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कृषक प्रशिक्षण-सरसों का मांहू/चेपा कीट का प्रबन्धन |
बांदा कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय, बांदा के अन्तर्गत कृषि विज्ञान केन्द्र, बांदा के फसल सुरक्षा वि0व0वि0 डा0 मंजुल पाण्डेय द्वारा दिनांक 26.11.2022 को ग्राम चौधरी डेरा खप्टिहा कलॉ ब्लॉक तिंदवारीें जो निकरा परियोजनान्तर्गत अंगीकृत है में एक दिवसीय कृषक प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित कराया गया। डा0 पाण्डेय ने बताया कि सरसों वर्गीय फसलों हमारे देश की तिलहन अर्थव्यवस्था में मुख्य भूमिका निभाती है। भारत विश्व में तीसरा सबसे बडा राई-सरसों का उत्पादन वाला देश है। देश में राई-सरसों समूह की सात मुख्य फसलें तिलहन फसल के रूप में उगायी जाती है। यह सरसों-राई का प्रमुख कीट है। इसको अन्य भाषा में तेला, चेपा, मावा, मोयल्ला आदि नामों से भी पुकारा जाता है। इसके कीट के शिशु व प्रौढ़ दोनों ही हानि पंहुचाते हैं, दोनों में चुमाने एवं चूसने वाले मुखांग होते हैं ये कीट पौधों की जडों को छोडकर शेष सभी भागों का रस चूसते हैं इसकी मादा कीट अक्सर पत्तियों की नीचे की सतह तथा तने के रस चूसते रहते हैं। इनकी पंखों वाली मादायें काले हरे रंग की तथा बिना पंखों वाली कुछ हल्के हरे रंग व हल्के सलेटी रंग की लगभग 1/10 से0मी0 से शुरू होकर मार्च तक रहता है। इनके मल से पत्तियों पर काली रंग की फंफूदी पैदा हो जाती है। जिससे फसल एवं फलियों का रंग खराब हो जाता है।
प्रबन्धन:-
आर्थिक क्षति स्तर: 10-20 मॉहू/पौधा या 10 प्रतिषत ग्रसित पौधे
1. इस कीट के लिये फसल की बुवाई 15 अक्टूबर तक अवष्य कर देनी चाहिये।
2. नत्रजन उर्वरक को उपयुक्त मात्रा में डालना चाहिये। अधिक मात्रा में नत्रजन डालने से चेपा के प्रकोप की सम्भावना बढ जाती है।
3. मॉंहू/चेपा सबसे पहले फसल के बाहरी पौधों पर आक्रमण करता है। अतः ग्रसित टहनियों को दो-तीन बार तोडकर नष्ट कर देनी चाहिये।
4. मॉहूं का प्रकोप होने पर पीले चिपचिपे ट्रैप का प्रयोग करना चाहिये, जिससे मॉहू ट्रैप पर चिपक कर मर जाये।
5. पुष्पावस्था से पूर्व नीम का अर्क 5 प्रतिषत (5 मि0ली0/ली0) का पानी में मिलाकर आवष्यकतानुसार 15 दिन के अन्तराल पर छिडकाव करते रहें।
6. आवश्यकता होने पर डायमेथोऐट 30 ई0सी0 या मेटा सिस्ट्राक्स 25 ई0सी0 की दर से छिड़काव करना चाहिये। |
2022-11-26 |
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