20 वर्ष पूर्व अलसी की खेती व्यापक स्तर पर होती थी लेकिन दुर्भाग्यवष वर्तमान में अलसी का क्षेत्रफल मटर, मसूर एवं सरसों द्वारा ले लिया गया है। अलसी में ओमेगा-3 नामक फैटी ऐसिड पाया जाता है। जोकि यह हड्डियों सम्बन्धित बीमारियों की रोकथाम हेतु आवष्यक है। उन्होनें ग्राम के लाभान्वित कृषकों से अलसी का क्षेत्रफल बढाने एवं स्वयं सहायता समूह बनाकर अलसी के विभिन्न उत्पाद बनाने हेतु प्रेरित किया गया। इस भ्रमण में ग्राम के 10 कृषकों ने प्रतिभाग किया। कृषक प्रक्षेत्र भ्रमण के उपरान्त डा0 द्विवेदी द्वारा बाँदा कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय, बाँदा के सस्य विज्ञान एवं मृदा विज्ञान विषय के छात्र एवं छात्रायें से अनुसंधान सम्बन्धी चर्चा की साथ ही वि0वि0 में चल रहे अलसी के अनुसंधान ट्रायल एवं प्रयोगशालाओं का भ्रमण किया गया साथ ही अपने सुझाव से सभी अवगत कराया उनके इस भ्रमण के दौरान उनके साथ डा0 जी0 एस0 पंवार अधिष्ठाता कृषि महाविद्यालय, डा0 एस0के0 सिंह प्राध्यापक, डा0 ए0के0 चैबे, प्राध्यापक, डा0 जगन्नाथ पाठक, प्राध्यापक एवं डा0 सी0एम0 सिंह सहायक प्राध्यापक उपस्थित रहें।
बांदा कृषि एवं प्रौद्योगिक विष्वविद्यालय, बांदा के आधीन संचालित कृषि विज्ञान केन्द्र, बांदा द्वारा संचालित गौ आधारित प्राकृतिक खेती परियोजनान्तर्गत दो दिवसीय कृषक प्रशिक्षण कार्यक्रम का शुभारम्भ दीप प्रज्वलन के साथ मुख्य अतिथि प्रो0 (डा0) एन0पी0सिंह, मा0 कुलपति, बीयूएटी के द्वारा किया गया। उद्घाटन सत्र के दौरान मा0 कुलपति महोदय ने कहा कि खेती में प्रयुक्त रसायनों की बढ़ती कीमतों एवं घटती उत्पादकता तथा मानव स्वास्थ्य व पर्यावरण प्रदूषण जैसी चुनौतियों का समाधान प्राकृतिक खेती में ही सम्भव है। हमारी सरकार एवं वैज्ञानिक इस दिशा में प्रयासरत हैं कि कृषकों की खेती की लागत को कम कर टिकाऊ उत्पादन कैसे प्राप्त किया जाये। बुन्देलखण्ड की भूमि में ऊर्वरकों का प्रयोग अपेक्षाकृत कम हुआ है इसलिए उ0प्र0 सरकार द्वारा बुन्देलखण्ड को प्राकृतिक खेती परियोजना आरम्भ करने के लिए उपयुक्त पाया इसी क्रम में विश्वविद्यालय द्वारा भी प्राकृतिक खेती पर शोध का कार्य प्रारम्भ किया गया है जिससे इसके वैज्ञानिक पहलुओं पर प्रकाश डाला जा सके। मा0 कुलपति ने बताया कि फसल चक्र अपनाकर खेती में विविधिकरण होता है जिससे पैदावार 20-25ः तक बिना लागत बढ़ाये ही बढ़ जाती है। प्राकृतिक खेती करने पर पारिस्थितिकी में विभिन्न वनस्पतियों, जीवों व जन्तुओं की विविधता अधिक होने से इनका सन्तुलन बना रहता है और फसलों के स्वस्थ्य होने पर उनमें रोग व्याधि भी नहीं लगते तथा पैदावार अधिक प्राप्त होती है। मा0 कुलपति ने कृषकों का आवाह्न किया कि वे गौ आधारित प्राकृतिक खेती अपनाने के लिए आगे कदम बढ़ायें जिसमें विश्वविद्यालय उनके साथ खड़ा हैं। उन्होंने यह भी बताया कि सरकार एक व्यवस्था करने जा रही है जिससे प्राकृतिक खेती के उत्पाद की कीमत अधिक मिलेगी। इसके लिए प्रमाणीकरण की व्यवस्था की जायेगी। उन्होंने केवीके के वैज्ञानिकों को निर्देशित किया कि कृषकों की समस्याओं को सुना जाए और उसको नोट किया जाए तथा वैज्ञानिकों के साथ चर्चा करके उसका समाधान दिया जाए। वैज्ञनिकों को कृषकों के खेत पर जाकर चर्चा को सार्थक करने की आवश्यकता है। निदेशक प्रसार डा0 (प्रो0) एन0 के0 बाजपेयी ने बताया कि हरित क्रान्ति से उत्पादन तो बढ़ा परन्तु कई प्रकार की गम्भीर समस्यायें भी उत्पन्न हुयीं है। रसायनों के अत्यअधिक उपयोग के कारण कीटों में प्रतिरोधक क्षमता बढ़ने से उनकी जनसंख्या का नियन्त्रण नहीं हो पा रहा है साथ ही जैव विविधता में कमी आ रही है। प्राकृतिक खेती से मृदा स्वास्थ्य होगी और उत्पादन भी स्वस्थ्य होगा। सह निदेशक प्रसार डा0 (प्रो0) आनन्द सिंह ने बताया कि प्राकृतिक खेती में जीवाणु और केचुए की संख्या बढाने के लिये कुछ सस्य क्रियायें जैसे खेत की कम से कम जुताई, जीवाणुओं के फूड सोर्स के तौर पर फसल अवषेष व हरी खाद का प्रयोग, मल्चिंग, वापसा, जैव विविधता और ड्रिप सिंचाई के माध्यम से जीवामृत के प्रयोग खेत में जीवाणुओं की वृद्धि करने में सहायक होते हैं। इसे अपनाकर कृषक कृषि निवेशों की बाजार से निर्भरता को कम कर सकते हैं इस प्रकार लागत में भी कमी आयेगी। इससे उत्पादित खाद्य पदार्थों से मानव स्वास्थ्य को सुरक्षित बनाया जा सकता है साथ ही मृदा स्वास्थ्य को सुधारा जा सकता है। उन्होंने प्रशिक्षण मे उपस्थित प्रगतिशील कृषकों से आवाह्न किया कि प्राकृतिक खेती को बढ़ावा दें व अन्य कृषकों को प्ररित करें कि थोड़ी सी भूमि पर इसका परीक्षण अवश्य करें। सह निदेशक प्रसार डा0 (प्रो0) नरेन्द्र सिंह ने प्राकृतिक खेती का मूल, सन्तुलित व पौष्टिक भोजन को बताया। उन्होंने कहा कि आधुनिक रासायनिक खेती से उत्पादन बढ़ा है साथ ही कृषकों की आमदनी भी बढ़ी है किन्तु आमदनी का ज्यादा हिस्सा बीमारी में व्यय होता है और पर्यावरण का क्षरण हो रहा है साथ ही उत्पादकता भी घट रही है। प्राकृतिक खेती एक अच्छा विकल्प हो सकती है। मृदा विज्ञान के विभागाध्यक्ष, डा0 जगन्नाथ पाठक ने मृदा स्वास्थ्य के महत्व को बताया तथा मृदा के स्वास्थ्य को एवं कार्बन जीवांश को कैसे बढ़ाया जाये विस्तारपूर्वक बताया। केन्द्र के फसल सुरक्षा विषय वस्तु विशेषज्ञ डा0 मन्जुल पाण्डेय ने प्राकृतिक खेती में जैविक खेती की तरह जैविक कार्बन खेत की ताकत का इंडिकेटी नहीं हैं बल्कि केंचुए की मात्रा तथा जीवाणुओं की मात्रा व गुणवत्ता खेत की ताकत के द्योतक है। खेत में जब जैविक पदार्थ विघटित होता है और जीवाणु व केंचुए बढते हैं तो खेत का जैविक कार्बन स्वतः ही बढ जाता है। जीवाणुओं का ष्षरीर प्रोटीन मास होता है और जब जीवाणुओं की मृत्यु होती है तो यह प्रोटीन मास जडों के पास ह्यूमस के रूप में जमा होकर पौध का हर प्रकार से पोषण करने में सहायक होता है। दूसरे लाभदायक जीवाणु जो रसायनिक खाद व दवाओं के कारण भूमि में नही पनप पाते हैं। प्राकृतिक खेती से वे जीवाणु भी बढ जाते हैं जिसके फलस्वरूप भूमि व पौधों की कीट, बीमारियों, नमक, सूखा मौसम आदि विषमताओं के प्रति प्रतिरोधक क्षमता बढ जाती है। प्रशिक्षण शुभारम्भ के अवसर पर केन्द्र के अध्यक्ष डा0 श्याम सिंह ने परियोजना के उद्देश्यों पर प्रकाश डाला और कृषकों का आवाह्न किया कि वे प्राकृतिक खेती की ओर रूचि लें तथा आने वाली समस्याओं से केन्द्र अवगत कराएं वैज्ञानिकों द्वारा उनका समाधान किया जायेगा। अन्त में केन्द्राध्यक्ष ने सभी अतिथिओं का धन्यवाद ज्ञापित किया। कार्यक्रम में 3 विकासखण्डों के 5 ग्रामों से 40 कृषकों ने प्रतिभाग किया एवं प्रक्षेत्र भ्रमण कराया गया। कार्यक्रम के दूसरे दिन 01.02.2023 को फसल सुरक्षा विशेषज्ञ एवं केन्द्र के प्राकृतिक खेती परियोजना के नोडल अधिकारी डा0 मन्जुल पाण्डेय द्वारा प्राकृतिक खेती के उत्पादों का प्रायोगिकरूप से उत्पादन एवं प्रदर्शन कार्य कराया गया। सर्वप्रथम प्रशिक्षण प्राप्त करने वालों द्वारा जीवामृत जो कि वह सूक्ष्म जीवाणुओं का महासागर है। इसको बनाने के लिए 10 ली0 देशी गाय का गौ मूत्र, 10 किग्रा0 ताजा देशी गाय का गोबर, 2 किग्रा0 बेसन, 2 किग्रा0 गुड़ व 200 ग्राम बरगद के पेड़ के नीचे की जीवाणुयुक्त मिट्टी को 200 ली0 पानी में मिलाकर, इनकों जूट की बोरी से ढ़ककर छाया में रखना चाहिए। फिर सुबह-शाम डंडे से घड़ी की सुई की दिशा में घोलना चाहिए। अन्त में 48 घण्टे बाद छानकर सात दिन के अन्दर ही प्रयोग किया जाना चाहिए। बृम्हास्त्र जोकि कीट व रोग प्रबन्धन में उपयोगी है। उसको भी बनाने का प्रायोगिक कार्य किया गया। डा0 पाण्डेय द्वारा बताया गया कि प्राकृतिक खेती में जैविक खेती की तरह जैविक कार्बन खेत की ताकत का इंडिकेटी नहीं हैं बल्कि केंचुए की मात्रा तथा जीवाणुओं की मात्रा व गुणवत्ता खेत की ताकत के द्योतक है। खेत में जब जैविक पदार्थ विघटित होता है और जीवाणु व केंचुए बढते हैं तो खेत का जैविक कार्बन स्वतः ही बढ जाता है। जीवाणुओं का शरीर प्रोटीन मास होता है और जब जीवाणुओं की मृत्यु होती है तो यह प्रोटीन मास जडों के पास ह्यूमस के रूप में जमा होकर पौध का हर प्रकार से पोषण करने में सहायक होता है। दूसरे लाभदायक जीवाणु जो रसायनिक खाद व दवाओं के कारण भूमि में नही पनप पाते हैं। प्राकृतिक खेती से वे जीवाणु भी बढ जाते हैं जिसके फलस्वरूप भूमि व पौधों की कीट, बीमारियों, नमक, सूखा मौसम आदि विषमताओं के प्रति प्रतिरोधक क्षमता बढ जाती है। जिससे पौधे की बढवार और पैदावार भी बढती है। देष में 86 प्रतिशत किसान छोटे और सीमान्त है। जैविक खेती के आरम्भ में वर्षों में उपज में जो कमी आती है उसे वे सहन नहीं कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त