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कलस्टर प्रथम पंक्ति प्रर्दशन के अन्तर्गत दो दिवसीय कृषक प्रशिक्षण |
कृषि विज्ञान केन्द्र, बांदा द्वारा तिलहन के उत्पादन को जनपद में बढावा देने के उद्देश्य से कलस्टर प्रथम पंक्ति प्रर्दशनों का आयोजन किया जा रहा है। जनपद में सरसों का क्षेत्रफल तो संतोषजनक है, परन्तु मुख्य फसल होने के बावजूद इसकी उत्पादकता बहुत कम है। इसका मुख्य कारण कृषकों द्वारा अच्छी किस्म के बीज एवं पर्याप्त उर्वरकों का उपयोग न किया जाना है। इसके अलावा खरपतवार एवं मॉंहू की समस्या भी प्रमुख रूप से कम पैदावार के लिये जिम्मेदार है। इन सभी समस्याओं के समाधान हेतु कृषकों में सरसों उत्पादन की वैज्ञानिक सोच विकसित करने के उद्देश्य से कृषि विज्ञान केन्द्र, बांदा द्वारा एक दो दिवसीय कृषक प्रशिक्षण का आयोजन दिनांक 20-21.10.2023 को केन्द्र पर किया गया।
प्रशिक्षण में केन्द्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक डा0 श्याम सिंह द्वारा कृषकों के सरसों की खेती के सभी वैज्ञानिक पहलुओं पर विस्तार से चर्चा की और बताया कि सरसों की पैदावार बढाने के लिये किसान भाई पलेवा कर अक्टॅूबर के अन्त तक बुवाई अवश्य कर दें। बुवाई करते समय 4-5 कि0ग्रा0 बीज 30-40 से0मी0 की दूरी पर लाईनों में करें और बुवाई के 10-15 दिन की अवस्था पर लाईनों में 10-15 से0मी0 पौधे से पौधे की दूरी रखने के लिये विरलीकरण अवश्य करें। जहां तक खाद की मात्रा का सवाल है सिंचित क्षेत्रों में नत्रजन 120, फास्फोरस 40 व पोटाश 40 कि0ग्रा0 प्रति हेक्टेयर के साथ 25 कि0ग्राम सल्फर का प्रयोग करने से पूरी पैदावार मिलती है। किसान भाई दो सिंचाई फूल आते समय व दाना भरते समय अवश्य करें। खरपतवार नियंत्रण हेतु बुवाई से पूर्व फ्लोक्लोरिन 45 ई0सी0 की 2.2 ली0 मात्रा तथा 800 ली0 पानी अथवा बुवाई के तुरन्त बाद पैण्डोमैथालीन 30 ई0 सी0 की 3.3 ली0 एवं 800 ली0 पानी का छिडकाव करने से खरपतवार नहीं आते। किसान भाई सरसों की फसल में मॉहूं कीट, झुलसा रोग या अन्य कीट बीमारी की रोकथाम समय से करने के लिये कृषि वैज्ञानिक की सलाह से रसायनों/जैविक उपायों का प्रयोग करें। प्रशिक्षण में ग्राम पंचायत कनवारा के 25 कृषकों ने प्रतिभाग किया। |
2023-10-21 |
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