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गेहूँ में सिचाई प्रबन्धन विषय पर कृषक प्रशिक्षण |
बाँदा कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय, बाँदा के अन्तर्गत संचालित कृषि विज्ञान केन्द्र, बाँदा द्वारा गेहूँ में सिचाई प्रबन्धन विषय पर कृषक प्रशिक्षण का आयोजन दिनांक 07-02-2023 को केंद्र पर किया गया । बंदा जनपद में पानी के महत्व को समझते हुये केंद्र के अध्यक्ष डॉ . श्याम सिंह ने किसानो को जल प्रबन्धन के गुण बताए । उन्होने कहा कि गेहूँ कि फसल में प्रबन्धन के द्वारा कम पानी में भी अच्छी पैदावार ली जा सकती है । गेहूँ कि सिचाई फसल की अवस्था विशेष पर करने पर अलग-अलग प्रभाव पड़ता है। उन्होने गेहूँ की सिचाई के लिए क्रांतिक अवस्थाओं पर चर्चा करते हुए बताया कि सामान्य भूमियों में एवं पानी कि पर्याप्त उपलब्धता की स्थिति में निम्नानुसार 6 सिचाई करनी चाहिए-
पहली सिंचाई क्राउन रूट स्टेज बुवाई के 20-25 दिन बाद
दूसरी सिंचाई कल्ले निकलने की अवस्था बुवाई के 40-45 दिन बाद
तीसरी सिंचाई गांठ बनने की अवस्था बुवाई के 60-65 दिन बाद
चौथी सिंचाई फूल आने के समय बुवाई के 80-85 दिन बाद
पांचवीं सिंचाई दुग्ध बनने की अवस्था बुवाई के 100-105 दिन बाद
छठी सिंचाई दाना भरने की अवस्था बुवाई के 115-120 दिन बाद
बांदा जनपद में अधिकतर भारी दोमट मिट्टियाँ पायी जाती हैं जिनसे मात्र 4 सिंचाई करने से अच्छी उपज मिल सकती है। इनको निम्न अवस्थाओं पर करना चाहिए-
पहली सिंचाई : बुवाई के 20-25 दिन बाद क्राउन रूट स्टेज अवस्था पर
दूसरी सिंचाई: पहली सिंचाई के 30 दिन बाद कल्ले निकलने की अवस्था पर
तीसरी सिंचाई: दूसरी सिंचाई के 30 दिन बाद फूल आने के अवस्था पर
चौथी सिंचाई : तीसरी सिंचाई के 20-25 दिन बाद दुग्ध बनने की अवस्था पर
यदि हमारे पास सीमित मात्रा में जल उपलब्ध है तब इससे भरपूर लाभ लेने के लिए इसको निम्नानुसार प्रयोग करें:
1. केवल तीन सिंचाइयों हेतु जल उपलब्ध होने पर इसे क्राउन रूट स्टेज, बालें निकलते समय और दुग्ध अवस्था पर लगाया जाना चाहिए।
2. केवल दो सिंचाइयों हेतु जल उपलब्ध होने पर इसे क्राउन रूट स्टेज और फूल आने की अवस्था में लगाएं।
3. केवल एक सिंचाई हेतु जल उपलब्ध होने पर फसल की क्राउन रूट अवस्था में लगाएं।
गेहूँ की फसल की सिंचाई करते समय निम्नलिखित तीन बातों पर विशेष ध्यान दें:
1. सिंचाई के पानी के उचित वितरण के लिए खेत को ठीक से समतल करना चाहिए और एक दिशा में थोड़ा ढलान देना चाहिए।
2. बुवाई के बाद, खेत को समान आकार की छोटी क्यारियों में विभाजित कर देना चाहिए जिससे सिंचाई के पानी का उचित वितरण सुनिश्चित हो सके।
3. हल्की और भारी मिट्टी के मामले में सिंचाई की गहराई क्रमशः 6 सेमी और 8 सेमी होनी चाहिए।
4. बौछारी विधि से सिचाई करना सर्वथा लाभकारी रहता है । |
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