जैविक खाद व जैविक दवाओं की कीमत रसायनिक इनपुटस से भी अधिक है जिससे जैविक खेती में छोटे किसानों का षोषण होता है। जैविक और प्राकृतिक खेती में खेत में किसी भी खाद का प्रयोग नहीं किया जाता है बल्कि जीवामृत व घनजीवामृत के माध्यम से जीवाणुओं का कल्चर डाला जाता है। यह जीवामृत जब सिंचाई के साथ खेत में दिया जाता है तो इसमें विद्यमान जीवाणु भूमि में जाकर मल्टीप्लाई करने लगते हैं और इनमें ऐसे अनेक जीवाणु होते हैं जो वायुमंण्डल में मौजूद 78 प्रतिशत नाईट्रोजन को पौधे की जडों व भूमि में स्थिर कर देते हैं। दूसरें पोषक तत्वों की उपलब्धि बढाने में जीवाणुओं के साथ केचुआ भी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है जो भूमि की निचली सतहों से पोषक तत्व लेकर पौधे की जडों को उपलब्ध करवाता है। प्राकृतिक खेती के बांदा जिले के मास्टर ट्रेनर श्री शत्रुघन प्रसाद यादव ने यह कहा कि प्राकृतिक खेती में एक देसी गाय से 30 एकड तक की खेती की जा सकती है क्योंकि 01 एकड की खुराक तैयार करने के लिये गाय के 01 दिन के गोबर और गौमूत्र की आवश्यकता होती है। प्राकृतिक खेती में बाजार से कुछ भी खरीदने की जरूरत नहीं है, जबकि जैविक खेती एक मंहगी पद्धति है। प्राकृतिक खेती में यदि जीवामृत व घनामृत के अतिरिक्त कुछ सस्य क्रियाओं को अपनाया जाये तो पहले ही वर्ष उपज में कमी नहीं आती है फिर भी किसानों को सलाह दी जाती है कि पहले वर्ष केवल आधा या 01 एकड में प्राकृतिक खेती करें और अनुभव होने के बाद ही इसके अन्तर्गत क्षेत्रफल बढाया जाये ताकि यदि किसी कारणवश उपज में कमी आये तो इससे किसान की आमदनी कम से कम प्रभावित हो और देष की खाद्य सुरक्षा किसी भी हालत में प्रभावित न हो। केन्द्र के अध्यक्ष डा0 श्याम सिंह द्वारा मल्चिंग, वापसा व सहफसली का प्राकृतिक खेती में महत्व एवं डा0 मानवेन्द्र सिंह द्वारा प्राकृतिक खेती के माध्यम से मृदा स्वास्थ्य संवर्धन एवं भविष्य का सविस्तारपूर्वक चर्चा की गयी।
कृषि विज्ञान केन्द्र, बांदा द्वारा संचालित गौ आधारित प्राकृतिक खेती परियोजनान्तर्गत दो दिवसीय (17 व 18-01-2023) कृषक प्रशिक्षण कार्यक्रम का शुभारम्भ प्रो0 भानू प्रकाश मिश्र, प्राध्यापक एवं अध्यक्ष, कृषि प्रसार विभाग द्वारा किया गया है। प्राकृतिक खेती का अर्थ है सूक्ष्म जीवाणुओं की खेती। खेती के इस सिस्टम में भूमि का एक जीवित अस्तित्व मानकर वह सभी कृषि क्रियायें की जाती है जिससे भूमि के अंदर जीवाणुओं की संख्या में वृद्धि होती है। सूक्ष्म जीवाणु और केचुए अनंत काल से एक दूसरे के सहकर्मी रहें हैं। जब एक की संख्या बढती है तो दूसरे की संख्या में भी स्वतः ही वृद्धि हो जाती है और जब दोनों की संख्या बढती है तो भूमि के स्वास्थ्य में तुरंत बदलाव आने लगता है। रसायनिक खेती से हमारे प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक पोषण हो रहा है। फसल पर खर्चा बढने के साथ उपज में ठहराव आ गया है। ग्लोबल वार्मिंग और वायुमण्डल में सम्भावित बदलाव चिंता के विषय हो गये हैं। भूमि, पशु, पक्षी, पौधे और मनुष्य का स्वास्थ्य लगातार प्रभावित हो रहा है। इसलिये रसायनिक खेती का विकल्प ढूंढना अति आवश्यक हो गया है। केन्द्र के वि0व0वि0 डा0 मंजुल पाण्डेय द्वारा बताया गया कि प्राकृतिक खेती में जैविक खेती की तरह जैविक कार्बन खेत की ताकत का इंडिकेटी नहीं हैं बल्कि केंचुए की मात्रा तथा जीवाणुओं की मात्रा व गुणवत्ता खेत की ताकत के द्योतक है। खेत में जब जैविक पदार्थ विघटित होता है और जीवाणु व केंचुए बढते हैं तो खेत का जैविक कार्बन स्वतः ही बढ जाता है। जीवाणुओं का शरीर प्रोटीन मास होता है और जब जीवाणुओं की मृत्यु होती है तो यह प्रोटीन मास जडों के पास ह्यूमस के रूप में जमा होकर पौध का हर प्रकार से पोषण करने में सहायक होता है। दूसरे लाभदायक जीवाणु जो रसायनिक खाद व दवाओं के कारण भूमि में नही पनप पाते हैं। प्राकृतिक खेती से वे जीवाणु भी बढ जाते हैं जिसके फलस्वरूप भूमि व पौधों की कीट, बीमारियों, नमक, सूखा मौसम आदि विषमताओं के प्रति प्रतिरोधक क्षमता बढ जाती है। जिससे पौधे की बढवार और पैदावार भी बढती है। देष में 86 प्रतिशत किसान छोटे और सीमान्त है। जैविक खेती के आरम्भ में वर्षों में उपज में जो कमी आती है उसे वे सहन नहीं कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त जैविक खाद व जैविक दवाओं की कीमत रसायनिक इनपुटस से भी अधिक है जिससे जैविक खेती में छोटे किसानों का षोषण होता है। जैविक और प्राकृतिक खेती में खेत में किसी भी खाद का प्रयोग नहीं किया जाता है बल्कि जीवामृत व घनजीवामृत के माध्यम से जीवाणुओं का कल्चर डाला जाता है। यह जीवामृत जब सिंचाई के साथ खेत में दिया जाता है तो इसमें विद्यमान जीवाणु भूमि में जाकर मल्टीप्लाई करने लगते हैं और इनमें ऐसे अनेक जीवाणु होते हैं जो वायुमंण्डल में मौजूद 78 प्रतिशत नाईट्रोजन को पौधे की जडों व भूमि में स्थिर कर देते हैं। दूसरें पोषक तत्वों की उपलब्धि बढाने में जीवाणुओं के साथ केचुआ भी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है जो भूमि की निचली सतहों से पोषक तत्व लेकर पौधे की जडों को उपलब्ध करवाता है। प्राकृतिक खेती के बांदा जिले के मास्टर ट्रेनर श्री शत्रुघन प्रसाद यादव ने यह कहा कि प्राकृतिक खेती में एक देसी गाय से 30 एकड तक की खेती की जा सकती है क्योंकि 01 एकड की खुराक तैयार करने के लिये गाय के 01 दिन के गोबर और गौमूत्र की आवश्यकता होती है। इसके अतिरिक्त 1-2 किलो बेसन, 1-2 किलो गुड और 250 ग्राम मिटट्ी (जिसमें कभी कोई रसायनिक खाद व दवा का प्रयोग ना किया हो) बैक्टीरिया कल्चर के लिये चाहिये। एक प्लास्टिक के 200 लीटर के ड्रम में इन्हें डाल कर उसे पानी से भर दिया जाता है। यह खुराक गर्मियों में 3-4 दिन में और सर्दियों में 6-7 दिन में तैयार हो जाती है। प्राकृतिक खेती में बाजार से कुछ भी खरीदने की जरूरत नहीं है, जबकि जैविक खेती एक मंहगी पद्धति है। प्राकृतिक खेती में यदि जीवामृत व घनामृत के अतिरिक्त कुछ सस्य क्रियाओं को अपनाया जाये तो पहले ही वर्ष उपज में कमी नहीं आती है फिर भी किसानों को सलाह दी जाती है कि पहले वर्ष केवल आधा या 01 एकड में प्राकृतिक खेती करें और अनुभव होने के बाद ही इसके अन्तर्गत क्षेत्रफल बढाया जाये ताकि यदि किसी कारणवश उपज में कमी आये तो इससे किसान की आमदनी कम से कम प्रभावित हो और देष की खाद्य सुरक्षा किसी भी हालत में प्रभावित न हो। सह निदेशक प्रसार डा0 (प्रो0) आनन्द सिंह ने बताया कि प्राकृतिक खेती में जीवाणु और केचुए की संख्या बढाने के लिये कुछ सस्य क्रियायें जैसे खेत की कम से कम जुताई, जीवाणुओं के फूड सोर्स के तौर पर फसल अवशेष व हरी खाद का प्रयोग, मल्चिंग, वापसा, जैव विविधता और ड्रिप सिंचाई के माध्यम से जीवामृत के प्रयोग खेत में जीवाणुओं की वृद्धि करने में सहायक होते हैं। कार्यक्रम के अन्त में डा0 मंजुल पाण्डेय द्वारा कृषकों को प्रक्षेत्र भ्रमण कराया गया।
दिनांक 29/12/2022 को आजीविका सखियों का पांच दिवसीय प्रशिक्षण एग्रो इकोलॉजिकल पर आधारित खेती एवं पशुपालन विषय पर जिला प्रशिक्षण संस्थान बड़ोखर खुर्द बांदा में आयोजित हुआ। प्रशिक्षण में डॉक्टर श्याम सिंह, कृषि विज्ञान केंद्र बांदा के वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं अध्यक्ष द्वारा एग्रो इकोलॉजिकल विषय में कृषि में परिवर्तन एवं पशुपालन में परिवर्तन एवं उनके सुधार एवं कृषि आजीविका विषय पर विस्तृत जानकारी दी गई। डॉ॰ श्याम सिंह ने अपने सम्बोधन में कृषि में टिकाऊपन लाने के लिए पशुपालन के महत्व पर प्रकाश डाला उन्होने बताया कि पशुओ को बीमारी से बचाने के लिए टीका कारण कराएं एवं संतुलित व पौष्टिक आहार घर पर तैयार करके पशुओं को खिलायें। मृदा स्वस्थ्य के लिए विविधिकरण व फसल चक्र अपनाने कि सलाह दी। पशुओं के गोबर मूत्र व बिछावन से गुणवततापूर्ण खाद बनाने के लिए इनको नाड़ेप, केचुआ कि खाद बनाकर खेतों में प्रयोग करने कि सलाह दी। फसल अवशेष प्रबन्धन पर विस्तार से चर्चा की गयी। कार्यक्रम में प्रशिक्षणार्थियों को बड़ोखर ब्लॉक स्थित उत्तर प्रदेश कृषि विभाग के बीज गोदाम में भ्रमण कराया गया जिसमें बीजों की गुणवत्ता एवं किसान पंजीयन किसान सम्मान योजना एवं अनुदानित यंत्र आदि पर श्री मनोज सिंह ए ए आई/ गोदाम प्रभारी सर द्वारा विधिवत जानकारी दी गई अंत में खंड विकास अधिकारी महोदय जी बड़ोखर खुर्द सर द्वारा किचन गार्डन के लाभ एवं जैविक सब्जियों के बारे में मार्गदर्शन प्राप्त हुआ जिसमें कृषि विभाग से ब्लॉक तकनीकी प्रबंधक श्री पहलाद सिंह उपस्थित रहे एवं बबेरू एवं बिसंडा की 35 आजीविका सखी ने प्रतिभाग किया.
