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गौ आधारित प्राकृतिक खेती परियोजनान्तर्गत दो दिवसीय कृषक प्रशिक्षण कार्यक्रम |
कृषि विज्ञान केन्द्र, बांदा द्वारा संचालित गौ आधारित प्राकृतिक खेती परियोजनान्तर्गत दो दिवसीय (17 व 18-01-2023) कृषक प्रशिक्षण कार्यक्रम का शुभारम्भ प्रो0 भानू प्रकाश मिश्र, प्राध्यापक एवं अध्यक्ष, कृषि प्रसार विभाग द्वारा किया गया है। प्राकृतिक खेती का अर्थ है सूक्ष्म जीवाणुओं की खेती। खेती के इस सिस्टम में भूमि का एक जीवित अस्तित्व मानकर वह सभी कृषि क्रियायें की जाती है जिससे भूमि के अंदर जीवाणुओं की संख्या में वृद्धि होती है। सूक्ष्म जीवाणु और केचुए अनंत काल से एक दूसरे के सहकर्मी रहें हैं। जब एक की संख्या बढती है तो दूसरे की संख्या में भी स्वतः ही वृद्धि हो जाती है और जब दोनों की संख्या बढती है तो भूमि के स्वास्थ्य में तुरंत बदलाव आने लगता है। रसायनिक खेती से हमारे प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक पोषण हो रहा है। फसल पर खर्चा बढने के साथ उपज में ठहराव आ गया है। ग्लोबल वार्मिंग और वायुमण्डल में सम्भावित बदलाव चिंता के विषय हो गये हैं। भूमि, पशु, पक्षी, पौधे और मनुष्य का स्वास्थ्य लगातार प्रभावित हो रहा है। इसलिये रसायनिक खेती का विकल्प ढूंढना अति आवश्यक हो गया है।
केन्द्र के वि0व0वि0 डा0 मंजुल पाण्डेय द्वारा बताया गया कि प्राकृतिक खेती में जैविक खेती की तरह जैविक कार्बन खेत की ताकत का इंडिकेटी नहीं हैं बल्कि केंचुए की मात्रा तथा जीवाणुओं की मात्रा व गुणवत्ता खेत की ताकत के द्योतक है। खेत में जब जैविक पदार्थ विघटित होता है और जीवाणु व केंचुए बढते हैं तो खेत का जैविक कार्बन स्वतः ही बढ जाता है। जीवाणुओं का शरीर प्रोटीन मास होता है और जब जीवाणुओं की मृत्यु होती है तो यह प्रोटीन मास जडों के पास ह्यूमस के रूप में जमा होकर पौध का हर प्रकार से पोषण करने में सहायक होता है। दूसरे लाभदायक जीवाणु जो रसायनिक खाद व दवाओं के कारण भूमि में नही पनप पाते हैं। प्राकृतिक खेती से वे जीवाणु भी बढ जाते हैं जिसके फलस्वरूप भूमि व पौधों की कीट, बीमारियों, नमक, सूखा मौसम आदि विषमताओं के प्रति प्रतिरोधक क्षमता बढ जाती है। जिससे पौधे की बढवार और पैदावार भी बढती है। देष में 86 प्रतिशत किसान छोटे और सीमान्त है। जैविक खेती के आरम्भ में वर्षों में उपज में जो कमी आती है उसे वे सहन नहीं कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त जैविक खाद व जैविक दवाओं की कीमत रसायनिक इनपुटस से भी अधिक है जिससे जैविक खेती में छोटे किसानों का षोषण होता है। जैविक और प्राकृतिक खेती में खेत में किसी भी खाद का प्रयोग नहीं किया जाता है बल्कि जीवामृत व घनजीवामृत के माध्यम से जीवाणुओं का कल्चर डाला जाता है। यह जीवामृत जब सिंचाई के साथ खेत में दिया जाता है तो इसमें विद्यमान जीवाणु भूमि में जाकर मल्टीप्लाई करने लगते हैं और इनमें ऐसे अनेक जीवाणु होते हैं जो वायुमंण्डल में मौजूद 78 प्रतिशत नाईट्रोजन को पौधे की जडों व भूमि में स्थिर कर देते हैं। दूसरें पोषक तत्वों की उपलब्धि बढाने में जीवाणुओं के साथ केचुआ भी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है जो भूमि की निचली सतहों से पोषक तत्व लेकर पौधे की जडों को उपलब्ध करवाता है।
प्राकृतिक खेती के बांदा जिले के मास्टर ट्रेनर श्री शत्रुघन प्रसाद यादव ने यह कहा कि प्राकृतिक खेती में एक देसी गाय से 30 एकड तक की खेती की जा सकती है क्योंकि 01 एकड की खुराक तैयार करने के लिये गाय के 01 दिन के गोबर और गौमूत्र की आवश्यकता होती है। इसके अतिरिक्त 1-2 किलो बेसन, 1-2 किलो गुड और 250 ग्राम मिटट्ी (जिसमें कभी कोई रसायनिक खाद व दवा का प्रयोग ना किया हो) बैक्टीरिया कल्चर के लिये चाहिये। एक प्लास्टिक के 200 लीटर के ड्रम में इन्हें डाल कर उसे पानी से भर दिया जाता है। यह खुराक गर्मियों में 3-4 दिन में और सर्दियों में 6-7 दिन में तैयार हो जाती है। प्राकृतिक खेती में बाजार से कुछ भी खरीदने की जरूरत नहीं है, जबकि जैविक खेती एक मंहगी पद्धति है। प्राकृतिक खेती में यदि जीवामृत व घनामृत के अतिरिक्त कुछ सस्य क्रियाओं को अपनाया जाये तो पहले ही वर्ष उपज में कमी नहीं आती है फिर भी किसानों को सलाह दी जाती है कि पहले वर्ष केवल आधा या 01 एकड में प्राकृतिक खेती करें और अनुभव होने के बाद ही इसके अन्तर्गत क्षेत्रफल बढाया जाये ताकि यदि किसी कारणवश उपज में कमी आये तो इससे किसान की आमदनी कम से कम प्रभावित हो और देष की खाद्य सुरक्षा किसी भी हालत में प्रभावित न हो।
सह निदेशक प्रसार डा0 (प्रो0) आनन्द सिंह ने बताया कि प्राकृतिक खेती में जीवाणु और केचुए की संख्या बढाने के लिये कुछ सस्य क्रियायें जैसे खेत की कम से कम जुताई, जीवाणुओं के फूड सोर्स के तौर पर फसल अवशेष व हरी खाद का प्रयोग, मल्चिंग, वापसा, जैव विविधता और ड्रिप सिंचाई के माध्यम से जीवामृत के प्रयोग खेत में जीवाणुओं की वृद्धि करने में सहायक होते हैं। कार्यक्रम के अन्त में डा0 मंजुल पाण्डेय द्वारा कृषकों को प्रक्षेत्र भ्रमण कराया गया। |
2023-01-17 |
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