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विश्व मृदा स्वास्थ्य दिवस का आयोजन |
बाँदा कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्याल, बाँदा के अन्तर्गत संचालित कृषि विज्ञान केन्द्र, बाँदा द्वारा दिनांक 05.12.2020 को निकरा ग्राम चौधरी डेरा (खप्टिहा कला) में ‘‘विश्व मृदा स्वास्थ्य दिवस’’ का आयोजन किया गया। संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन द्वारा वर्ष 2014 से प्रत्येक वर्ष 05 दिसम्बर को विश्व मृदा स्वास्थ्य दिवस मनाने के लिए कहा गया। जिसका मुख्य उद्देश्य मानव जीवन में मिट्टी के महत्व को याद रखना तथा मृदा स्वास्थ्य एवं संरक्षण के प्रति लोगों को जागरूक करना है। वर्ष 2022 में मिट्टीः जहाँ भोजन शुरू होता है, थीम पर विश्व मृदा दिवस मनाया जा रहा है।
कार्यक्रम का शुभारम्भ करते हुये डा0 श्याम सिंह ने सभी ग्राम वासियों को विश्व मृदा स्वास्थ्य दिवस की महत्ता एवं उद्देश्य के बारे में अवगत कराया और कहा कि इस कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य मृदा स्वास्थ्य के प्रति कृषकों में जागरूकता को बढ़ाना है, साथ ही उन्होंने बताया कि कृषि विज्ञान केन्द्र, बाँदा में आकर मृृदा की जाँच अवश्य कराये तथा उर्वरकों की अनुमोदित मात्रा ही अपनी फसलों में प्रयोग करें साथ ही उन्होंने मृदा स्वास्थ्य के लिये कृषि की स्वस्थ्य क्रियाओं के बारे में विस्तार पूर्वक चर्चा की। कृषि विश्वविद्यालय के प्राध्यापक डा0 दिनेश शाह ने मृदा परीक्षण हेतु मृदा के नमूने लेने की विधि को विस्तार पूर्वक कृषकों को समझाया। उन्होंने बताया कि मृदा खेती का आधार है एवं फसलों के पोषक तत्वों का प्रमुख स्रोत है। भूमि में पौधों की आवश्यकतानुसार पोषक तत्वों को उपलब्ध कराने की क्षमता ही उसकी ऊर्वरा शक्ति निर्धारित करती है। पोषक तत्वों की उपलब्धता भूमि की भौतिक रसायनिक एवं जैविक स्थिति पर निर्भर करती है जो स्वस्थ्य मृदाओं में उच्च गुणवत्ता की होती है। यह तीनों गुण प्रमुख रूप से भूमि में उपलब्ध जीवांश कार्बन की मात्रा द्वारा नियंत्रित/निर्धारित होते हैं। स्वस्थ्य मृदा में इसकी मात्रा 0.7% या इससे अधिक होनी चाहिए।
इस अवसर पर केन्द्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक डा0 श्याम सिंह द्वारा हाइड्रोजेल की उपयोगिता पर एक कृषक प्रशिक्षण का आयोजन भी किया गया। डा0 सिंह ने हाइड्रोजेल के बारे में विस्तार से चर्चा करते हुए किसानों को बताया कि खेती में अन्य कारकों के साथ-साथ जल सबसे सीमित कारक बनता जा रहा है। वैज्ञानिकों शोध द्वारा पाया कि मृदा कंडीशनर के रूप में हाइड्रोजेल का उपयोग 5 कि0ग्रा0 प्रति हे0 भूमि में मिलाकर प्रयोग करने से भूमि की भौतिक, रासायनिक एवं जल धारण क्षमता बढ़ जाती है। इसके प्रयोग से भूमि में जल धीरे-धीरे पौधों को लम्बे समय तक उपलब्ध होता है। हाइड्रोजेल अपनी मात्रा का 400 गुना जल धारण करने की क्षमता रखता है और इसके प्रयोग से सूरजमुखी में 11-27%, गेहूँ में 14-51%, प्याज में 27%, सेब में 15%, नीबू में 55% तक उपज में वृद्धि पायी गयी है। उत्पादन में यह वृद्धि हाइड्रोजेल द्वारा पानी को अवशाषित कर धीरे-धीरे उपलब्धता एवं नमी तनाव के कारण पोषक तत्वों की उपलब्धता बढ़ने के कारण होती हैं। कृषकों से आवाह्न किया कि हाइड्रोजेल के प्रयोग को बढ़ावा दे जिससे कम पानी में भी टिकाऊ उत्पादन लिया जा सके।
डा0 दीक्षा पटेल ने कृषकों से आहावन किया कि वे खेती में रसायनों को अन्धाधुन्ध प्रयोग न करें तथा जैविक खेती कर अपनी आय को बढ़ाये। केन्द्र के पशु वैज्ञानिक डा0 मानवेन्द्र सिंह ने गाय के गोबर से वर्मीकम्पोस्ट खाद बनाने के बारे में विस्तार पूर्वक बताया साथ ही इसके उपयोग से मृदा की उर्वराशक्ति बढाने के लिये प्रेरित किया। इस उपलक्ष पर कृषकों को मृदा के नमूनों की जाँच कर 250 मृदा स्वास्थ्य कार्ड वितरित किये गये। इस अवसर पर भारतीय स्टेट बैंक के मुख्य व्यवसाय प्रबन्धक बांदा चित्रकूट धाम मंण्डल श्री प्रेम अग्निहोत्री एवं मुख्य प्रबन्धक शाखा बांदा श्री सरोज कुमार उपस्थित रहे, जिन्होनें भारतीय स्टेट बैंक की कृषकों हेतु लाभकारी योजनाओं के बारे में चर्चा की साथ ही किसान क्रेडिट कार्ड के उपयोग करने हेतु कृषकों को प्रेरित किया।
इस कार्यक्रम में निकरा ग्राम चौधरी डेरा (खप्टिहा कलॅा) के 70 कृषकों/महिला कृषकों ने प्रतिभाग किया। |
2022-12-05 |
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