केन्द्र द्वारा जनपद के पौराणिक स्थल सिमौनी धाम में प्रतिवर्ष आयोजित होने वाले 10 दिवसीय विशाल मेले में कृषि विभाग, जनपद बाँदा द्वारा तीन दिवसीय किसान मेला एवं प्रदर्शनी में केन्द्र का प्रदर्शनी स्टाल लगाया गया जिसमें दिनांक 15 से 17.12.2022 तक प्रतिदिन 4000 कृषक व कुल 15000 से अधिक कृषकों द्वारा भ्रमण किया गया। इसके अतिरिक्त प्रत्येक दिन केन्द्र के विषय वस्तु विशेषज्ञों द्वारा समसामयिक विषयों पर व्याख्यान भी प्रस्तुत किया गया। प्रथम दिवस केन्द्र के डा0 मंजुल पाण्डेय द्वारा फसल सुरक्षा एवं डा0 मानवेन्द्र सिंह द्वारा पशुपालन विषय पर व्याख्यान दिया गया। दिनांक 16.12.2022 को डा0 मंजुल पाण्डेय द्वारा दलहनी फसलों में फसल सुरक्षा विषय पर एवं दिनांक 17.12.2022 को डा0 श्याम सिंह द्वारा तिलहनी फसलों के प्रबन्धन विषय पर व्याख्यान दिया गया।
बांदा कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय, बांदा के अन्तर्गत कृषि विज्ञान केन्द्र, बांदा के फसल सुरक्षा वि0व0वि0 डा0 मंजुल पाण्डेय द्वारा दिनांक 26.11.2022 को ग्राम चौधरी डेरा खप्टिहा कलॉ ब्लॉक तिंदवारीें जो निकरा परियोजनान्तर्गत अंगीकृत है में एक दिवसीय कृषक प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित कराया गया। डा0 पाण्डेय ने बताया कि सरसों वर्गीय फसलों हमारे देश की तिलहन अर्थव्यवस्था में मुख्य भूमिका निभाती है। भारत विश्व में तीसरा सबसे बडा राई-सरसों का उत्पादन वाला देश है। देश में राई-सरसों समूह की सात मुख्य फसलें तिलहन फसल के रूप में उगायी जाती है। यह सरसों-राई का प्रमुख कीट है। इसको अन्य भाषा में तेला, चेपा, मावा, मोयल्ला आदि नामों से भी पुकारा जाता है। इसके कीट के शिशु व प्रौढ़ दोनों ही हानि पंहुचाते हैं, दोनों में चुमाने एवं चूसने वाले मुखांग होते हैं ये कीट पौधों की जडों को छोडकर शेष सभी भागों का रस चूसते हैं इसकी मादा कीट अक्सर पत्तियों की नीचे की सतह तथा तने के रस चूसते रहते हैं। इनकी पंखों वाली मादायें काले हरे रंग की तथा बिना पंखों वाली कुछ हल्के हरे रंग व हल्के सलेटी रंग की लगभग 1/10 से0मी0 से शुरू होकर मार्च तक रहता है। इनके मल से पत्तियों पर काली रंग की फंफूदी पैदा हो जाती है। जिससे फसल एवं फलियों का रंग खराब हो जाता है। प्रबन्धन:- आर्थिक क्षति स्तर: 10-20 मॉहू/पौधा या 10 प्रतिषत ग्रसित पौधे 1. इस कीट के लिये फसल की बुवाई 15 अक्टूबर तक अवष्य कर देनी चाहिये। 2. नत्रजन उर्वरक को उपयुक्त मात्रा में डालना चाहिये। अधिक मात्रा में नत्रजन डालने से चेपा के प्रकोप की सम्भावना बढ जाती है। 3. मॉंहू/चेपा सबसे पहले फसल के बाहरी पौधों पर आक्रमण करता है। अतः ग्रसित टहनियों को दो-तीन बार तोडकर नष्ट कर देनी चाहिये। 4. मॉहूं का प्रकोप होने पर पीले चिपचिपे ट्रैप का प्रयोग करना चाहिये, जिससे मॉहू ट्रैप पर चिपक कर मर जाये। 5. पुष्पावस्था से पूर्व नीम का अर्क 5 प्रतिषत (5 मि0ली0/ली0) का पानी में मिलाकर आवष्यकतानुसार 15 दिन के अन्तराल पर छिडकाव करते रहें। 6. आवश्यकता होने पर डायमेथोऐट 30 ई0सी0 या मेटा सिस्ट्राक्स 25 ई0सी0 की दर से छिड़काव करना चाहिये।
बांदा कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय, बांदा के अन्तर्गत कृषि विज्ञान केन्द्र, बांदा के फसल सुरक्षा वि0व0वि0 डा0 मंजुल पाण्डेय द्वारा जनपद बांदा के सब्जी उत्पादित विभिन्न ब्लॉकों जैसे बडोखर खुर्द, महुआ, नरैनी एवं तिंदवारी में बैगन में आ रहे विभिन्न रोगों एवं कीटों की समस्या को देखते हुये केन्द्र की वैज्ञानिकों द्वारा एक दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम दिनांक 17.11.2022 को केन्द्र पर आयोजित किया गया। बैगन भारत की प्रमुख सब्जियों में से एक है, बैगन की 3 प्रकार की प्रजातियां पायी जाती हैं। 1. लम्बे फल वाली 2. नाशपाती के आकार वाली 3. गोल फल वाली। बैंगन की खेती लगभग पूरे जनपद मेें वर्षभर की जाती है। बैंगन की फसल में कई प्रकार के हानिकारक कीटों-रोंगों द्वारा प्रभावित भी होती है। अगर इसका समय रहते प्रबन्धन न किया जाये तो कृषक भाईयों को गुणवत्तापूर्ण उत्पादन के साथ-साथ उत्पादित मूल्य का सही मूल्य नहीं मिल पाता है। बैंगन की फसल में इस समय फोमोप्सिस झुलसा रोग से ग्रसित हो रही है। यह रोग कवक द्वारा उत्पन्न होता है। यह बैंगन का एक बहुत ही हानिकारक रोग है। रोगी पौधों की पत्तियों पर छोटी छोटी गोल भूरे रंग के धब्बे बन जाते हैं एवं अनियमित आकार के काले धब्बे पत्तियों के किनारे पर दिखायी पडते हैं। ग्रसित पौधों की पत्तियां पीली पड के सूख जाती हैं। ग्रसित फलों पर धूल के कणों के समान भूरे रंग के धब्बे दिखायी पडते हैं जो आकार में बढकर फलों को सडाकर जमीन पर गिरा देते हैं। ये एक मृदाजनित एवं बाह्य बीज जनित रोग हैं। इसलिये इस रोग का प्रकोप पौधशाला में भी होता है। जिसके कारण पौधे झुलस जाते हैं। इस रोग के प्रबन्धन के लिये कृषक भाई रोग ग्रस्त पौधों को उखाड कर जला दें। रोग का अधिक संक्रमण होने पर कार्बाबन्डाजिम एवं मैनकोजेब उत्पाद या कार्बाबन्डा जिम या मैनकोजेब या बीटा बैक्स की 30 ग्राम प्रति टंकी में मिला कर छिड़काव करें और पुनः 7 से 10 दिन बाद उक्त दवाओं का छिड़काव करते रहें। इसी के साथ साथ कृषक भाईयों के खेतों पर तना एवं फल भेदक कीट का भी प्रकोप हो रहा है। यह बैंगन का प्रमुख कीट है। इस कीट की सूड़ियां बैंगन के पौधों को तनों एवं पत्तियों के डन्ठल में घुस जाती है और उन्हें अन्दर से खाती हैं। जिसके फलस्वरूप क्षतिग्रस्त भाग से पौधा सूख जाता है। निबौली की 40 ग्राम मात्रा को पीसकर प्रति ली0 की दर से पानी में घोलकर 10 दिन के अन्तर पर छिडकाव किया जायें। कृषक भाई प्रोफोनोफॉस 1 से 2 ली0 प्रति हे0 या थायडिकार्ब 600 ग्राम प्रति हे0 या कार्बाे फ्यूरॉन 2 से 3 कि0ग्रा0 प्रति एकड की दर से छिडकाव करें।
बाँदा कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय बाँदा के अन्तर्गत कृषि विज्ञान केन्द्र, बाँदा द्वारा दो दिवसीय मशरूम उत्पादन पर जागरूकता एवं प्रशिक्षण अभियान के अर्न्तगत ग्राम खप्टिहाकला वि0ख0 तिंदवारी में आयोजित किया गया। जिसमें केन्द्र के फसल सुरक्षा वैज्ञानिक डा0 मंजुल पाण्डेय द्वारा ग्रामीण महिलाओं को मशरूम सम्बन्धी नवीनतम जानकारियाँ दी गयीं। उन्होने बताया कि मशरूम एक मांसल एवं बीजाणुयुक्त फलकाय होता है, जो फफूंदी वर्ग से सम्बन्धित है। वर्तमान समय में सम्पूर्ण विश्व में लगभग 2000 खाये जाने वाली मशरूम की प्रजातियाँ पायी जाती हैं। इनमें से लगभग 180 प्रजातियाँ भारतवर्ष में पायी जाती हैं। इसमें पौष्टिक तत्व र्प्याप्त मात्रा में पाये जाते हैं। मशरूम में उत्तम स्वास्थ्य के लिए आवश्यक सभी प्रमुख तत्व कैल्सियम, फास्फोरस, पोटेशियम, सल्फर, क्लोरीन, आयरन, कापर, आयोडीन और जिंक आदि प्रचुर मात्रा में पाये जाते हैं। इस कार्यक्रम में ग्राम प्रधान श्रीमती मैना देवी सहित 30 कृषकों एवं महिलाओं ने भाग लिया तथा कार्यक्रम के समापन पर ग्रामीण कृषकों द्वारा बनायी गयी मशरूम किट प्रदान की गयी ।
बाँदा कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्याल, बाँदा के अन्तर्गत संचालित कृषि विज्ञान केन्द्र, बाँदा द्वारा दिनांक 05.12.2020 को निकरा ग्राम चौधरी डेरा (खप्टिहा कला) में ‘‘विश्व मृदा स्वास्थ्य दिवस’’ का आयोजन किया गया। संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन द्वारा वर्ष 2014 से प्रत्येक वर्ष 05 दिसम्बर को विश्व मृदा स्वास्थ्य दिवस मनाने के लिए कहा गया। जिसका मुख्य उद्देश्य मानव जीवन में मिट्टी के महत्व को याद रखना तथा मृदा स्वास्थ्य एवं संरक्षण के प्रति लोगों को जागरूक करना है। वर्ष 2022 में मिट्टीः जहाँ भोजन शुरू होता है, थीम पर विश्व मृदा दिवस मनाया जा रहा है। कार्यक्रम का शुभारम्भ करते हुये डा0 श्याम सिंह ने सभी ग्राम वासियों को विश्व मृदा स्वास्थ्य दिवस की महत्ता एवं उद्देश्य के बारे में अवगत कराया और कहा कि इस कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य मृदा स्वास्थ्य के प्रति कृषकों में जागरूकता को बढ़ाना है, साथ ही उन्होंने बताया कि कृषि विज्ञान केन्द्र, बाँदा में आकर मृृदा की जाँच अवश्य कराये तथा उर्वरकों की अनुमोदित मात्रा ही अपनी फसलों में प्रयोग करें साथ ही उन्होंने मृदा स्वास्थ्य के लिये कृषि की स्वस्थ्य क्रियाओं के बारे में विस्तार पूर्वक चर्चा की। कृषि विश्वविद्यालय के प्राध्यापक डा0 दिनेश शाह ने मृदा परीक्षण हेतु मृदा के नमूने लेने की विधि को विस्तार पूर्वक कृषकों को समझाया। उन्होंने बताया कि मृदा खेती का आधार है एवं फसलों के पोषक तत्वों का प्रमुख स्रोत है। भूमि में पौधों की आवश्यकतानुसार पोषक तत्वों को उपलब्ध कराने की क्षमता ही उसकी ऊर्वरा शक्ति निर्धारित करती है। पोषक तत्वों की उपलब्धता भूमि की भौतिक रसायनिक एवं जैविक स्थिति पर निर्भर करती है जो स्वस्थ्य मृदाओं में उच्च गुणवत्ता की होती है। यह तीनों गुण प्रमुख रूप से भूमि में उपलब्ध जीवांश कार्बन की मात्रा द्वारा नियंत्रित/निर्धारित होते हैं। स्वस्थ्य मृदा में इसकी मात्रा 0.7% या इससे अधिक होनी चाहिए। इस अवसर पर केन्द्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक डा0 श्याम सिंह द्वारा हाइड्रोजेल की उपयोगिता पर एक कृषक प्रशिक्षण का आयोजन भी किया गया। डा0 सिंह ने हाइड्रोजेल के बारे में विस्तार से चर्चा करते हुए किसानों को बताया कि खेती में अन्य कारकों के साथ-साथ जल सबसे सीमित कारक बनता जा रहा है। वैज्ञानिकों शोध द्वारा पाया कि मृदा कंडीशनर के रूप में हाइड्रोजेल का उपयोग 5 कि0ग्रा0 प्रति हे0 भूमि में मिलाकर प्रयोग करने से भूमि की भौतिक, रासायनिक एवं जल धारण क्षमता बढ़ जाती है। इसके प्रयोग से भूमि में जल धीरे-धीरे पौधों को लम्बे समय तक उपलब्ध होता है। हाइड्रोजेल अपनी मात्रा का 400 गुना जल धारण करने की क्षमता रखता है और इसके प्रयोग से सूरजमुखी में 11-27%, गेहूँ में 14-51%, प्याज में 27%, सेब में 15%, नीबू में 55% तक उपज में वृद्धि पायी गयी है। उत्पादन में यह वृद्धि हाइड्रोजेल द्वारा पानी को अवशाषित कर धीरे-धीरे उपलब्धता एवं नमी तनाव के कारण पोषक तत्वों की उपलब्धता बढ़ने के कारण होती हैं। कृषकों से आवाह्न किया कि हाइड्रोजेल के प्रयोग को बढ़ावा दे जिससे कम पानी में भी टिकाऊ उत्पादन लिया जा सके। डा0 दीक्षा पटेल ने कृषकों से आहावन किया कि वे खेती में रसायनों को अन्धाधुन्ध प्रयोग न करें तथा जैविक खेती कर अपनी आय को बढ़ाये। केन्द्र के पशु वैज्ञानिक डा0 मानवेन्द्र सिंह ने गाय के गोबर से वर्मीकम्पोस्ट खाद बनाने के बारे में विस्तार पूर्वक बताया साथ ही इसके उपयोग से मृदा की उर्वराशक्ति बढाने के लिये प्रेरित किया। इस उपलक्ष पर कृषकों को मृदा के नमूनों की जाँच कर 250 मृदा स्वास्थ्य कार्ड वितरित किये गये। इस अवसर पर भारतीय स्टेट बैंक के मुख्य व्यवसाय प्रबन्धक बांदा चित्रकूट धाम मंण्डल श्री प्रेम अग्निहोत्री एवं मुख्य प्रबन्धक शाखा बांदा श्री सरोज कुमार उपस्थित रहे, जिन्होनें भारतीय स्टेट बैंक की कृषकों हेतु लाभकारी योजनाओं के बारे में चर्चा की साथ ही किसान क्रेडिट कार्ड के उपयोग करने हेतु कृषकों को प्रेरित किया। इस कार्यक्रम में निकरा ग्राम चौधरी डेरा (खप्टिहा कलॅा) के 70 कृषकों/महिला कृषकों ने प्रतिभाग किया।
बांदा कृषि एवं प्रौद्योगिक विष्वविद्यालय, बांदा के अधीन संचालित कृषि विज्ञान केन्द्र, बांदा द्वारा कृषक प्रशिक्षण कार्यक्रम के अन्तर्गत ‘‘गेंहू में खरपतवार नियंत्रण’’ विषय पर एक कृषक प्रषिक्षण महुआ विकास खण्ड के ग्राम जखनी में आयोजित किया गया। प्रशिक्षण में केन्द्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक डा0 श्याम सिंह ने कृषकों को गेंहू में खरपतवार नियत्रंण विषय के वैज्ञानिक पहलुओं पर विस्तार से चर्चा की। डा0 सिंह ने बताया कि गेंहू जनपद की प्रमुख रबी फसल है। जनपद में इसकी पैदावार कम होने के प्रमुख कारणों में से खरपतवार विशेष कारण है। किसान भाई थोडे से प्रबंधन से कम लागत में खरपतवारों से होने वाले नुकसान को कम कर सकते हैं। धान-गेंहू फसल चक्र में गेंहू की फसल में गेंहू का मामा (फलैरिस माईनर) खरपतवार बहुत ज्यादा होता है। इसके नियंत्रण के लिये किसान भाई फसल चक्र को तोड गेंहू की जगह चना/सरसों उगायें। धान की रोपाई से पूर्व ढैंचा की बुवाई करें एवं खरपतवारनाषियों का प्रयोग कर सकते हैं। गेंहू की फसल में प्रमुख रूप से दो प्रकार के खरपतवार होते हैं एक संकरी पन्नी वाले एवं चौडी पत्ती वालें। इनके प्रबंधन के लिये फसल चक्र अपनाना, गर्मी की जुताई, निराई गुडाई एवं रासायनिक नियंत्रण के अलावा किसान भाई ध्यान रखें कि खेत में थ्रैसिंग वाले स्थान पर घासों के बीज को नष्ट करें, गोबर की अच्छी तरह सडी खाद ही प्रयोग करें एवं रसायनों का प्रयोग सही मात्रा में सही समय पर सही विधि से करें। फसल को पहले 45 दिन खरपतवार मुक्त रखना आसान व आवश्यक है। इसके लिये छोटे किसान प्रथम सिंचाई के बाद एक निराई करें व बडे किसान बुआई के तुरन्त बाद 3.3 ली0 पैण्डी मैथालीन को 800 ली0 पानी में मिलाकर स्प्रे करें अथवा सल्फो सल्फ्यूरॉन एवं मैट सल्फ्यूरॉन की 36 ग्रा0 सक्रिय मात्रा प्रति हे0 बुआयी के 30-35 दिन की अवस्था पर 600 ली0 पानी में घोलकर स्प्रे करें। अथवा केवल चौडी पत्ती वाले खरपतवार होने की दषा में किसान भाई 2,4-डी0 की 800 ग्राम मात्रा 600 ली0 पानी में घोलकर प्रति हे0 की दर से छिडकाव कर सकते हैं। किसान भाई गेंहू पकते समय गेंहू के मामा की कच्ची बालियां तोडकर नष्ट कर दें जिससे मिट्टी में बीज नहीं मिलेगें। इसके अलावा धान की तैयारी से पूर्व जलकुम्भी को काटकर खेती में सडाने से एवं ढैंचा सडाने से भी मोथा, सांवा एवं गेंहू के मामा के बीजों को नष्ट किया जा सकता है। प्रषिक्षण में कृषि प्रसार के वि0व0वि0 डा0 दीक्षा पटेल, ई0 अजीत कुमार निगम व धर्मेन्द्र सिंह उपस्थित रहें। कृल 25 कृषकों ने प्रतिभाग किया। प्रशिक्षण में प्रगतिषील कृषकों का भी विशेष सहयोग मिला।
बांदा कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय, बांदा के अधीन संचालित कृषि विज्ञान केन्द्र, बांदा द्वारा कृषक प्रशिक्षण कार्यक्रम के अन्तर्गत ‘‘मटर की वैज्ञानिक खेती’’ विषय पर एक कृषक प्रशिक्षण बडोखर खुर्द विकास खण्ड के ग्राम महोखर में आयोजित किया गया। प्रषिक्षण में केन्द्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक डा0 श्याम सिंह ने कृषकों के साथ मटर की खेती के वैज्ञानिक पहलुओं पर विस्तार से चर्चा की। डा0 सिंह ने बताया कि बांदा जनपद में रबी में चना मसूर के बाद मटर की फसल प्रमुख है। यहां की अपेक्षाकृत हल्की मिट्टियों में मटर की पैदावार अच्छी ली जा सकती है। अच्छी पैदावार के लिये बुवाई करते समय बीज षोधन एवं उचित प्रजाति का चयन महत्वपूर्ण है। जनपद के लिये प्च्थ्क् 10.12 - प्च्थ्क् 11.5 अच्छी प्रजातियां हैं। बुआयी उचित नमी पर 30 से0मी0 की दूरी पर करनी चाहिये। सामन्य भूमियों में 100 कि0ग्रा0 डी0ए0पी0 स्टार्टर डोज के रूप में प्रयोेग करने पर जडों का विकास अच्छा होता है एवं जडों में राईजोबियम की गांठें ज्यादा बनती हैं जो नत्रजन स्थिरीकरण कर पौधों को उपलब्ध कराती हैं। मटर की अच्छी पैदावार के लिये एक निराई एवं सिंचाई करना आवश्यक हैं। खरपतवार नियंत्रण के लिये बडे किसान पौण्डीमैथालीन खरपतवारनाशी की 3.3 ली0 मात्रा 800 ली0 पानी में मिलाकर एक हे0 क्षेत्र में बुआई के तुरन्त बाद स्प्रे करें। स्प्रे करते समय पीछे को हटें व पानी की मात्रा कम न करें और बुआई के 24 घन्टे के अन्दर ही स्प्रे करें। मटर की अच्छी पैदावार के लिये जाडों में वर्षा होने पर लगने वाले रोगों का समय से निदान आवश्यक है। किसान भाई अधिक जानकारी के लिये मो0न0 9450791440 पर सम्पर्क कर सकते हैं। प्रशिक्षण में पशु विज्ञान के वि0व0वि0 डा0 मानवेन्द्र सिंह उपस्थित रहें। कुल 25 कृषकों ने प्रतिभाग किया। प्रषिक्षण में प्रगतिषील कृषकों श्री योगेन्द्र सिंह का विशेष सहयोग मिला।
कृषि विज्ञान केन्द्र, बांदा के वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं अध्यक्ष डा0 श्याम सिंह द्वारा ऑफ कैम्पस प्रशिक्षण कार्यक्रम के अर्न्तगत एक कृषक प्रशिक्षण का आयोजन बड़ोखर विकासखण्ड के ग्राम कतरावल में किया गया। धान में फसल अवशेष प्रबन्धन विषय पर आयोजित प्रशिक्षण में डा0 सिंह ने कृषकों को अवशेष प्रबन्धन के महत्व को समझाया। उन्होंने बताया कि जनपद में 50000 हे0 से अधिक क्षेत्र में धान की फसल होती है जिसके पश्चात गेंहूँ की बुआई के लिए समय कम होता है ऐसे में धान की पुआल का प्रबन्धन जहाँ खेत की तैयारी के लिए महत्वपूर्ण है वहीं कृषकों द्वारा कम्बाइन से कटाई गयी फसल में आग लगा दी जाती है जो गलत है। कृषकों को चाहिए कि धान की पुआल एवं शेष ठूँठों को जल्दी से जल्दी सड़ाने के लिए खेत में पलेवा करते समय 50-60 किग्रा0 यूरिया प्रति हे0 छिड़क दें एवं जुताई करने से पुआल जल्दी सड़ जायेगी वरना देर से सड़ने पर दीमक का प्रकोप हो सकता है और गेंहूँ की फसल पर प्रारम्भ के दिनों में विपरीत प्रभाव पड़ता है और फसल पीली पड़ जाने से बढ़वार रुक जाती है। कृषक भाई कम्बाइन से कटी फसल में डिकम्पोजर की एक शीशी 200 ली0 पानी में घोलकर तीन-चार दिन बाद स्प्रे कर जुताई कर सकते हैं। हाथ से कटी फसल की पुआल का प्रयोग पशुओ के चारे के रूप में दाने के साथ मिलाकर या हरे चारे में मिलाकर प्रयोग कर सकते हैं। कम्बाईन से कटी पुआल को खेत के एक कोने में गड्ढा बनाकर उसमें पुआल एवं गोबर/मिट्टी की परत दर परत लगाकर भर दें एवं भूमि के लेवल पर मिट्टी की परत से ढक दे। यदि डिकम्पोजर का स्प्रे कर दिया जाये तो बहुत जल्दी लगभग 40-45 दिन में अच्छी कम्पोस्ट तैयार हो सकती है जिसके प्रयोग से भूमि में जीवांश कार्बन की मात्रा बढ़ेगी और भूमि की ऊर्वरा शक्ति में भी वृद्धि होगी। इस कार्यक्रम में कुल 25 कृषकों ने प्रतिभाग किया।
कृषि विज्ञान केन्द्र, बाँदा द्वारा आज दिनांक 11.11.2022 को केन्द्र के प्रशिक्षण हाल में प्रातः 11ः00 बजे से ‘‘वैज्ञानिक सलाहकार समिति’’ की बैठक का आयोजन किया गया जिसका मुख्य उद्देश्य था कि विगत वर्ष (नवम्बर, 2021 से अक्टूबर 2022) की प्रगति आख्या पर विभिन्न वैज्ञानिक सलाहकार समिति के सदस्यों द्वारा समीक्षा करना तथा आगामी सत्र नवम्बर, 2022 से दिसम्बर 2023 तक की वार्षिक कार्ययोजना पर विस्तृत चर्चा करना था। इस कार्यक्रम की अध्यक्षता डा0 एन0पी0 ंिसंह मा0 कुलपति, बाँदा कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय, बाँदा द्वारा की गयी। सर्वप्रथम दीप प्रज्जवलन कर कार्यक्रम का शुभारम्भ किया गया। कार्यक्रम के अध्यक्ष प्रो0 (डा0) एन0पी0 सिंह ने कहा कि कृषि विज्ञान केन्द्र को जनपद के सभी विकास खण्डों की भूमि, जलवायु एवं फसल पद्धति का अध्ययन कर वहां के मंडीभाव, बाजार एवं उत्पादकता के आकडे एकत्र कर उनके आधार पर कृषक उपयोगी तकनीकों का सम्पूर्ण पैकेज के साथ प्रर्दशन आयोजित कराये जायें। जनपद में जलवायु अनुकूल उत्तम तकनीकों को रिफाईन करने के उपरान्त कृषकों के प्रक्षेत्र पर परीक्षण हेतु लगायें साथ ही ग्रामीण युवकों के लिये रोजगार परख प्रशिक्षणों का आयोजन किया जाये। केन्द्र के अध्यक्ष डा0 श्याम सिंह ने केन्द्र की विगत वर्ष (नवम्बर, 2021 से अक्टूबर 2022) की प्रगति आख्या एवं नवम्बर, 2022 से दिसम्बर 2023 तक की कार्ययोजना व कृषि विज्ञान केन्द्र, बाँदा द्वारा चलाये जा रहे विभिन्न कार्यक्रमों की प्रगति आख्या प्रस्तुत की। सभी वैज्ञानिकों के कार्य समीक्षा के बाद वैज्ञानिक सलाहकार समिति के सभी सदस्यों नेे अपने-अपने सुझाव दिये। डा0 ए0के0 बाजपेयी अलसी एवं कठिया गेंहू की खेती पर जोर देने का सुझाव दिया साथ ही पशुपालन, मुर्गी पालन बकरी पालन का कृषि में समावेश कर कृषकों को लाभान्वित करने पर जोर दिया। उन्होने प्राकृतिक खेती के बेहतर प्रचार प्रसार हेतु प्रेरित किया। उप निदेशक पशुपालन डा0 मनोज अवस्थी ने नस्ल सुधार हेतु बुन्देलखण्ड की देशी नस्लों के इस्तेमाल की बात की साथ कृषकों को बकरी पालन एवं मुर्गीपालन विषय अधिक से अधिक प्रशिक्षण आयोजित करने के लिये कहा। इस कार्यक्रम में डा0 एन0के0 बाजपेयी निदेशक प्रसार, डा0 नरेन्द्र सिंह सह निदेशक प्रसार, डा0 आनन्द कुमार सिंह सह निदेशक प्रसार, अधिष्ठाता, कृषि डा0 जी0एस0 पवार, अधिष्ठाता वानिकी डा0 संजीव कुमार, डा0 मयंक दुबे सहायक प्राध्यापक पशुपालन, श्री राजेन्द्र कुमार जिला उद्यान अधिकारी, श्री प्रतीक चौबे क्षेत्रीय प्रबन्धक, उप निदेशक पशुपालन श्री मनोज अवस्थी, श्रीमती सीमा खान समाज सेवी आदि समेत केन्द्र के वैज्ञानिकों एवं जनपद के प्रगतिशील कृषक उपस्थित रहें। कार्यक्रम के अन्त में केन्द्र के अध्यक्ष डा0 श्याम सिंह ने सभी का धन्यवाद ज्ञापन किया तथा यह भी आवश्वासन दिया कि सदस्यों द्वारा दिये गये सुझावों पर केन्द्र जरूर काम करेगा।
दो दिवसीय एग्री र्स्टाटअप कानक्लेव एवं किसान सम्मेलन का आयोजन आईएआरआई, पूसा, नई दिल्ली में किया जा रहा है जिसका सजीव प्रसारण आज दिनांक 17.10.2022 को कृषि विज्ञान केन्द्र, बांदा एवं कृषि विभाग बांदा के संयुक्त तत्वाधान में जनपद के किसानों व विश्वविद्यालय के छात्रों को दिखाया गया। कार्यक्रम की शुरूआत मुख्य अतिथि तथा अधिकारीगणों द्वारा द्वीप प्रज्वलन के बाद डा0 मन्जुल पाण्डेय, प्रभारी अधिकारी के.वी.के. बाँदा द्वारा स्वागत एवं कार्यक्रम की रूपरेखा बताने के साथ हुई। इस अवसर में मा0 प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने किसान सम्मान निधि की 12वीं किस्त का 16000 करोड़ सीधा किसानों के खातों में ट्रांसफर किया, 600 पीएम किसान समृद्धि केन्द्र का उद्घाटन व अन्तर्राष्ट्रीय ऊरर्वक ई-पत्रिका व भारत ऊरर्वक का उद्घाटन भी किया गया। मा0 प्रधानमंत्री जी ने वर्चुअल माध्यम से कहा कि किसानों का जीवन आसान बनाने के लिए सरकार द्वारा कई बड़े कदम उठाये जा रहे हैं। किसानों की हर आवश्यकता को पूरी करने के उद्देश्य से पीएम किसान समृद्धि केन्द्र खोले जा रहे हैं। इन केन्द्रों में मृदा जाँच से लेकर कृषि रसायन, खाद, बीज व कृषि सम्बन्धित सलाह किसनों को मिलेगी। वन नेशन वन खाद के अन्तर्गत भारत ऊरर्वक ब्रांड की खाद किसनों को समान गुणवत्ता व सस्ते दर में पूरे देश में मिल सकेगी। साथ ही प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने पर बल दिया। मा0 राज्यमंत्री (रसायन एवं उर्वरक) डॉ मनसुख मांडविया, ने कहा कि राष्ट्र को विकसित बनाने में कृषकों की महत्वपूर्ण भूमिका होगी। उन्होने यह भी बताया कि एक ओर जहाँ भारत का कृषि उत्पादन रिकार्ड स्तर पर पहुँचा है वहीं दूसरी ओर किसानों को उचित मूल्य भी मिला है। मा0 कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय भारत सरकार श्री नरेन्द्र सिंह तोमर ने कहा कि आज के इस कार्यक्रम में देश भर के 732 के.वी.के. से किसान, विश्वविद्यालय से छात्र एवं शोध संस्थानों से वैज्ञानिक वर्चुअल माध्यम से जुड़े हुये हैं। उन्होने यह भी कहा कि हमारे देश के किसान बहुत स्किल्ड हैं तथा दिन-प्रतिदिन नवाचार अपने स्तर पर कर रहे हैं। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि के रूप में श्री बलराम सिंह कछवाह, सदस्य प्रबन्ध परिषद, अटारी कानपुर उपस्थित रहे तथा उन्हांेने प्रधानमंत्री जी द्वारा किये जा रहे कार्यों की प्रशंसा की व छात्रों को कृषि के क्षेत्र में नवाचार के लिए प्रेरित किया। डा0 एन.के. बाजपेयी, निदेशक प्रसार ने एग्री र्स्टाटअप सम्मेलन के महत्व को बताया तथा कृषि के क्षेत्र में कार्य कर रहे किसनों, छात्रों व शोधकर्ताओं को इस अवसर का लाभ लेने के लिए प्रेरित किया साथ ही यह भी कहा कि हम सभी को कृषकों की आय दोगुनी करने के लिए मिलकर प्रयास करना चाहिए। डा0 एस. के. सिंह, कुलसचिव ने कृषि में अध्यनरत छात्रों से आवाह्न किया कि सैद्धाान्तिक ज्ञान के साथ-साथ व्यहारिक ज्ञान का प्रयोग करते हुए स्टार्टअप चलाने के विषय में अवश्य सोंचे। आज का समय जॉब खोजने का नहीं जॉब देने का है। तभी अपनी तथा देश की प्रगति सम्भव है। इस कार्यक्रम में अधिष्ठाता, कृषि, उद्यान, वानिकी व सह अधिष्ठाता, सामुदायिक विज्ञान महाविद्यालय उपस्थित रहे। कार्यक्रम के अन्त में डा0 आनन्द सिंह, सह निदेशक प्रसार ने माननीय अतिथियों एवं कृषकों का धन्यवाद ज्ञापित किया। मंच का संचालन डा0 सौरभ द्वारा किया गया। कार्यक्रम में 270 कृषकों व महिला कृषको सहित छात्रों ने प्रतिभाग किया। कार्यक्रम के सफल बनाने में केन्द्र के ई0 अजीत कुमार निगम, श्री गिरजेश सिंह यादव, श्री कमल नारायण, श्री धर्मेन्द्र सिंह, चन्द्रशेखर, श्री दिनेश व श्री प्रेम जी का महत्वपूर्ण योगदान रहा।
बाँदा कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय, बाँदा के अन्तर्गत संचालित कृषि विज्ञान केन्द्र, बाँदा एवं इफको के संयुक्त तत्वाधान में दिनांक 17.09.2022 का पोषण अभियान एवं वृक्षारोपण कार्यक्रम का भव्य आयोजन उद्यान महाविद्यालय के कान्फ्रेन्स हॉल में किया गया जिसका उद्देश्य कृषकों, महिला कृषकों/कन्याओं को पोषक अनाजों व टिकाऊ खेती हेतु वृक्षारोपण के प्रति जागरूक करना था। कार्यक्रम की अध्यक्षता मा0 कुलपति महोदय, प्रो0 (डा0)एन0पी0 सिंह द्वारा की गई तथा मुख्य अतिथि के रूप में मा0 विधायक नरैनी श्रीमती ओममणी वर्मा तथा विशिष्ठ अतिथि के रूप में श्री बलराम सिंह कछवाह सदस्य, प्रबन्ध समिति अटारी, कानपुर रहे। इस कार्यक्रम में अधिष्ठाता कृषि, अधिष्ठाता उद्यान, अधिष्ठाता वानिकी एवं सह अधिष्ठाता गृह विज्ञान आदि उपस्थित रहें। कार्यक्रम का शुभारम्भ मा0 अतिथियों द्वारा द्वीप प्रज्वलित कर किया गया। डा0 श्याम सिंह, अध्यक्ष कृषि विज्ञान केन्द्र बाँदा ने सभी अतिथियों का स्वागत किया। तदोपरान्त केन्द्र की विषय वस्तु विशेषज्ञ एवं कार्यक्रम समन्यवक डा0 दीक्षा पटेल ने कार्यक्रम की रूपरेखा एवं उद्देश्य से सभी को अवगत कराया। कार्यक्रम की मुख्य अतिथि मा0 विधायक नरैनी श्रीमती ओममणी वर्मा ने अपने उद्बोधन में बुन्देलखण्ड की पुरानी संस्कृति, परम्परागत भोज्य पदार्थांे को सजोंकर रखने के लिये सभी का आवाह्न किया साथ ही भारत सरकार द्वारा चलाये जा रहे पोषण अभियान को महिला स्वास्थ्य एवं महिला सशक्तिकरण हेतु सार्थक प्रयास बताया। उन्होने महिलाओं को घर से निकलकर आत्म निर्भर बनने के लिये प्रेरित किया। माननीय विधायिका जी द्वारा सामुदायिक विज्ञान महाविद्यालय में चल रही विभिन्न गतिविधियों का अवलोकन किया गया। महाविद्यालय में लेबोरेट्री नर्सरी स्कूल एवं डे-केयर सेण्टर स्थापित है जो कि नौनिहालों के सर्वांगीण विकास के लिए कार्यरत है जिसका अवलोकन करते वक्त बच्चों के साथ वार्तालाप भी किया और कहा कि इस तरह का केन्द्र निश्चय ही बच्चों के भविष्य निर्माण में सहायक होगा। कार्यक्रम के अध्यक्ष डा0 एन0पी0 सिंह, मा0 कुलपति महोदय, बाँदा कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय, बाँदा ने कहा कि बुन्देलखण्ड में नवयुवकों एवं नवयुवतियों में खून की कमी की विकट समस्या है इसके समाधान हेतु दैनिक आहार में गुड, हरी पत्तेदार सब्जियाँ, करौंदा, चुकन्दर, को शामिल करने लिये कहा। उन्होंने कहा कि एक परिवार तभी स्वास्थ्य रहता है जब परिवार की महिलायें स्वस्थ रहती हैं इसलिये आजकल जब मिलावटखोरी की वजह से पोषण युक्त अनाज, सब्जी दूध आदि प्राप्त नही हो पाते है तो हमें अपने घर पर ही सब्जी उगाकर परिवार के पोषण का ध्यान रखना चाहिये। उन्होने विश्वविद्यालय की आगामी कार्ययोजना में गौआधारित प्राकृतिक खेती पर परिक्षण की योजना पर चर्चा की। साथ ही उन्होंने सभी कृषकों एवं महिलाओं से बायोफोर्टीफाईड किस्मों की तकनीकी जानकारी के लिये कृषि विज्ञान केन्द्र के वैज्ञानिकों की सलाह लेने का आवाहन किया। श्री बलराम कछवाहा सदस्य, प्रबन्ध समिति अटारी, कानपुर ने अपने उद्बोधन में पोषक अनाजों के उत्पादन को बढ़ाने के लिये सभी कृषकों को प्रेरित किया और कहा कि इससे दुगना लाभ होगा जैसे स्वास्थ्य ठीक होगा साथ ही बदलती जलवायु के अनुरूप उत्पादन में वृद्धि होगी। विश्वविद्यालय के निदेशक प्रसार डा0 एन0के0 बाजपेयी ने बताया कि बुन्देलखण्ड क्षेत्र कुपोषण से प्रभावित है, उन्होंने कुपोषण की समस्या से निजात पाने के लिये स्थानीय पोषक अनाज जैसे बाजरा, जौ, ज्वार, मोटे अनाज के उपयोग पर जोर दिया । कार्यक्रम में तीन तकनीकी सत्र का आयोजन किया गया जिसमें डा0 आनन्द सिंह ने पोषण वाटिका की मानव स्वास्थ्य में भूमिका, डा0 कमालुद्दीन ने बायोफोर्टीफाईड प्रजातियों का परिचय एवं महत्व, डा0 वन्दना कुमारी ने प्रोषक अनाज की मानव स्वास्थ्य में भूमिका विषय पर विस्तृत चर्चा की। कार्यक्रम में प्रतिभागियों को पोषण वाटिका किट, जामुन, नीबू एवं करौंदे की 100 पौध का वितरण भी किया गया। इस कार्यक्रम में 80 कृषक 90 महिला कृषकों समेंत कुल 190 लोगों ने प्रतिभाग किया।
Date 22-08-2022, KVK Banda organized one day on-campus training programme on "Integrated Nutrient Management in Sesame Crop.” Dr. Shyam Singh explained the techniques of integrated nutrient management and its benefits in sesame crop. Dr. Singh discussed about the recommended dose of Nano-Urea (liquid) and other liquid fertilizers like NPK 19 19 19 & IFFCO consortia (NPK) for sesame crop. The liquid fertilizers (NPK 19 19 19 & IFFCO consortia and Nano-Urea) were made available to farmers for demonstration under CFLD oilseed.
दिनांक 22-08-2022 को गाजरघास जागरूकता सप्ताह के अन्तर्गत के.वी.के. बाँदा द्वारा के.वी.के. परिसर में गाजरघास के उन्मूलन कार्यक्रम का आयोजन किया गया जिसमें केन्द्र के समस्त स्टाफ, डा0 बी0के0 गुप्ता, सहायक प्राध्यापक, कृषि महाविद्यालय एवं रावे के छात्रों ने मिलकर गाजरघास निकालने व नष्ट करने का कार्य किया। साथ ही गाजरघास के उन्मूलन हेतु सभी को (कृषकों व अन्य नागरिकों) जागरूक करने का संकल्प लिया गया।
विश्वविद्यालय, के शोध निदेशालय के मार्गदशन में के0वी0के0, बांदा द्वारा औद्यानिकी फसलों में ड्रोन के माध्यम से तरल उर्वरक एवं जैव रसायनों के छिडकाव का प्रदर्शन किया गया। कुलपति ने कृषि कार्यों में ड्रोन की उपयोगिता पर विस्तारपूर्वक चर्चा की तथा निर्देशों में इस तकनीकी के वृहद प्रयोग पर भी प्रकाश डाला साथ ही बुन्देलखण्ड़ क्षेत्र में जहां पर कृषि जोत का आकार बड़ा है तथा दलहनी फसलों की बहुलता हैं वहां पर इस तकनीकी के प्रयोग की सम्भावना को तलाशना आवश्यक है जिससे दूरगामी परिणाम प्राप्त हो सकते है। उपस्थित किसानों को विश्वविद्यालय, के निदेशक प्रसार डॉ0 एन0के0 बाजपेयी द्वारा ड्रोन तकनीकी के प्रयोग को सरल एवं स्थानीय भाषा में बताया गया। गरूण एयरोस्पेस से आये हुये चालक दल से किसान भाइयों ने ड्रोन के प्रयोग से सम्बन्धित बिन्दुओं पर प्रश्न पूँछे जिनका समाधान दल ने सफलतापूर्वक किया। निदेशक शोध डॉ0 ए0सी0 मिश्रा, अधिष्ठाता उद्यान महाविद्यालय डॉ0 एस0वी0 द्विवेदी, डॉ0 राकेश पाण्डेय, श्री के0एस0 तोमर, डॉ0 ए0के0 चौबे आदि उपस्थित रहे।
76वें स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर के0वी0के0, बांदा एवं कृषि विभाग, बांदा के संयुक्त तत्वाधान में कृषक सम्मान समारोह का आयोजन किया गया जिसमें जनपद के 75 प्रगतिशील कृषकों/महिला कृषकों को उनके द्वारा कृषि में उत्कृष्ट कार्यों हेतु उन्हें प्रशस्ति पत्र, तिरंगा एवं फलदार वृक्ष की पौध देकर सम्मानित किया गया। इस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में बी0यू0ए0टी0, बांदा के माननीय कुलपति महोदय डा0 (प्रो0) एन0पी0 सिंह रहे तथा विशिष्ट अतिथि के रूप में निदेशक प्रसार डा0 एन0के0 बाजपेयी, ने सभी कृषकों को स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनायें दी एवं कृषकों को मृदा एवं जल संरक्षण करने हेतु प्रेरित किया। कार्यक्रम का शुभारम्भ समस्त अतिथियों द्वारा दीप प्रज्जवलित कर किया गया तदोपरान्त केन्द्र के अध्यक्ष डा0 श्याम सिंह ने आजादी का अमृत महोत्सव के महत्व के बारे में सभी को अवगत कराया साथ ही बांदा जनपद के स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को नमन किया एवं सभी को स्वच्छता की शपथ दिलायी। डा0 नरेन्द्र सिंह ने भारतीय कृषि एवं कृषकों की पिछले 75 वर्षों की यात्रा पर पर प्रकाश डाला। सह निदेशक प्रसार डा0 आनन्द सिंह ने कहा कि किसान की तरक्की से ही देश की तरक्की होगी तथा कृषि उद्यमिता जैसे जैविक कृषि, वर्मी कम्पोस्ट, गुणवत्तायुक्त बीज उत्पादन, मशरूम आदि व्यवसाय स्थापित करने हेतु कृषकों को प्रेरित किया। उपस्थित कृषकों को सम्बोधित करते हुयेें कुलपति महोदय ने कहा कि बुन्देलखण्ड वीरों की भूमि है तथा यहाँ के लोगों ने स्वतन्त्रता संग्राम के यज्ञ में तन मन धन की आहूति दी। स्वतन्त्रता के पश्चात यह क्षेत्र विकास की दौड़ में पीछे रह गया परन्तु आज इस अभिशाप को अवसर में बदलने का समय आ गया है। कृषि आधारित उद्यमिता तथा नवोन्मेषी तकनीकों द्वारा युवाओं को रोजगार तथा क्षेत्र के कृषकों का विकास सम्भव है। आज आजादी का अमृत महोत्सव कृषि विश्वविद्यालय, बाँदा द्वारा क्षेत्र एवं पारिस्थितिकी विशेष फसलों, प्रजातियों, तकनीकों आदि का विकास एवं मूल्यांकन किया जा रहा है तथा शोध आधारित कृषि तकनीकों का प्रसार कृषि विज्ञान केन्द्रों के माध्यम से किया जा रहा है। हमारे देश का किसान एक सच्चे वीर के रूप में दिन-रात श्रम करता है व देशवासियों को भोजन उपलब्ध कराता है, इसलिये हमें अपने किसानों को भी विशिष्ट सम्मान देना चाहिये व उनको आगे बढाने के लिये प्रेरित करना चाहिये। उप कृषि निदेशक जनपद बांदा श्री विजय कुमार तथा जिला कृषि अधिकारी बाँदा डा0 प्रमोद कुमार उपस्थित रहे।
आज दिनांक 16.07.2022 को कृषि विज्ञान केन्द्र, बांदा द्वारा भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद का 94 वां स्थापना दिवस मनाया। कार्यक्रम के अन्तर्गत किसानों की दुगनी आय एवं पुरस्कार वितरण का सजीव प्रसारण कृषकों के समक्ष दिखाया गया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि के रूप में डा0 नरेन्द्र सिंह सह-निदेशक प्रसार उपस्थित रहे। इस अवसर पर डा0 आनन्द कुमार सिंह, प्राध्यापक फल विज्ञान एवं के0वी0के0 के वैज्ञानिक डा0 मंजुल पाण्डेय, डा0 मानवेन्द्र सिंह व डा0 प्रज्ञा ओझा ने भी कार्यक्रम में अपनी सहभागिता की। कार्यक्रम का शुभारम्भ करते हुये केन्द्र के अध्यक्ष डा0 श्याम सिंह ने सभी अतिथियों एवं कृषको का स्वागत किया एवं कार्यक्रम की रूपरेखा के बारे में सभी को अवगत कराया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि डा0 नरेन्द्र सिंह सह-निदेशक प्रसार ने सभी कृषकों सम्बोधित करते हुये कहा कि भारत सरकार एवं उ0प्र0 सरकार के द्वारा कृषक हेतु व 2022 तक कृषको की आय दुगनी करने के उद्देश्य से विभिन्न योजनायें संचालित की जा रही हैं। इसके पश्चात डा0 आनन्द कुमार सिंह द्वारा बुन्देलखण्ड में अत्याधिक फल उत्पादन एवं लार्भाजन के विषय में विस्तृत चर्चा की गयी साथ ही उन्होने यह भी बताया कि प्राकृतिक एवं जैविक खेती् के माध्यम से उत्पादित फल, सब्जियों एवं फसलों द्वारा किसान उचित लाभ प्राप्त कर सकता है एवं प्रगति की राह पर अग्रसर हो सकता है। कार्यक्रम के अन्त में डा0 मानवेन्द्र सिंह ने माननीय अतिथियों एवं कृषकों का धन्यवाद ज्ञापित किया। कार्यक्रम में कुल 70 कृषक एवं 12 वैज्ञानिकगण प्रतिभाग किया।
दिनांक 08-07-22 को केवीके, बांदा द्वारा जैविक खेती-एक परिचय विषय पर ऑन कैम्पस प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन किया गया। प्रशिक्षण के दौरान डॉ. श्याम सिंह ने बताया कि किस प्रकार रासायनों के बढते प्रयोग से हमारे दूषित खाद्यान्नों के कारण मानव स्वास्थ्य प्रभावित हो रहा है। इससे बचने का एक मात्र तरीका जैविक खेती है। जैविक खेती समय की माँग है, प्रत्येक किसान भाई इस चरणबद्ध तरीके से अपनाना शुरू करें तथा धीरे धीरे रासायनों का प्रयोग कम करते हुये जैविक खादों व कीटनाशीयों का प्रयोग बढाना, मृदा स्वास्थ्य को ठीक करने के लिये हरी खाद, कम्पोस्ट, वर्मी कम्पोस्ट आदि का प्रयोग बढायें। इससे धीरे-धीरे बिना उत्पादन घटाये 3-5 वर्ष में जैविक खेती से पूरी पैदावार के साथ गुणवत्तापूर्ण उत्पादन मिलना प्रारम्भ हो जायेगा।
दिनांक 07-07-22 को केवीके बांदा द्वारा अरहर की वैज्ञानिक खेती विषय पर प्रशिक्षण ऑन-कैम्पस कार्यक्रम का आयोजन किया गया। प्रशिक्षण के दौरान केंद्र के अध्यक्ष एवं वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. श्याम सिंह ने किसानों से कहा की अरहर खरीफ की मुख्य फसल है। इसकी सफलता इस बात पर निर्भर करती हैं कि वर्षा में यह सडने से बचे और पर्याप्त वानस्पतिक वृद्धि प्राप्त करे लें ज्याद वृद्धि होने पर फूल कम आयेंगें, इसके लिये संतुलित मात्रा में ही नत्रजन का प्रयोग करें (सामान्यतः 100 कि0ग्रा0 डी0ए0पी0/हे0) ऊंचे स्थानों पर 45 सेमी0 भी दूरी पर मेडों पर बुआई करें और दिसम्बर माह में फूल आते समय शायं के समय सुरक्षात्मक कीटनाशी का प्रयोग करेने से फली बेधक नहीं लगता। नीम के तेल का प्रयोग भी इसके लिये कर सकते हैं।
Krishi Vigyan Kendra, Banda organized On-campus training on "Bunding and Summer Ploughing for Soil and Water Conservation". The success of farming depends on the quality of water and land. Soil erosion is caused by water and wind, which leads to erosion of soil fertility. To prevent this and to increase the water holding capacity in the land, farmers should do deep summer ploughing and do thick bunds before the rains.
बांदा कृषि एवं प्रौद्योंिगक विश्वविद्यालय, बांदा के अर्न्तगत संचालित कृषि विज्ञान केन्द्र, बांदा द्वारा दिनांक 25.06.2022 को जलवायु अनुकूल कृषि पर राष्ट्रीय पहल (निकरा) परियोजना शुभारम्भ के अवसर पर जलवायु जागरूकता अभियान एवं कृषक गोष्ठी का आयोजन अंगीकृत ग्राम चौधरी डेरा (खप्टिहा कलॉ) में किया गया। इस कार्यक्रम की अध्यक्षता विश्वविद्यालय के निदेशक प्रसार प्रो0 (डा0) एन0के0 बाजपेयी ने की एवं मुख्य अतिथि के रूप में श्रीमती मैना देवी, ग्राम प्रधान और विशिष्ट अतिथि के रूप में श्री बलराम सिंह कछवाह, सदस्य, प्रबंध समिति, अटारी कानपुर व विश्वविद्यालय के सह निदेशक प्रसार डा0 नरेन्द्र सिंह उपस्थित रहे। केन्द्र के अध्यक्ष डा0 श्याम सिंह ने निकरा परियोजना के बारे में अवगत कराते हुय बताया कि कृषि एक जलवायु आधारित उद्योग है। पिछले कुछ दशकों से जलवायु में परिर्वतन के कारण फसलों पर इसके प्रभाव एवं उत्पादन में कमी आ रही है। जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों को कम करने हेतु भारत सरकार द्वारा निकरा परियोजना का शुभारम्भ 2 जनवरी, 2011 में किया गया था, जिसका मुख्य उद्देश्य फसलों, बागानों, पशुपालन एवं मछलीपालन पर जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों को कम करने के लिये उपलब्ध तकनीकियों को प्रदर्शन एवं प्रशिक्षण के माध्यम से कृषकों को जागरूक कर अपनाने हेतु प्रेरित करना है। केन्द्र की वैज्ञानिक डा0 दीक्षा पटेल ने अंगीकृत ग्राम चौधरी डेरा की मौसम सम्बन्धी सामान्य जानकारी से सभी को अवगत कराया। उन्होने बताया कि चौधरी डेरा ग्राम में वर्ष 1978, 1992, 1995 एवं 2005 में भीषण बाढ आयी थी तथा सन् 1979 को सूखा पडा था एवं पिछले वर्ष रबी में ओलावृष्टि के कारण लगभग 40ः रबी फसलों का नुकसान हुआ था। इन सब आकडों को देखते हुये ग्राम को अंगीकृत किया गया था। उन्होने केन्द्र की ग्राम हेतु कार्ययोजना से भी अवगत कराया। डा0 नरेन्द्र सिंह ने बताया कि बुन्देलखण्ड में लगभग 900-1000 मि0मी0 प्रतिवर्ष वर्षा होती है जोकि सूखा प्रभावित क्षेत्र की श्रेणी में नहीं आता है। वर्षा के पानी को संरक्षित करने हेतु कृषकों को प्रेरित किया। उन्होने मृदा को मूलधन एवं फसल उत्पादन को ब्याज बताया और कृषकों से मृदा स्वास्थ्य पर विशेष ध्यान देने की बात कही। कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि श्री बलराम सिंह कछवाह ने कृषकों का आवाहन किया कि वे वैज्ञानिक तरीके से खेती करें और केन्द्र व राज्य सरकार द्वारा किसान हित में चलायी जा रही योजनाओं का लाभ उठायें। कार्यक्रम के अध्यक्ष डा0 एन0के0 बाजपेयी ने बुन्देलखण्ड के गौरवशाली इतिहास को याद करते हुये कहा कि बुन्देलखण्ड में समृद्धि लाने के लिये यहां के लोगों को ही कार्य करना होगा। उन्होनें गौ आधारित प्राकृति खेती को अपनाने के लिये कृषकों को प्रेरित किया साथ ही बगीचों को किसानों की पेंशन बताया। कार्यक्रम की मुख्य अतिथि ग्राम प्रधान श्रीमती मैना देवी ने चौधरी डेरा को चयनित होने पर केन्द्र का अभार व्यक्त किया तथा यथासम्भव सहयोग देने का आश्वासन भी दिया। इस कार्यक्रम में कृषकों को जलवायु अनुकूल कृषि निवेशों का वितरण भी माननीय अतिथियों द्वारा किया गया जिसमें मूंग का बीज, पोषणवाटिका किट, चूजे (कडकनाथ), मिनरल मिक्चर आदि शामिल है। इस कार्यक्रम में लगभग 250 कृषको/महिला कृषकों ने प्रतिभाग किया।
दिनांक 21.06.2022 को कृषि विज्ञान केन्द्र, बाँदा द्वारा उर्वरकों का दक्ष एवं संतुलित उपयोग (नैनो उर्वरकों सहित) अभियान के अन्तर्गत कृषक गोष्ठी का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम में विश्वविद्यालय एवं के.वी.के. के वैज्ञानिकों के अलावा इफको बाँदा के जिला प्रबन्धक ने प्रतिभाग किया। कार्यक्रम का शुभारम्भ करते हुये केन्द्र की वैज्ञानिक डा0 दीक्षा पटेल ने सभी अतिथियों एवं कृषकों का स्वागत किया साथ ही कार्यक्रम की महत्ता एवं रूपरेखा से सभी को अवगत कराया। तत्पश्चात तकनीकी सत्र में विश्वविद्यालय के मृदा विज्ञान विभाग के वैज्ञानिक डा0 जुगल किशोर तिवारी ने सन्तुलित उर्वरक प्रयोग हेतु मृदा परीक्षण की भूमिका, डा0 अमित मिश्रा ने जैविक उर्वरकों की महत्ता, केन्द्र के अध्यक्ष डा0 श्याम सिंह ने उर्वरकों का सन्तुलित एवं दक्ष उपयोग, श्री सचिन तिवारी, जिला प्रबन्धक, इफको बाँदा ने उर्वरकों एवं नैनो उर्वरकों का न्याय संगत उपयोग विषयों पर चर्चा की। केन्द्र के अध्यक्ष डा0 श्याम सिंह ने सभी कृषकों का आवाह्न किया कि वे रासायनिक उर्वरकों के सन्तुलित उपयोग के साथ-साथ जैविक उर्वरकों को अपने खेतों में समावेश करें जिससे कि भूमि जीवाश्म की मात्रा बढ़ सके। कार्यक्रम के अन्त में डा0 मानवेन्द्र सिंह ने सभी कृषकों को धन्यवाद ज्ञापित किया। इस कार्यक्रम में 55 कृषकों/महिला कृषकों ने प्रतिभाग किया।
बाँदा कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय बाँदा में आज दिनाँक 01-06-2022 को विश्व दुग्ध दिवस मनाया गया। कार्यक्रम का आयोजन केवीके बांदा और पशुधन उत्पादन और प्रबंधन विभाग, कृषि महाविद्यालय द्वारा संयुक्त रूप से किया गया था। इस अवसर पर संबंधित विभागों के मुख्य पशु चिकित्सा अधिकारी एवं डेयरी विकास अधिकारी उपस्थित रहे। वैज्ञानिकों द्वारा स्वच्छ दूध उत्पादन और ए1 और ए2 दूध के पीछे के विज्ञान पर प्रस्तुतिकरण दिया गया। कार्यक्रम में पशु उत्पादकता, पशु स्वास्थ्य, प्रबंधन और नस्ल सुधार से संबंधित विभिन्न मुद्दों पर चर्चा की गई।
बाँदा कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय बाँदा के अन्तर्गत कृषि विज्ञान केन्द्र, बाँदा द्वारा जनपद के विभिन्न कृषकों हेतु फसल सुरक्षा हेतु बीजोपचार का महत्व एवं जागरूकता अभियान के अन्तर्गत प्रशिक्षण दिया गया। केन्द्र के फसल सुरक्षा वैज्ञानिक डा0 मंजुल पाण्डेय ने किसानों को बताया कि खरीफ फसलों की बुआई एवं जल संरक्षण के विषय पर भी चर्चा की। खेती से जुडे किसान भाई खरीफ फसलों में बुआई से पूर्व बीज शोधन अवश्य करें किसान भाई पुरानी कहावत से भलीं-भांति परिचित है- जो जैसा बोता है वैसा ही काटता है। निरोग बीज बोने से ही फसल स्वस्थ होगी तथा अधिक उत्पादन प्राप्त होगा फसलों में बहुत से रोग और कीट लगते है रोग उत्पन्न करने वाले कारक बीज की सतह या बीज के अन्दर या बीज पर रहते हैं। ये रोगजनक बीज बोने के बाद अपनी अनुकूल परिस्थितियां पाकर वृद्धि शुरू कर देते हैं और उग्रता बढ़ने पर अंकुरण से लेकर फसल की वानस्पतिक व बालियां निकलने की अवस्था तक रोग का प्रकोप हो सकता है जिससे उत्पादन पर विपरीत प्रभाव पड़ता है खरीफ की फसलों में धान में झुलसा, आभासी कडुवां रोग, तिल में बीज सड़न रोग, तनागलन रोग, जड़-सड़न रोग, अरहर में पत्ती धब्बा रोग झुलसा रोग के साथ सब्जियों में पौध गलन एवं झुलसा रोग आदि प्रमुख है। बीज शोधन के लिये किसान भाई कार्बोक्सिल 37.5 प्रतिशत $ थायरम 37.5 प्रतिशत अथवा कार्बेंडाजिम 50 प्रतिशत डब्लू0पी0 अथवा मैनकोजेब की 75 प्रतिशत डब्लू0पी0 की 2 ग्रा0 मात्रा प्रति कि0ग्रा0 बीज दर से शोधित अथवा रसायनों के अतिरिक्त जैविक नियंत्रक जैसे ट्राईकोडर्मा पाउडर की मात्रा 4 ग्राम प्रति कि0 की दर से शोधित कर सकते है। यदि जैविक व रसायनिक दोनो दवाओं से बीज शोधन करना चाहते हैं। तब 4 से 5 दिन पहले कृषि रसायनों से बीज शोधन कर ले तथा बुआई से 1 दिन पहले जैव नियंत्रक से शोधन करें। बीजोपचार से लाभः बीजों के चारों एक कवच सी पर्त बन जाती है जिससे अंकुरण के समय मृदा जनित रोगों से सुरक्षा होती है। बीजोपचार करने से अंकुरण प्रतिशत तथा अधिक संख्या में स्वस्थ्य पौधे प्राप्त होते है जिससे उत्पादन में वृद्धि होती है। बीजोपचार करते समय सावधानियांः बीजोपचार करने से कुछ विशेष सावधानी रखनी चाहिये जैसे इनका प्रयोग करते समय किसी भी प्रकार का धूम्रपान न करें। हाथों में दस्ताने और मुख पर कपड़ा या मास्क का प्रयोग करें। जहां तक सम्भव हो उपचारित बीज की बुआई शीघ्र करें। इसी के साथ किसानों को खरीफ की फसलों के लिये बीजोपचार हेतु 20 ग्रा0 का कवकनाशी पैकेट केन्द्र के द्वारा वितरित किया गया।
दिनांक 31.05.2022 को कृषि विज्ञान केन्द्र, बांदा एवं कृषि विभाग बांदा के संयुक्त तत्वाधान में गरीब कल्याण सम्मेलन के अन्तर्गत प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी जन कल्याणकारी योजनाओं के लाभार्थियों के साथ संवाद एवं प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना की 11वीं किस्त के हस्तान्तरण का सजीव प्रसारण जनपद के कृषकों को दिखाया गया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि के रूप में श्री बलराम सिंह कछवाह, सदस्य प्रबन्ध परिषद, अटारी कानपुर उपस्थित रहे। इस अवसर पर डा0 प्रमोद कुमार, जिला कृषि अधिकारी एवं के0वी0के0 के वैज्ञानिक डा0 मंजुल पाण्डेय, डा0 मानवेन्द्र सिंह व डा0 दीक्षा पटेल भी उपस्थित रहें। कार्यक्रम का शुभारम्भ करते हुये केन्द्र के प्रभारी डा0 मंजुल पाण्डेय ने सभी अतिथियों एवं कृषको का स्वागत किया एवं कार्यक्रम की रूपरेखा के बारे में सभी को अवगत कराया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि श्री बलराम सिंह कछवाह ने सभी कृषकों सम्बोधित करते हुये कहा कि भारत सरकार एवं उ0प्र0 सरकार के द्वारा कृषक हेतु व 2022 तक कृषको की आय दुगनी करने के उद्देष्य से विभिन्न योजनायें संचालित की जा रही हैं। जिससे कृषको को अधिक लाभ हो रहा है। उन्होने यषस्वी प्रधानमंत्री की जन कल्याणकारी योजनाओं जैसे उज्जवला योजना, जनधन योजना, किसान सम्मान निधि, मृदा स्वास्थ्य कार्ड, पी0एम0 सिंचाई योजना, आयुष्मान भारत, आदि का जिक्र किया है। उन्होने बुन्देलखण्ड क्षेत्र हेतु भारत सरकार की हर घर जल योजना को कल्याणकारी बताया जिससे ग्रामीण इलाकों में पेयजल की समस्या का समाधान होेगा। कार्यक्रम के अन्त में डा0 प्रमोद कुमार ने माननीय अतिथियों एवं कृषकों का धन्यवाद ज्ञापित किया। कार्यक्रम में आठ महिला कृषको समेत 114 कृषकों ने प्रतिभाग किया।
Kisan Ghosthi for the promotion of Nano-Urea was organized by IFFCO in 8 blocks of District Banda. In these events advantages of the Nano-Urea was explained to the framers, Dr. Manvendra Singh, Scientist, KVK Banda participated in the event as an expert and put his views. Farmers were told about the scientific and judicious use of chemical fertilizers and how this new innovation make a large impact on the agriculture; as the Nano-Urea is the best substitute of the traditional urea which is not only costly but also a threat to the soil fertility because of injudicious use.